30 October 2022

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- ' मनुष्य  जीवन  के  विकार  , कष्ट  और  यंत्रणा  ईश्वर  प्रदत्त  नहीं  हैं  ,  ये  उसकी  निजी  भूलें  और  पाप  होते  हैं  l  परमात्मा  तो  उन्हें  दूर  करने  में  सहायता  करते  हैं  l  आत्मा  को  शुद्ध  और  सुघड़  बनाने  की  शक्ति  प्रदान  करते  हैं   l '    मनुष्य  के  शरीर  में  कोई  भयंकर  बीमारी  हो , कोई  कष्ट  हो   तो  कैसे  तप  की  शक्ति  से   उसे  दूर  किया  जा  सकता  है  ---- यही  समझाने  के  लिए  पुराण  की  एक  कथा  है -----  महर्षि  अत्रि  के  घर  पुत्री  का  जन्म  हुआ  , इसे  पाकर  वे  बहुत  प्रसन्न  थे  , उसका  नाम  रखा ---अपाला ---l  अपाला  जैसे -जैसे  बड़ी  होती  गई  , उसकी  त्वचा  पर  श्वेत  धब्बे  देखकर  महर्षि  की   प्रसन्नता    को  चिंता  में  बदल  दिया  l  महर्षि  ने  हर  संभव  औषधि - उपचार  किया , आयुर्वेद  के  पन्ने  पलट -पलट  कर  महर्षि  थक  गए   लेकिन   दोष  दूर  नहीं  हुआ  l  परिस्थितियों  से  निराश  महर्षि  ने  अपना  सारा  ध्यान  अपाला  को  ज्ञानवान  बनाने  में  लगा  दिया  l  वेद  , उपनिषद , आरण्यक , व्याकरण मीमांसा , दर्शन ग्रन्थ , संगीत   आदि  के  अध्ययन  से  अपाला  शीर्षस्थ  विद्वानों  की  श्रेणी  में  जा  पहुंची  l   अब  महर्षि  अत्रि  को  उसके  विवाह  की  चिंता  हुई  , त्वचा  के  इस  दोष  के  साथ  कौन  विवाह  करेगा  l  आखिर  उन्हें  ऐसा  आदर्श  पुरुष  मिल  गया   जो  उनका  शिष्य  भी  रह  चुका  था  --- कृशाश्व   के  साथ  अपाला  का  विवाह  वैदिक  रीति  से  संपन्न  हुआ  l  प्रारम्भिक  आकर्षण  में  तो  सब  गुण  दीखते  थे  ,  कुछ  समय  बाद  जब  ये  आकर्षण  कम  हुआ  तो   प्रेम  की  पावनता  उपेक्षा  और  तिरस्कार  में  परिवर्तित  हो  गई  l  इस  उपेक्षा  और  अपमान  से  अपाला  छटपटा  गई  ,  उसने  इस  संबंध  में  जब  कृशाश्व  से  पूछा  तो  उसने  कहा  --- प्रेम  के  स्थान  पर  सौन्दर्य  की  अभिलाषा  ने  उसके  आदर्श  को   तोड़  दिया  है  l  यह  सुनकर  उसे  पीड़ा  बहुत  हुई  लेकिन  उसका  स्वाभिमान  जाग  गया  l  उसे  यह  बोध  हुआ  कि  अपने  आत्मविश्वास , अपनी  शक्ति , अपने  पैरों  पर  खड़े  होने  का  भरोसा  ही   मनुष्य  की  सांसारिक  अपमान  से  सुरक्षा  कर  सकता  है  l  अपाला  पिता  के  घर  आ  गई  , उसने  अपना  कष्ट  किसी  से  कहा  नहीं  l   आचार्य  श्री  लिखते  हैं ----' मनुष्य  के  मन  में  बड़ी  शक्ति  है  , जिधर  लगा  दे   उधर  ही  समस्त  ज्ञान  के  कोष   एकत्रित   कर  देता  है  l  '    अपाला  ने  अपना   सारा  ध्यान  अपने  मन  और  आत्मा  के  परिष्कार  पर  केन्द्रित  कर  लिया  l   जप -तप , हवन -व्रत ,  पूजा -उपासना , योग , ध्यान , अनुशासन , नियम ,संयम    आदि  के  द्वारा  उसने  अपने   अंत:करण   को  पूर्ण  शुद्ध  कर  लिया  l  आत्मा  को  शुद्ध  और  सुघड़  बनाने  के  लिए  उसने   देवराज  इंद्र  की  उपासना  की , पिता  के  रूप  में  उनका  निरंतर  स्मरण  किया  l  शेष  संसार  से  उसका  संबंध  टूट  गया  , दिन -रात   एक  कर  दिए  उसने  इस  साधना  में  l  शरद  पूर्णिमा  की  रात  को  जब  सारा  संसार  निद्रा  में  था  ,  देवराज  इंद्र  उसके  सामने  प्रकट  हुए   l  अपने  आराध्य  को  सामने  देख  अपाला  की  आँखों  से  झर -झर  आंसू  बह  चले   l   भगवान  इंद्र  ने  वात्सल्य  भरे  ह्रदय   से   कहा --- " मैं  तुम्हारी  त्वचा  के  दोष  को  दूर  करता  हूँ  l  '   अपाला  ने  कहा --- देव  !  यह  शरीर  आज  नहीं  तो  कल  छूटेगा  l  यह  रुग्ण  रहे  या  रोग मुक्त   उससे  क्या  बनता -बिगड़ता  है  l  आप  मुझे  ऐसी  सामर्थ्य , विद्या  और  प्रकाश  दें   जिससे  मैं   इस  प्रसुप्त  भौतिक  आकर्षणों  में  डूबे  इस  संसार  को   कुछ  ज्ञान  दे  सकूँ , संसार  का  कल्याण  कर  सकूँ  l  ' तथास्तु ' कहकर  इंद्र  अद्रश्य  हो  गए  l  अब  अपाला  का  शरीर  पूर्ण  स्वस्थ  होकर  एक  अनोखी  कांति  , अनोखे  आकर्षण  से  चमकने  लगा  l  यह  बात  हवा  में  घुलकर   पूरे  आश्रम   और  राष्ट्रवासियों  के  अंत: करण  को  स्पर्श  कर  गई  l  कृशाश्व  ने  सुना  तो  वे  भी  दौड़े  आए   और  बड़ी  अनुनय -विनय  की  लेकिन  अब  अपाला  ने   साथ  जाने  से  इनकार  कर  दिया   और  अपना  शेष  जीवन  पिता  के  साथ  रहकर  धर्म  और   समाज  सेवा  में  बिताया   l    ऐसा   चमत्कार  हर  युग  में  संभव  है  l   योग   और  ध्यान साधना  , नियम , संयम , अनुशासन , निष्काम  कर्म   के  साथ  अपने  मन  और  विचारों  को  परिष्कृत  कर  के   , सन्मार्ग  पर  चलकर   इस  प्रदूषित  युग  में  भी   मनुष्य  स्वस्थ  रहकर  उस  अनोखी  कांति  को  पा  सकता  है  l