30 November 2018

WISDOM ---- मनुष्य अपने पाप कर्मों से उस स्थान विशेष को भी प्रदूषित करता है

`जिन  स्थानों पर  हत्या , लूट,  एक्सीडेंट ,  लोगों  को  सताना ,  पशु  हत्या   आदि  अमानवीय  कार्य  होते  हैं  ,  उस  स्थान  पर  नकारात्मकता  बढ़  जाती  है  l  ऐसे  स्थानों  पर  रहने  से   या  वहां  से  गुजरने  से  ही  मन  में  बुरे  ख्याल  आते  हैं , तनाव व  नकारात्मकता  बढ़  जाती  है   l  जब     महाभारत  होना  निश्चित  हो  गया   तो  भगवन  श्री कृष्ण  ने   अपने  दूतों  को  भेजा  और  किसी  ऐसे स्थान  का  पता  लगाने  कि  बात  कही  जिसका  इतिहास  कुख्यात  हो   l  एक  स्थान  पर   एक  भाई  ने  अपने  ही  भाई  की  हत्या  कर  दी  थी    ``l अत:  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  सोचा  कि  महाभारत  के  लिए    यही    स्थान  उपयुक्त  रहेगा   l  वे  चाहते  थे  अधर्म  पर  धर्म  की  विजय   हो ,  अन्याय  के  अंत  के  लिए  युद्ध  अनिवार्य  था   l  अत:  कुरुक्षेत्र  का  चयन  किया  गया  l 
  इसके  विपरीत  जिन  स्थानों  पर  मन्त्र जप  होते  हैं ,  ऋषियों  की  तप  स्थली  होती  है   वहां  जा  कर  मन  को  अनोखी  शांति  मिलती  है    l  

29 November 2018

WISDOM -----

       कभी  एक  अवगुण  इतना  भारी  होता  है  कि  वह  सारे  गुणों  को  ढक  देता  है   l  रावण  ने  सीताजी  का अपहरण  किया ,  यह उसका  इतना  बड़ा  दोष  था  जिसने  उसके  सारे  गुणों  को  ढक  दिया  l
 रावण  चारों  वेद   व  शास्त्र  का  ज्ञाता , बलशाली  और   महा तपस्वी  था   l  वह  महान  अर्थशास्त्री  था , तभी  तो  उसकी  सोने  की  लंका  थी   l  राजनीति  व  कूटनीति  में  कुशल  था  l रावण  एक  कुशल  संगठनकर्ता    था   l   उसने  बड़े  ही  असाधारण  ढंग  से  राक्षस , असुर  ,  दानव  आदि  प्रजातियों  को  संगठित  किया  l  इस  संगठन  संरचना  को  उसने    रक्षसंस्कृति  का  नाम  दिया  l  अपने  इस  संगठन  को  उसने  एक  महामंत्र  दिया --- ' वयं  रक्षाम: '  l  -- इसका  अर्थ  है  --- हम  रक्षा  करेंगे '  इसमें  संगठन  के  सभी  सदस्यों  की  सभी  आवश्यकताओं  की  पूर्ति  का  आश्वासन  है   l  सदस्यों   को    रावण  के  व्यक्तित्व   और  विचारों  में  आस्था  थी  l  दशानन  उनके  लिए   केवल  सेनापति  या  राजा  नहीं   था  , बल्कि  वह  उनके  लिए   गुरु  एवं  भगवान  था  l   उसका  यह  संगठन  भावनाओं  के  अटूट  बंधन  से  बंधा  था ,  इसलिए  अति  सुद्रढ़  था   l 
  रावण  के  व्यक्तित्व  के  अध्ययन  से  यही   शिक्षा  है   कि    केवल  एक  ही  अवगुण   मनुष्य  को  पतन  के  गर्त  में  धकेल  देता  है   इसलिए  जीवन  को  बहुत  सावधानी  से  जीना  चाहिए   l  

संत की महिमा

  गुरु  नानक  साहब  मुलतान  पहुंचे  l वहां  के  पीर - फकीरों  ने  उनकी  परीक्षा  ली  कि  यह  व्यक्ति  वास्तव  में  कौन  है  ?   उन  लोगों  ने  एक  दूध  से  लबालब  कटोरा  उनके  पास  भेजा  l  सन्देश  यह  था  कि   इसमें  एक  भी  अतिरिक्त बूंद  की  गुंजाइश  नहीं  है  l मुलतान  शहर  में   कई  पहुंचे  हुए  पीर - फकीर - संत  हैं  ,  उनके  लिए वहां  कोई  जगह  नहीं  है  l 
  गुरु  नानक देव   सब  जानते  थे  l  उनने  दूध  के  कटोरे  में  दो  बताशे  डाल  दिए  और  एक  गुलाब  की पंखुड़ी  डाल  दी   l   आशय  यह  था  कि   बताशा  अपनी  मिठास  से  जिस  तरह  दूध  को  मीठा  कर  देता  है   तथा  फूल  के  रहते   कभी  दूध  बिगड़  नहीं  सकता  ,  उसकी  सुगंध  ही  फैलती  है  ,  उसी  तरह  उनके  यहाँ  आने  से   किसी  को हानि  नहीं  पहुंचेगी  , उलटे  सत्संग  का   और  ज्ञान का  लाभ  ही  होगा  l सन्देश मिला  l  सभी  पीरों  ने जाना  कि   सचमुच  एक  औलिया`  सिद्ध  पुरुष  आया  है  l  सभी  उनसे  मिलने  आये  और  सभी  ने  मिलकर  सत्संग  का  आयोजन  किया   l  

