30 September 2023

WISDOM ----

    मनुष्य  के  जीवन  में  सुख -दुःख  ,  दिन  और  रात  की  तरह  आते -जाते  हैं  l  लेकिन  कभी -कभी  रात  बहुत  गहरी  और    अमावस्या  के  अंधकार  की  तरह    अँधेरी  होती  है  l  जीवन  का  यह  अंधकार  किसी  तरह  छंटता  ही  नहीं  है , दुःखों  की  श्रंखला  चलती  ही  रहती  है  l  सुबह  के  इंतजार  में  आँखें  भी  थक  जाती  हैं  l  ऐसा  क्यों  होता  है  ?    यदि  हम  पुनर्जन्म  के  सिद्धांत  को  माने   तो  इस  प्रश्न  का  उत्तर  मिल  सकता  है  l  एक   साधारण    व्यक्ति  यदि  कोई  भूल  करता  है   तो   ईश्वरीय  विधान   में  उसे  मिलने  वाली  सजा  भी   साधारण  ही  होती  है   क्योंकि  वह   बहुत    साधारण   व्यक्ति   है  , उसकी  गलती  ने  समाज  को  प्रभावित  नहीं  किया  l   लेकिन  एक  ऐसा  व्यक्ति  जो   कला , साहित्य , शिक्षा , संस्कृति ,  चिकित्सा , राजनीति , धार्मिक  संस्था  आदि  किसी  भी  क्षेत्र  में  ऊँचे  पद  पर  है , उसकी  कही  बात , उसके  कार्य  समाज  को  प्रभावित  करते  हैं ,  ऐसा  व्यक्ति  यदि   अपनी  गरिमा  के  विरुद्ध  अनैतिक , अमर्यादित  आचरण  करे , समाज  से  छुपकर  भी  कोई  गलत  काम  करे  , अपनी  महत्वाकांक्षा  की  पूर्ति  के  लिए  धोखा , छल -कपट  करे   तो  यह  सब  ईश्वर  से  नहीं  छुपाया  जा  सकता  l  ऐसे  व्यक्तियों  की  अँधेरी  रात  बहुत  लंबी  होती  है , शायद  सुबह  आने  में  कई  जन्मों  की  यात्रा  तय  करनी  पड़े  l   पुराण  की  एक  कथा  है  -----   भगवान  विष्णु  के  द्वारपाल  जय -विजय  थे   l  उन्हें  अपने  इस  अधिकार  पर  घमंड  हो  गया  l  वे  चाहते  थे  सब  उनसे  पूछकर  , उनकी  अनुमति  से  ही  भगवान  विष्णु  से  मिलने  जाएँ  l  यदि  कोई  उनसे  न  पूछे  तो  उन्हें  इसमें  अपना  अपमान  महसूस  होता  था  l  इन  द्वारपालों  ने  अपने  अधिकारों  का  दुरूपयोग  कर   नारायणप्रिया  , स्वयं  गृह स्वामिनी  लक्ष्मी  को  भी  भीतर  जाने  से  रोक  दिया  l  लक्ष्मी  जी  मौन  रह  गईं  , लेकिन  जिस  दिन  उन्होंने  अपने  अहंकार  के  कारण   सनक , सनंदन  , सनातन  और  सनत्कुमार  जैसे  ऋषियों  का  अपमान  किया   , उन्हें  भीतर  जाने  से  रोक  दिया  , तब  वे  चुप  न  रहे  l  उन्होंने  दोनों  को  असुर  होने  का  शाप  दे  दिया  l  तीन  कल्पों  में  उन्हें   हिरण्याक्ष -हिरण्यकशिपु  ,   रावण -कुम्भकरण ,   एवं  शिशुपाल -दुर्योधन  के  रूप  में  जन्म  लेना  पड़ा  l  संतों  को  उन्हें   यह  पाठ  पढ़ाना  था  कि  अहंकार  व्यर्थ  है  l  वैकुंठवासी  होने  के  नाते   स्वयं  को  पतन  के  भय  से  मुक्त   मान  लेना  किसी  के  लिए  भी  पतन  का  कारण  बन  सकता  है  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  लिखते  हैं --- 'पद  जितना  बड़ा  होता  है , सामर्थ्य  उतनी  ही  ज्यादा  और  दायित्व  उतने  ही  गंभीर  l  ऐसा  ही  अपमान  किसी  साधारण  द्वारपाल  ने  किया  होता  तो   इतने  परिमाण  में  दंड  नहीं  चुकाना  पड़ता  l  सामर्थ्य  का  गरिमापूर्ण  एवं  न्यायसंगत  निर्वाह  ही  श्रेष्ठ  मार्ग  है  l "