कहते हैं ' जो महाभारत में है , वही इस धरती पर है l ' महाभारत की कथा शक्ति और सत्ता के दुरूपयोग की कथा है l सत्ता ने न्याय नहीं किया l जब अनीति और अन्याय की चरम सीमा हो गई , तो युद्ध निश्चित हो गया l कहने के लिए धृतराष्ट्र हस्तिनापुर की राजगद्दी पर थे पर लेकिन वे दुर्योधन के मोह में अंधे थे , इसलिए वास्तविक सत्ता दुर्योधन के हाथ में थी , वह मनमानी करता था और पांडवों को उनके हक़ से वंचित करने के लिए षड्यंत्र रचता था l उस युग में जो बुराइयाँ राजपरिवारों तक सीमित थीं , वे कलियुग में सम्पूर्ण समाज में व्याप्त हो गईं l चाहे कोई छोटी संस्था हो या बड़ी से बड़ी संस्था हो , जिसने भी अपने हाथ में सत्ता ले ली , वह दुर्बुद्धि के कारण अहंकारवश उसका दुरूपयोग करता है l प्रजा अत्याचार सहन भी करती है , और जैसी जिसकी सामर्थ्य उसका मुकाबला भी करती है l पांडव जब अज्ञातवास में राजा विराट के यहाँ भेष बदलकर थे तब महारानी द्रोपदी सैरंध्री नाम से रनिवास में रानी सुदेष्णा की सेवा का काम करने लगीं l रानी सुदेष्णा का भाई कीचक बड़ा ही बलिष्ठ था , कुश्ती में वो भीम और बलराम जैसा ही निपुण था लेकिन उसे अपने बल का बहुत घमंड था l अपने बल और प्रभाव से उसने बूढ़े विराट राज की शक्ति और सत्ता में बहुत वृद्धि कर दी थी l कीचक की ऐसी धाक थी कि लोग कहा करते थे कि मत्स्य देश का राजा तो कीचक है , विराट नहीं l स्वयं राजा विराट भी कीचक से डरते थे और उसका कहा मानते थे l कीचक की नजर जब से सैरंध्री पर पड़ी , उसके मन की वासना प्रबल हो गई , वह जब -तब सैरंध्री ( द्रोपदी ) को परेशान करने लगा l कीचक के व्यवहार से कुंठित होकर जब द्रोपदी राजा की दुहाई मचाती राजसभा में पहुंची तो अपनी शक्ति और पद के मद में कीचक ने उन्हें भरी सभा में ठोकर मारी और अपशब्द कहे l सभा में किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कोई इस अन्याय का विरोध करे , सब चुप्पी साधे डरे बैठे रहे l द्रोपदी से यह अपमान सहन नहीं हुआ l उसने भीम से अपनी व्यथा कही कि कैसे उस दुरात्मा कीचक का अंत हो l उस समय वे अज्ञातवास में थे इसलिए भीम ने कहा हमें युक्ति से काम लेना होगा l योजना के अनुसार जब दूसरे दिन कीचक से द्रोपदी का सामना हुआ तो द्रोपदी ने ऐसा भाव जताया मानो वह कीचक से सहमत हों , उन्होंने कहा कि नृत्य शाला में रात्रि को कोई नहीं रहता , अत : आप वहां आएं l कीचक के आनंद का ठिकाना न था l नृत्य शाला में अँधेरा था , जैसे ही वह वहां पहुंचा भीम ने उस पर झपटकर उसे गिरा दिया l भीम और कीचक में भयंकर मल्ल -युद्ध हुआ l थोड़ी ही देर में भीम ने कीचक की ऐसी गति बना दी कि वह गोलाकार मांस का पिंड बन गया l अज्ञातवास में द्रोपदी ने सबसे कह रखा था कि उसके पति गंधर्व हैं ,जो किसी कार्य में व्यस्त हैं इसलिए वह यहाँ काम कर रही है l द्रोपदी ने सुबह नृत्य शाला के रखवालों को जगाया और कहा कि कीचक हमेशा मुझे तंग किया करता था और आज भी वह इसी उदेश्य से आया था l वह अधर्मी था इसलिए क्रोध में आकर मेरे गंधर्व पति ने उसका वध कर दिया l
1 May 2023
WISDOM ------
' लालच बुरी बला '------- पुराण की एक कथा है ----- महापंडित कौत्स स्नान कर एक ऊँची शिला पर बैठकर सूर्य को अर्घ्य दान दे रहे थे l एक घड़ियाल उन्हें बहुत देर से ताक रहा था , पर वे सावधान थे , अत: पानी से हटकर बैठे थे l यमुना की तलहटी से रत्नों की राशि उछलकर उस घड़ियाल ने कौत्स के आसपास बिखेर दी और स्वयं पानी में छिप गया l कौत्स ने जब देखा कि रत्न बिखरे हुए हैं , कोई देख नहीं रहा , तो उन्होंने जल्दी -जल्दी बीनकर उन्हें अपने उत्तरीय में बाँध लिया l घड़ियाल को मौका मिल गया l उसने सिर ऊपर कर कहा --- " आचार्य ! यह तो एक तुच्छ भेंट थी l आप मुझे त्रिवेणी तक पहुंचा दें l मैंने वहां का मार्ग नहीं देखा l आपको पीठ पर बैठा लेता हूँ l मैं आपको वहां अनगिनत रत्न दूंगा l " महापंडित कौत्स को लालच आ गया और उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक वह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया l अभी वह घड़ियाल बीच धार में ही था कि हँस पड़ा l कौत्स ने पूछा ---- "ग्राहराज ! आप हँसे क्यों ? " ग्राह बोला ---- " पंडितप्रवर ! आप जीवनभर दूसरों को उपदेश देते रहे कि लालच नहीं करना चाहिए , पर स्वयं उसका पालन नहीं कर पाए l आज आपका सर्वनाश सुनिश्चित है l " यह कहकर उसने उन्हें उछाला और उदरस्थ कर लिया l