27 November 2018

WISDOM ----- अध्यात्म का प्रथम सोपान ---- कर्मयोग अर्थात निरंतर प्रयास और पुरुषार्थ अनिवार्य है

  स्वामी  विवेकानन्द जब  अमेरिका  गए  तो  वहां   एक   ने  उनसे  सवाल  किया  ----- " क्या  आपने  हिंदुस्तान में  ब्रह्म विद्दा  सिखा ली  ?  हिंदुस्तान  में  ज्ञान  और  धर्म  का  प्रचार  हो  गया  ,  जो  इतना  लम्बा    सफर   कर के  यहाँ  आये   ? " स्वामी  ने  गम्भीरता  से  उत्तर  दिया ------ " हमारा  भारतवर्ष    तमोगुण  में  डूबा  हुआ  है    आप   एक  क्लास  आगे  बढ़  गए  हैं  ,  आप  रजोगुण  में  हैं   इसलिए  आपको  उसके  आगे  -- सतोगुण  का  पाठ  सिखाने  आये  हैं  l  हम  आपको  न  तो  भजन    की   शिक्षा  देने  आये  हैं   और  न  ही   संयम  और  सेवा   की  l  आप  सामर्थ्यवान  हैं    और  सामर्थ्यवान  को   त्याग    की    शिक्षा  दी  जा  सकती  है, ज्ञान , ध्यान  और  प्रेम  की शिक्षा  दी  जा  सकती  है   लेकिन  जहाँ  गरीबी  है  , बेरोजगारी  है  वहां  ध्यान  और  त्याग  की  शिक्षा  कैसे   दे  सकते   हैं   l  "  
  हजारों   वर्षों  की  गुलामी  के  कारण    भारत  अभी  भी  तमोगुण  अर्थात  जड़ता   की  स्थिति  में  है   यहाँ  कर्मयोग  के   शिक्षण  की  जरुरत  है  l
   तुलसीदासजी  ने  भी  लिखा  है ---- ' सकल  पदारथ  हैं  जग  मांहीं,  करमहीन  नए  पावत नाहीं  l 
  कर्मकांड  और  आडम्बर  छोड़कर  आज  लोगों  को  कर्मयोगी  बनने  की  जरुरत  है  l  

26 November 2018

WISDOM ----- वर्तमान अध्यात्म

  पं. श्रीराम शर्मा  आचार्य जी  ने    अपनी  क्रांतिधर्मी पुस्तिका  ' परिवर्तन  के  महान  क्षण  ' में  लिखा  है --- " जो  लोग  धर्म  और अध्यात्म   को   चर्चा - प्रसंगों   में  मान्यता  देते  हैं  ,  वे भी निजी  जीवन   में  प्राय:  वैसे  ही  आचरण    करते  देखे  जाते  हैं  ,  जैसे कि  अधर्मी  और  नास्तिक  करते  देखे  जाते  हैं  l   धर्मोपदेशकों  से  लेकर  धर्म ध्वजियों   के  निजी  जीवन  का   निरीक्षण - परीक्षण     करने   पर   प्रतीत  होता  है   कि  अधिकांश  लोग   उस   स्वार्थपरता   को  ही  अपनाये  रहते  हैं  ,  जो  अधार्मिकता  की  परिधि  में  आती  है   l  आडम्बर , पाखण्ड   और  प्रपंच  एक  प्रकार  से  नास्तिकता  ही  है  , अन्यथा  जो   आस्तिकता   और  धार्मिकता  की  महत्ता  भी  बखानते  हैं   ,  उन्हें  स्वयं  तो  बाहर - भीतर  से  एकरस  होना  चाहिए  था   l  जब  उनकी  स्थिति    आडम्बर  भरी  होती  दीखती  है    तो  प्रतीत  होता  है   कि  लोगों  की  आँखों  में    धूल  झोंकने   या  उनसे  अनुचित  लाभ   उठाने  के लिए  ही   धर्म  का  ढकोसला   गले  से  बाँधा   जा  रहा  है  l ----------  यह  स्थिति भयानक  है   l        ( पृष्ठ  6 एवं 7 )  
  आचार्यजी  का  कहना  है   कि   विज्ञान  की  पराकाष्ठा   के  इस  युग  में   जितनी  तेजी  से  पाखंड  और  आडम्बर  बढ़ा  है  ,  वह  आश्चर्यजनक  ही  नहीं ,  समाज  विज्ञानियों  के  लिए  एक  शोध  का  विषय  भी  हो  गया  है   l   

25 November 2018

WISDOM ----- संसार में सबसे बड़ा कर्तव्य क्या है ?

