27 March 2013

एक राजा अपने मंत्रीके साथ शिकार पर निकले | आखेट के दौरान राजा की उंगली कट गई और रक्त बहने लगा | यह देख मंत्री ने कहा -"चिंता न करें राजन !भगवान जो करता है अच्छे के लिये करता है | "राजा पीड़ा से व्याकुल थे ,ऐसे में मंत्री का कथन सुनकर क्रोध से तमतमा उठे | राजा ने आज्ञा दी कि मंत्री उसी समय उनका साथ छोड़कर अन्य राह पर जायें | मंत्री ने सर झुकाकर राजा की आज्ञा स्वीकार की और दूसरी दिशा में निकल पड़े | राजा कुछ ही दूर चले थे कि नरभक्षियों के एक दल ने उन्हें पकड़ लिया ,उनकी बलि देने की तैयारी होने लगी | तभी उनकी कटी उंगली देखकर नरभक्षियों के पुजारी ने कहा -"अरे !इसका तो अंग भंग है ,इसकी बलि स्वीकार नहीं की जा सकती | "राजा को छोड़ दिया गया | जीवन दान मिला तो राजा को अपने प्रभु भक्त मंत्री की याद आई | वे तुरंत मंत्री की तलाश में निकल पड़े | मंत्री थोड़ी दूरी पर नदी के किनारे भगवान के ध्यान में तल्लीन थे | राजा ने मंत्री को गले लगाया और सारी घटना सुनाई | राजा ने पूछा -'मेरी उंगली कटी तो इससे भगवान ने मेरी जान बचाई ,लेकिन मैंने तुम्हे इतना अपमानित किया तो उसमे तुम्हारा क्या भला हुआ ?'मंत्री बोले -"राजन !यदि मैं भी आपके साथ होता तो अभी आपके स्थान पर ,मेरी बलि चढ़ चुकी होती ,इसलिये
भगवान जो भी करते हैं ,मनुष्य के भले के लिये ही करते हैं | "
गायत्री मंत्र के जप से और परमात्म सत्ता के प्रति समर्पण भाव से रहने की भावना से तनाव से मुक्ति मिलती है | निंदा ,प्रशंसा ,मान -अपमान को हम समभाव से लें ,उव्दिग्न (क्षुब्ध ,परेशान )होना और उव्दिग्न करना छोड़ दें -जल में कमल की तरह रहें तो तनाव मुक्त जीवन जी सकेंगे |
संत तुकाराम जब अत्यंत अभावग्रस्त स्थिति में थे ,तब उन्होंने पद लिखा ,जिसका भावार्थ है -"हे प्रभु !अच्छा ही हुआ मेरा दीवाला निकल गया | अकाल भी पड़ा ,वह भी त्रास भोगा | पत्नी और पुत्र भी भोजन के अभाव में मर गये ,यह भी अच्छा हुआ | मैं भी हर तरह की दुर्दशा भोग रहा हूं ,यह भी अच्छा ही है | संसार में अपमानित हुआ ,फिर भी धैर्य न खोया ,यह आपकी ही कृपा है प्रभु !गाय ,बैल ,द्रव्य सभी चले गये ,यह भी अच्छा ही है | लोक -लाज भी जाती रही ,यह भी ठीक ही है ,क्योंकि इन्ही का परिणाम है कि मुझे तुम्हारी मधुरिमामय शांतिपूर्ण गोद मिली | ऐसी ही कृपा बनाये रखना | "यह है सच्चे भक्त की मन:स्थिति | कभी कोई शिकायत नहीं