3 March 2019

WISDOM ---- भाव - श्रद्धा ही उपासना को सार्थक बनती है , कर्मकांड नहीं

महाप्रभु  चैतन्य  के  जीवन काल  की  घटना   है  ---- वे  जगन्नाथपुरी  क्षेत्र  में  प्रचार   यात्रा   पर  निकले  थे  l मंडली  में  कई  विद्वान्  भी  थे  l  वटवृक्ष  के  नीचे  एक  किसान  को   उन्होंने  तन्मयता पूर्वक  गीता  पाठ  करते  हुए  देखा   l  उसकी  आँखों  से  आंसू  टपक  रहे  थे   l  मंडली  रूककर  पाठ  सुनने  लगी  l  नितांत  अशुद्ध  उच्चारण    था  l  अल्प   शिक्षित     था,  संस्कृत  नहीं  जनता  था   l  विद्वानों  ने  उसे  टोका  तो  वह  बोला ---  " मेरे  लिए  इतना  ही  बहुत  है  की  भगवन  जो  कह  रहे  हैं  , उसे  मेरी  आत्मा  अमृत  की  तरह  पी  रही  है  l  "   उस भक्त  को  नमन  करते  हुए  चैतन्य  महाप्रभु  ने कहा --- " भक्तों  !  इस  अशिक्षित  की  भावना  सराहनीय  है   l  यही  है  वह  तत्व  जो   भक्त  की  उपासना  को  सार्थक  बनता  है  l  समर्पण  का  भाव  नियोजित  किये  बिना  सारे  पूजा  उपचार  के  क्रम  खोखले  हैं   l  "