  एक  राजा  पंडितों , विद्वानों  से प्रश्न   पूछता  था  कि  संसार  में  सबसे  बड़ा  कर्तव्य   क्या  है  ?  विद्वानों  के  उत्तर  से   राजा  संतुष्ट  नहीं  हो सका  l  एक  दिन  राजा  शिकार  के  लिए  जंगल  गया  और  शिकार  का  पीछा  करते  - करते  रास्ता  भटक  गया  l  खोज  करने  पर  एक  आश्रम  दिखाई  दिया  , जहाँ  एक  संत  ध्यानस्थ  थे  l  राजा  प्यास  से  बेहाल  था  ,  संत  को  पुकारते हुए  बेहोश  हो  गया  l  होश  आने  पर  राजा  ने  देखा  कि   संत  उसके  मुंह  पर  पानी  के  छींटे मार रहे  थे  l  राजा  ने  विनम्रता  से  कहा --- " भगवन  !  आप  तो  समाधि  में  लीन  थे  l  आपने  मेरे  लिए  समाधि  क्यों  भंग  की  l  "  संत  ने  राजा  से  कहा ---- " राजन !  आपके  प्राण  संकट  में  थे  l  ऐसे  समय  मेरे  लिए   ध्यान  की  अपेक्षा  आपकी  सहायता  के  लिए  तत्पर  होना  ज्यादा  महत्वपूर्ण  कार्य  था  l  समय  और  परिस्थिति  को  देखते  हुए  ही  कर्तव्य  का  निर्धारण  करना  चाहिए  l  "  संत  के  इस  कथन  से   राजा  को  अपने  प्रश्न  का  उत्तर  भी  मिल  गया  कि    सर्वोपरि  कर्तव्य  का   निर्णय   परिस्थिति  को  देखकर  ही  किया  जा  सकता  है   l  

24 November 2018

WISDOM ---- ईश्वर की शरण में जाने से ही भय से मुक्ति संभव है

 लाओत्से  ने  कहा  है --- अगर  मजे  से  रहना   हो  तो  आखिरी  में  रहना   l  जो  अंतिम  में  खड़ा है  उसे  कोई  धक्का  देने  नहीं  आएगा  l  अगर  प्रथम  होने  की  कोशिश  होगी   तो  फिर  अनेकों  आ  जायेंगे  ,  पीछे  खींचने  के  लिए   l  इसलिए  स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  को   हमेशा   बड़ी  बेचैनी  बनी  रहती  है   l  वे  सबसे  अधिक भयभीत  रहते  हैं  l  कोई  भी  तप  से  ऊपर  उठने  की  कोशिश  करे   तो  उन्हें बड़ी  घबराहट होने  लगती  है  l  

23 November 2018

WISDOM ---- नेकी और परोपकार की राह पर चलना ही सच्चा धर्म है ----- गुरु नानक

 गुरु  नानक  ने  कहा  कि    तरह - तरह  के  कर्मकांडों  में  लगे  रहना ,  पूजा - पाठ  का  ढोंग  करना   और  इन  बातों  के  नाम  पर   आपस में  झगड़े,  द्वेष भाव ,  कलह  फैलाना   किसी  प्रकार  का  धर्म  नहीं  कहा   जा   सकता   l  वे  आंतरिक  पवित्रता  को  आवश्यक  मानते  थे   l  उनकी  अधिकतर  शिक्षाएं  ' जप जी ' नामक  गीत  में  बड़े  सुन्दर  ढंग  से  प्रस्तुत  की  गईं  हैं   l मुसलमानों  में  कुरान  को   और  ईसाइयों  में  बाइबिल  को  जो  गौरव  प्राप्त  है   वह  सिख  समाज  में  ' जप जी '  को  है  l 
         ' गुरु  नानक  शाह  फकीर  l
            हिन्दू  का  गुरु  मुसलमान  का  पीर   l  

22 November 2018

WISDOM ---- उपदेश के साथ सेवा अनिवार्य रूप से जुड़ी हो तभी वह सच्ची लोकसेवा है

    भगवन  बुद्ध  ने   कहा  है ---- " प्रवचन - उपदेश  के  साथ  सेवा  अनिवार्य  रूप  से  जुड़ी  होनी  चाहिए  क्योंकि   सेवा  में  मिलने  वाले  कष्टों  से  ,  अपमानजनक  पीड़ाओं  से  व्यक्ति  का  जीवन  परिशोधित  होता  है  ,  इससे  अहंकार  का  विनाश  होता  है   और  सेवा  से  ही  संवेदना  विकसित  होती  है   l  "
  पं . श्रीराम शर्मा  आचार्य जी  ने  भी   अपने  परिजनों  को  यही  समझाया  कि   ---"  भविष्य  में  कोरे  प्रवचन  काम न  देंगे ,  सच्ची  लोकसेवा  को  ही  प्रतिष्ठा  मिलेगी   l  जो  आज  केवल  धार्मिक  आडम्बरों  में   रत  हैं  ,  कल  का  भविष्य  उन्हें  अस्वीकृत   व  तिरस्कृत  कर  देगा   l  बदलते  हुए  समय  में  युग  की  यही  मांग  है  कि  परिजनों  को  आसपास  के  क्षेत्रों  में  सेवा  कार्यों  में  जुट  जाना  चाहिए  l  सेवा  से  ही  संवेदना  विकसित  होती  है  और  आज  की  सभी  समस्याओं  का  एकमात्र  हल --- संवेदना    है  l 

