18 May 2019

WISDOM----- कर्म ही ईश्वर - उपासना है --- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

अखण्ड  ज्योति - जुलाई  1969  में  आचार्य जी  ने  लिखा  है -- शुद्ध  ह्रदय  से   कीर्तन - भजन , प्रवचन  में  भाग  लेना  प्रभु  की  स्तुति  है , उससे  अपने  देह , मन  और  बुद्धि  के  वह  सूक्ष्म  संस्थान  जागृत  होते  हैं  , जो  मनुष्य  को  सफल , सद्गुणी  और  दूरदर्शी  बनाते  हैं  l
 लेकिन  केवल  प्रार्थना  ही  ईश्वर  का  स्तवन  नहीं  है  l  हम  कर्म  से भी  भगवान  की  उपासना  करते  हैं  l  कर्तव्य  भावना  से  किए  गए  कर्म  से   तथा  परोपकार  से  भगवान  उतना  ही प्रसन्न  होता  है  , जितना  कीर्तन  और  भजन  से  l  
 आचार्य  जी  ने  आगे  लिखा  है   कि  उपासना  का  अभाव  रहने  पर  भी   ईश्वर  के  अनुशासन  में  कर्म  करने  वाला   मनुष्य  उसे  बहुत  शीघ्र  आत्मसात  कर  लेता  है  l  लकड़ी  काटना , सड़क  के  पत्थर  तोड़ना,  मकान  की  सफाई , सजावट  और खलिहान  में  अन्न  निकालना, बर्तन  धोना , भोजन  पकाना   यह  भी  भगवान  की  ही  स्तुति  है  , यदि  हम  यह  सारे  कर्म   इस  आशय  से  करें  कि  उससे   विश्वात्मा  का  कल्याण  हो  l  नि:स्वार्थ  भाव  से  किए  गए  कर्म  से  बढ़कर  फलदायक  ईश्वर  की  भक्ति  और  उपासना  पद्धति  और  कोई  दूसरी  नहीं  हो  सकती  l