' बढ़ती हुई भौतिक और वैज्ञानिक प्रगति के साथ यदि मानवता और अध्यात्मवादिता को नहीं अपनाया गया तो यह दुनिया किसी भी दिन विनष्ट हो सकती है । ' इस कटु सत्य को दार्शनिक खलील जिब्रान ने भली प्रकार समझा था ।
खलील जिब्रान का जन्म लेबनान में एक संपन्न एवं सुसंस्कृत परिवार में हुआ था । उनकी माँ अत्यंत विदुषी महिला थीं । माता की हार्दिक अभिलाषा थी कि अंधकार से घिरी एवं भटकती मानव जाति के लिए मेरा पुत्र दीप स्तम्भ का कार्य करे, खलील जिब्रान ने इसे पूरा किया ।
जब उन्होंने तत्कालीन समाज में फैली धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध व्यापक आन्दोलन छेड़ा तो कुछ स्वार्थपरायण लोगों ने उन्हें देश से निष्कासित करा दिया । वे कहा करते थे कि ऐसा धर्म जो मनुष्यता से परे है, वह धर्म नहीं पाखण्ड है । वे जाति, सम्प्रदाय, राष्ट्र आदि से उठकर
' वसुधैव कुटुम्बकम ' की बात सोचते थे । उनकी पुस्तक ' दि प्रोफेट ' में उन्होंने विभिन्न विषयों पर एक युग द्रष्टा के ढंग से मानवता परक विचार प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किये हैं । इसे लोग पश्चिम की गीता और इस युग की समग्र आचार संहिता कहा करते हैं ।
अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपनी लाखों रूपये की सम्पदा की वसीयत अपने ग्रामवासियों के नाम कर दी ताकि उससे उनकी जन्म भूमि में कोई सेवा संस्थान चल सके ।
उन्होंने अपने जीवन काल में लगभग 25 पुस्तकें लिखी जो समस्त विश्व के लिए प्रेरणा दीप बनी हुई हैं । मानवता ऐसे महामानव की चिर ऋणी रहेगी ।
खलील जिब्रान का जन्म लेबनान में एक संपन्न एवं सुसंस्कृत परिवार में हुआ था । उनकी माँ अत्यंत विदुषी महिला थीं । माता की हार्दिक अभिलाषा थी कि अंधकार से घिरी एवं भटकती मानव जाति के लिए मेरा पुत्र दीप स्तम्भ का कार्य करे, खलील जिब्रान ने इसे पूरा किया ।
जब उन्होंने तत्कालीन समाज में फैली धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध व्यापक आन्दोलन छेड़ा तो कुछ स्वार्थपरायण लोगों ने उन्हें देश से निष्कासित करा दिया । वे कहा करते थे कि ऐसा धर्म जो मनुष्यता से परे है, वह धर्म नहीं पाखण्ड है । वे जाति, सम्प्रदाय, राष्ट्र आदि से उठकर
' वसुधैव कुटुम्बकम ' की बात सोचते थे । उनकी पुस्तक ' दि प्रोफेट ' में उन्होंने विभिन्न विषयों पर एक युग द्रष्टा के ढंग से मानवता परक विचार प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किये हैं । इसे लोग पश्चिम की गीता और इस युग की समग्र आचार संहिता कहा करते हैं ।
अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपनी लाखों रूपये की सम्पदा की वसीयत अपने ग्रामवासियों के नाम कर दी ताकि उससे उनकी जन्म भूमि में कोई सेवा संस्थान चल सके ।
उन्होंने अपने जीवन काल में लगभग 25 पुस्तकें लिखी जो समस्त विश्व के लिए प्रेरणा दीप बनी हुई हैं । मानवता ऐसे महामानव की चिर ऋणी रहेगी ।