21 November 2018

WISDOM ----- मनोविकारों से मुक्त होकर ही राम राज्य की स्थापना संभव है

 काम , क्रोध , लोभ , मोह  , ईर्ष्या - द्वेष   --- ये  मनोविकार  ही  परिवार और   समाज  में  अशांति  उत्पन्न  करते  हैं   और  इन  मनोविकारों  से  ग्रस्त  व्यक्ति  स्वयं  कष्ट  उठाता  है  l  युग  चाहे  कोई  भी  हो  ,  जिसमे   भी  ये  मनोविकार     होते  हैं   , प्रकृति  उन्हें  अपने  तरीके  से  दण्डित  करती   है  l 
   रामचरितमानस  में  हम  देखें  तो   राजा  दशरथ  महारानी  कैकेयी  के  सौन्दर्य  पर  मुग्ध  थे  , महारानी  को  अपने  सौन्दर्य  का  बहुत  अभिमान  व  अहंकार  था  l  इससे  भी  अधिक  घातक  था  मंथरा  जैसी  दासी  का  कुसंग   l   इस  कुसंग  ने  महारानी  कैकेयी   के  अहंकार  और  क्रोध  को  इतना  उभार  दिया  कि   राम पर  अपने  पुत्र  से  भी ज्यदा   वात्सल्य  लुटाने  वाली  कैकेयी  ने   राम   के   राजतिलक  को  रुकवाकर   अपने  पुत्र भरत    के  लिए  राज सिंहासन   और  राम  के  लिए   चौदह  वर्ष  का    वनवास  माँगा   l  मंथरा   भी बहुत  ईर्ष्यालु  थी  वह  राम  से ईर्ष्या   करती  थी  और   भरत  को  अधिक   महत्व   देती  थी  l    
  राजा  दशरथ   अपने  पुत्र  राम  से  अतिशय  मोहग्रस्त  थे  l 
  इसी   तरह    द्वापर युग  में  धृतराष्ट्र  पुत्रमोह  में  अंधे  थे ,  दुर्योधन  अति  अहंकारी  था  l   हर  युग  में  मनुष्य  इन  मनोविकारों  से  ग्रस्त  रहा  है   लेकिन  वर्तमान  में   इन  मनोविकारों  का   रूप   अत्यंत  भयावह  और  विकृत  हो   चुका    है   l  कर्मकांड  और   आडम्बर  को  ही  सब  कुछ  मानने  के  कारण  मनुष्य  की  चेतना  सुप्त हो  गई  है  , मनुष्य  संवेदनहीन  हो  गया  है   l  महाकाव्यों  से  शिक्षा  लेने  की  जरुरत  है  l  

20 November 2018

WISDOM ---- सुख से जीवन जीना है तो तृष्णा को कम करना होगा

 वस्तुओं के  प्रति  आकर्षण ,  अतृप्त  इच्छाओं  का  नाम  ही  तृष्णा  है   l
  'बढ़त  बढ़त  सम्पति  सलिल   मन  सरोज  बढ़  जाये  l
  घटत -घटत  फिर  न  घटे   बस  समूल  कुम्हलाय   l l
  भाव  यह  है  कि  कमल  का  फूल  पानी  में  डूबता  नहीं  l  पानी  बढ़ने   से  कमलनाल  बढ़ती  जाती  है   पर  पानी घटने  से  घटती  नहीं ,  समूल  कुम्हला  जाती  है   l  सम्पतिवानों  की  इच्छाएं  असीम  बढ़ती  जाती  हैं  , पर  जैसे  ही सम्पति  गई   इच्छाएं  घटती  नहीं  ,  भाव ( आदत )  बनी  रहती  है  l 
  यह  तृष्णा  ही  मनुष्य  की  अशांति  और  तनाव  का कारण  है   l   . ' रामचरितमानस '  में  सुरसा  के  प्रसंग  के  माध्यम  से  इसका  समाधान  सुझाया  है -----   श्री हनुमानजी  जब  सीताजी  का  पता  लगाने  के  लिए  लंका  में  अन्दर  जाने  लगे   तो  सुरसा नामक  राक्षसी  ने  उन्हें  पकड़  लिया   और  मुंह  में  रखकर  चबाने  लगी   l  हनुमानजी  ने  अपना  बदन  बढ़ाना  शुरू  किया   तो  सुरसा  ने  भी  अपना  मुंह  फाड़  दिया ----
   " जस - जस  सुरसा  बदनु  बढ़ावा  l
      तासु  दूंगा  कपि  रूप  देखावा  l l "
 बढ़ते - बढ़ते  जब  उन्होंने  देखा  कि  सुरसा  का  मुंह   सोलह  योजन  का  हो  गया   तो  हनुमानजी बत्तीस  योजन  के   हो  गए  l  अब  हनुमानजी  समझ  गए   कि  यह  सुरसा  कम  होने  वाली  नहीं  है  ,  यह  अपना  मुंह  कई  योजन  और  चौड़ा  कर  लेगी  l   अत:  हनुमानजी  ने        ' अति  लघु  रूप  पवनसुत  लीन्हा   l  '
  बहुत  छोटा  सा  रूप  बना  लिया  l
  ' मसक  समान  रूप  कपि  धरी  l '   --- छोटा  सा  रूप  बनाकर   सुरसा  की  दाढ  से    निकल  गए  l
                     मनोकामनाओं   की  कोई  सीमा  नहीं  है   l  रावण , सिकंदर , हिरण्यकशिपु  किसी  की  कामनाएं  पूरी  नहीं  हुईं   फिर  हमारी  और  आपकी  कैसे  पूरी  हो  सकती  हैं   ?  

19 November 2018

WISDOM ---- अध्यात्म हमारे सोचने के तरीके को ठीक करता है

 विचार   करने  की  दो  श्रेणियां  हैं ----   सोचने  का  एक  तरीका  यह  है  कि  हमारी  इच्छानुकूल  वस्तुएं  मिलें  तभी  हम   दुनिया  में  सुखी  रहेंगे  l  यह  है  भौतिकवादी  द्रष्टिकोण   l   दूसरा  द्रष्टिकोण  है  अध्यात्मवादी  द्रष्टिकोण  --- यह  हमारे  सोचने  के  तरीके  को  ठीक  करता  है  l  यदि हमारा  सोचने  का  तरीका  सही  है   तो  हम  साधारण  सुख - सुविधाओं  में  , अपने  एक  कमरे  में  रहकर  भी  सुख - शांति  से रह  सकते  हैं   लेकिन  चिंतन  सही   न   होने  से  हम  सारा  संसार  भी  घूम  आयेंगे  तब  भी  मन  अशांत  रहेगा ,  समस्याएं  बनी  रहेंगी  l   बाहरी   चीजों  से  आज  तक  किसी  को  भी  सुख - शांति  नहीं  मिली  है  l  शान्ति  हमारी  मन:स्थिति   है  जो  सही  ढंग  से  जीवन  जीने  से  हमें  मिलती  है   और  अध्यात्म  हमें   सही  ढंग  से  जीवन  जीना  सिखाता  है  l     

18 November 2018

WISDOM ----- अकेलेपन का सार्थक उपयोग करें

  दुनिया में  जो  भी  उपलब्धियाँ हैं ,  सिद्धियाँ  हैं , वे  भले  ही  संसार  के  सम्मुख  हों  , लोगों  से  घिरी  हों  , लोग  उनका  उपभोग  करते  हों  , लेकिन  उनकी  उत्पति  एकांत  के  माहौल  में  ही  होती  है  l 
 हमारे  अन्दर  की  प्रतिभा , क्षमता , रचनात्मकता  का  विकास   हमारे  स्वयं  के  पुरुषार्थ  से  होता  है   और  इसके  लिए  हमें  एकांत  की  आवश्यकता  होती  है  l  शोर - गुल  में  हम  पूरी  तरह  एकाग्र  नही  हो  पाते,  एकांत  में  ही  मन  शांत  और  स्थिर  होता  है   जिससे  साधना  के  मार्ग  पर  आगे  बढ़ने में  मदद  मिलती  है  l      एक    चीनी  साहित्यकार   हैं ---- मो  यान  l  वे  चीन  के  पहले  ऐसे  लेखक  हैं  जिन्हें  साहित्य  के  लिए  नोबेल  पुरस्कार   प्राप्त  हुआ  है  l   वे  कहा  करते  थे  एकांत  मेरे लेखन  का  अभिन्न  एंग  है   l   आर्थिक  तंगी  के   कारण  उन्हें   वीद्दालय  छोड़कर  मवेशी  चराना पड़ा   l  मवेशियों  के  बीच  वे  अकेले  होते  थे  l  यह  एकांत  उन्हें  इतना   पसंद  आया   कि  उन्होंने  अपना  नाम   ' ग्वान  मोए '  से  बदलकर   ' मो  यान  रख  लिया  , चीनी  भाषा  में  इसका  अर्थ  होता  है  मत  बोलो   l 
  एकांत   में  हम  अपनी  उर्जा  का  सकारात्मक  उपयोग कर  उसे  सार्थक  करें   l  

16 November 2018

WISDOM ------ प्रत्येक श्रेष्ठ और महान कार्य की सफलता में गंभीर मौन सहायक रहा है l

  सार्थक  मौन  उसे  कहते  हैं  जब   मन  में  श्रेष्ठ  चिंतन  और  ईश्वर  स्मरण  चलता  रहे   l
 जब  व्यक्ति  बोलता  है   तो  जिह्वा  हावी  रहती  है   लेकिन  मौन    की    अवस्था में  अंतर  बोलता  है  ,  हमें  अपने  अंतर  को  बोलने  का  मौका  देना  चाहिए  क्योंकि  इसी  में  जीवन  का  सारा  मर्म    छुपा   है   l 
   गांधीजी  के  मौन  का   प्रभाव   ऐसा  विलक्षण  और  अद्भुत  था   जिसने  कभी  न  अस्त  होने  साम्राज्य  को  पराजय  का कडुआ  घूंट  पिला  ही  दिया   l 
 अरुणाचलम  के  महर्षि  रमण  सदैव  मौन  रहते  थे  l  परन्तु  उनका  मौन  उपदेश  आत्मा  की  गहराई   में  उतर   जाता  था  l  हर  कोई उनसे  अपनी  गंभीर  समस्या  का  समाधान   अनायास  ही  पा  जाता  था  l   अंग्रेजी  साहित्य  के  महान  कवि   वर्ड्सवर्थ    अपने  काव्य  को   मौन  और  नीरवता  का  वरदान   कहा  करते  थे  l 
  जीवन  में  श्रेष्ठ  एवं  सार्थक  कार्य   के  लिए   मौन  को  एक  व्रत  मानकर  अपनाना  चाहिए   l  

15 November 2018

WISDOM ------

 एक  मिटटी के  ढेले  से  सुगंध  आ  रही  थी  तथा  दूसरे  से  दुर्गन्ध   l  दोनों  जब  मिले  तो  आपस  में  विचार  करने  लगे   कि  हम   दोनों  एक  ही  मिटटी  के  बने  हैं  ,  फिर  इतना  अंतर  क्यों   ?  सुगन्धित  ढेले  ने  कहा ---- ' यह  संगति  का प्रतिफल  है   l  मुझे  गुलाब  के  नीचे  पड़े  रहने  का  अवसर  मिला   और  तुम  गोबर  के  नीचे  दबे  रहे  l  '  यह  संगत  का  असर  है   l  

14 November 2018

WISDOM ------ सच्चा अध्यात्म

  पं.  श्रीराम  शर्मा   आचार्य जी  ने  अपने  प्रवचनों  में  यह  स्पष्ट  रूप  से  कहा  कि --"  अध्यात्म  किसी  जादूगरी  का  नाम  नहीं  ,  बल्कि  श्रेष्ठ  विचारों ,  ऊँचे  विचारों ,  आदर्श  विचारों  और  सही  विचारों  को  जीवन  में  उतारने  का  नाम  है  l  "  उनका  कहना  है  कि   मनुष्य  सारी  संपदाओं  का  स्वामी  होते  हुए  भी  विपन्नताओं  से  इसलिए  घिरता  है  ,  क्योंकि  उसने  अपने  जीवन  में  असंयम  को  स्थान  दे  दिया  l  वे  जीवन  में  संयम  और  अनुशासन  लाने  को  अध्यात्म  घोषित  करते  हैं  और  कहते  हैं  कि   सच्चा  अध्यात्म  आने  पर  मनुष्य  का  आहार  और  विहार  दोनों  परिष्कृत  होते  हैं  और  उसके  व्यक्तित्व  के   प्रत्येक  आयाम  में  उत्कृष्टता  की  छाप  दिखाई  पड़ती  है  l 
    जब  अध्यात्म  का  जीवन  में  प्रवेश  होता  है   तो  जीवन  कैसे  रूपांतरित  हो  जाता  है  ,  एक   उदाहरण  है --------    कर्नाटक  के  एक  छोटे  से  गाँव  में   एक  साधारण  गृहस्थ  के  घर  एक  कन्या  जन्म  लिया , जो  बड़ी  सुंदर  युवती  बनी ,  नाम  था ---- अक्का  महादेवी  l  इस  साधारण  ग्राम बाला  ने  प्रतिज्ञा   की   कि  वह  आजीवन  ब्रह्म्चारिणी  रहकर   ईश्वर - उपासना   और  राष्ट्र सेवा  करेगी ,  कभी  भी  विधर्मियों  को  अपने  देश  में  घुसने  नहीं  देगी  l  संयम   की   तेजस्विता  ने   उसकी  कांति  में  और  वृद्धि  कर  दी  l  तत्कालीन  मैसूर  के  राजा  कौशिक  ने   अद्वितीय  सौन्दर्य  की  धनी   अक्का महादेवी  से  विवाह  का  प्रस्ताव  रखा  l  वे  अपनी  अति  कामुकता  और  ढेरों  उप पत्नियों  के  लिए  प्रसिद्ध  थे  l अक्का महादेवी  ने  मना  कर  दिया  l  कौशिक  ने  उसे  अपमान  मानकर  अक्का  के  माता - पिता  को  बंदी  बनाकर  पुन:  प्रस्ताव  भेजा  l  अक्का   ने  माता - पिता  की  खातिर   प्रस्ताव  मान लिया  , लेकिन  एक  शर्त  पर  कि  वे  समाज  सेवा , संयम - साधना  का  परित्याग  नहीं  करेंगी  l   राजा  कौशिक  ने  यह  बात  मान  ली  l
      विवाह  के  बाद   अपनी   निष्ठा  से   उन्होंने  कामुक  पति  को  संत  बनाकर  सहचर  बना  लिया   l  अक्का  और  कौशिक  दोनों  ने   कन्नड़  संस्कृति  की  रक्षा  के  ढेरों  प्रयास  किए  ,  जिनकी  विरुदावली  आज  भी   गाई  जाती  है   l 

13 November 2018

WISDOM -----

महाभारत  में  धर्मराज    युधिष्ठिर   और  यक्ष  के  मिलने   का  प्रसंग  है  l  यक्ष  उनसे  कई  प्रश्न  पूछता  है   ,   इसी  क्रम  में  यक्ष  ने  उनसे  पूछा ---- " इस  संसार  का  परम आश्चर्य  क्या  है   ?  किमाश्चर्य  परम  ? "
  युधिष्ठिर  ने  उत्तर दिया ------ " सबसे  बड़ा आश्चर्य  है  कि   मृत्यु   को   सुनिश्चित  घटना  के  रूप  में  देखकर  भी   मनुष्य  इसे  अनदेखा  करता  है   l  वह  मृत्यु  की  नहीं ,  जीवन  की  तैयारी  कुछ  इस  अंदाज में  करता  है  ,  जैसे  विश्वास  हो  कि  वह  कभी  मरेगा  ही  नहीं  l  उसे  सदा - सदा  जीवित  रहना  है   l  " 
  मृत्यु  का  अनुभव  सिर्फ  उन्ही  को  होता  है,  जिनकी  मृत्यु  होती  है   l
  मृत्यु  का  बोध  हो  जाये   तो  जीवन  सार्थक  हो  जाता  है   l 
    ' जब  आया  था  इस  दुनिया  में ,  सब  हँसते  थे  तू  रोता  था  l
      अब  ऐसी  करनी  कर  जग  में  सभी  रोयें  तू  हँसता  जा   l   

12 November 2018

WISDOM ------

   एक  राज्य  में  एक  दानी  राजा  था  l  उसके  महल  में  हर  समय   याचकों  की  भीड़  लगी  रहती  थी  l  एक  बार  एक  संत  उस  राज्य  में  पधारे   l   उन्हें  राजा  की  दानी  प्रवृति  के  बारे  में  पता  चला  तो  वे  राजा  से  मिलने  पहुंचे  l  राजा ने  उनका  यथोचित  स्वागत - सत्कार  किया  और  पूछा ---- " महात्मन  !  मैं  आपकी  क्या  सेवा कर  सकता  हूँ  ? " संत  बोले ---- "  राजन  ! आप  दानवीर हैं  l  लेकिन  आपसे  बिना  परिश्रम  का  धन  पाकर   आपकी  प्रजा  श्रम  से  विमुख   हकर  आलसी  बन  गई  है  और  यों  ही  दान  पा  लेने  से   उनके  जीवन  में  कोई   सार्थक  परिवर्तन  भी  नहीं  आ  रहा  है   l  I इससे  अच्छा है   कि  आप  उन्हें   रोजगार  के  साधन  उपलब्ध  कराएँ   l  "  राजा  को  संत  का  कथन  सही  लगा   और  उसने  वहि  पथ  अपना  लिया   l   

9 November 2018

WISDOM----- अनीति और अधर्म का अंत अत्यंत त्रासदीपूर्ण और वीभत्स होता है l

 अनाचारी और  अधर्मी  स्वयं को  सबसे  अधिक  शक्तिशाली  मानते  हैं  , उन्हें  यह  गलतफहमी  हो  जाती  है  कि  उनका  कोई  बाल-बांका  भी  नहीं  कर  सकता  l   ऐसे  लोग  अपने  से  अधिक  सामर्थ्यवानों  से  नहीं  टकराते ,  ये  ऐसे लोगों  को  सताते  हैं  जो  पहले  से  ही हैरान , परेशान  और  पीड़ित  होते  हैं  l  कमजोर  और  दुर्बल जन   जब  इस  अत्याचार  का  प्रतिरोध  नहीं  कर  पाते  तो  इनका  हौसला  बढ़  जाता  है  और  ये  और अधिक  अत्याचार  करने  पर  उतारू  हो  जाते  हैं  l 
  अत्याचारी  और  अनाचारी  ह्रदयहीन  और  कायर  होते  हैं  ,  ये  अशक्त ,  निरीह  ,   बूढ़े  और  बच्चों  पर  भी  निर्ममता  से  वार  करते  हैं   किन्तु  इन्हें  स्वयं  पर  विश्वास  नहीं  होता  , इनका  अंतर  भय  और  अविश्वास  से  परिपूर्ण  होता  है  l  ये  सदा  डरते  रहते  हैं  कि  कोई   अधिक  बलशाली  इनके  वर्चस्व  को  समाप्त  न  कर  दे  l 
  हमारे  धर्मग्रंथों  में  इसके  उदाहरण  हैं --- वानरराज  बाली  स्वयं  बहुत  बलवान  था  और  उसे  यह  वरदान  था  कि  जो  भी  उसके  सामने  आयेगा  उसका  आधा  बल  उसके ( बाली ) पास  आ  जायेगा  ,  किन्तु  फिर  भी  वह   भयभीत  रहता  था  उसने  अजन्मे  हनुमान , जो  माता  अंजनि  के  गर्भ  में  पल  रहे  थे  ,  को  भयानक  विष  देकर  मारने  का  उपक्रम  किया   और  इसमें  असफल  होने  के  उपरांत   उसने  हर  वह  षड्यंत्र  किया  ,  जिससे  नवजात  हनुमान  समाप्त  हो  जाएँ   l
इसी  तरह  अधर्मी  मामा  कंस  ने  अपनी  ही  बहन   की  सात  नवजात  संतानों  को  मौत  के  घाट  उतार  दिया   l  आखिर  इन  अत्याचारियों  का  अंत  हुआ  l  इनके दुष्कर्मों  का  परिणाम   आने  में  देरी  भले  ही  हो  ,  परन्तु  जिस  अज्ञात  भय  , असंतोष  और  अशांति  की  पीड़ा  से   इनका  समय  गुजरता  है  , वह  बड़े - से - बड़े  दंड  से  कम  नहीं  होता  है  l   कर्मफल  से  कोई  नहीं  बचा  है  l   

WISDOM -------

   एक   राजा  अपने  मंत्री के  साथ  शिकार  पर निकला   l   आखेट  के दौरान   राजा  की  ऊँगली  कट  गई   और  रक्त  बहने  लगा  l  यह  देख  मंत्री  ने  राजा  से  कहा ----- " चिंता न  करें  राजन  ! भगवान  जो  करता  है  अच्छे  के  लिए करता  है  l " राजा  पीड़ा  से  व्याकुल  थे  ,  ऐसे  में  मंत्री  का  कथन  सुन  क्रोध  से  तमतमा  उठे   l  आज्ञा  दी  कि  मंत्री  उसी  समय  उनका  साथ  छोड़कर   अन्य  राह  पकड़  लें  l  मंत्री  ने सर  झुकाकर  राजाज्ञा  स्वीकार  की   और  भिन्न  दिशा  में  निकल  पड़े  l 
  राजा  कुछ  दूर  चले  ही   थे  कि  नर भक्षियों  के  एक  दल  ने  उन्हें  पकड़  लिया   और  उनकी  बलि   देने  की  तैयारी  होने लगी  l  तभी  उनकी  कटी   उंगली  देख  नर भक्षियों   का    पुजारी   बोला --- " अरे !  इसका  तो  अंग भंग  है  ,  इसकी   बलि    स्वीकार  नहीं  की  जा  सकती  l  " राजा  को  जीवनदान  मिला  तो उसे  अपने  ईश्वर भक्त  मंत्री  की    याद   आई   l   वे  तुरंत  मंत्री  की  तलाश  में  निकल  पड़े   l  मंत्री  नदी  के किनारे  भजन  में  तल्लीन  थे   l  राजा  ने  मंत्री  को  गले  लगाया  और  सारी   घटना   सुनाई   और पूछा   कि  मेरी  उंगली  कटी   तो  इससे भगवान  ने  मेरी  जान  बचाई  ,  पर  मैंने  तुम्हे   इतना  अपमानित  किया  तो  उसमे  तुम्हारा क्या  भला  हुआ  ? " मंत्री   बोले  --- ' राजन  !  यदि  मैं  भी  आपके  साथ  होता  तो   अभी  आपके  स्थान  पर मेरी  बलि  चढ़  चुकी  होती  ,  इसलिए  भगवान  जो  भी  करते  हैं  ,  मनुष्य  के  भले  के  लिए  ही करते  हैं  l  "

6 November 2018

WISDOM ----- जब बल - सामर्थ्य अनीति के विरुद्ध निर्बलों की सहायता के लिए प्रयुक्त होता है तो वह भगवान की विभूति है

  विनोबा  भावे  ने  एक  पुस्तक  लिखी  है  ' चिरयौवन  की  साधना '   उसमे  एक  श्लोक  की  व्याख्या  करते  हुए  वे   हनुमानजी  को  चिरयुवा  कहते  हैं   l  हनुमानजी  कभी  वृद्ध  नहीं  हुए  l   अनीति  के  विरुद्ध  संघर्ष  के  कारण  यह  संज्ञा  उनने  दी  है  l वे  कहते  हैं  कि  मात्र  हनुमानजी  चिरयुवा हैं  और कोई  नहीं   l  वे  लिखते  हैं  कि  कुम्भकरण  और  रावण  बड़े  बलशाली  थे  , पर  दोनों ने  अपने  बल  को  कामनाओं  की पूर्ति  के  लिए   प्रयुक्त  किया   l  बाली  भी   अत्यंत  बलशाली  था   उसने   रावण  तक  को  परास्त  कर  दिया  था  ,  पर   कामवासना  के  वशीभूत    हो  रावण  और  बाली  दोनों  का  ही  बल  व्यर्थ  गया   l
  हनुमानजी  ने  अपने  निष्काम बल  से  सारी  लंका  उजाड़  दी    और  सुग्रीव   की  मदद  के  लिए  श्रीराम  से  बाली  का  वध  करवाया   l  समर्पण  भाव  से ,  कामना  रहित  बल  के  प्रभाव  से  उन्होंने  लंका जला  डाली   l          कहते  हैं  यदि  आप  भगवान  श्रीराम  की कृपा  चाहते  हैं   तो   हनुमानजी  को  प्रसन्न  करो   l    उन्हें   प्रसन्न  करने  के  लिए   घंटी बजाना , कर्मकांड  करना  इतना  जरुरी  नहीं  है  l  उन्हें  प्रसन्न करना  है  तो   उनकी  तरह  अनीति , अत्याचार  के  विरुद्ध  संघर्ष  करो  l   जो  ऐसा  करता  है   उसके  भीतर  भी  हनुमानजी  का  बल  आ  जाता  है  l  द्वापरयुग  युग  में  महाभारत   के  युद्ध  में  जब    अर्जुन   अनीति  के  विरुद्ध  युद्ध  करने  को   तैयार हुआ   तब  हनुमानजी  अपने  बल  सहित   उनके  रथ  की  ध्वजा  पर  विराजमान  थे   l  

4 November 2018

WISDOM ----- भगवान राम के प्रति सच्ची श्रद्धा है तो उनके सद्गुणों को अपने जीवन में उतारें

 भगवान  राम , लक्ष्मण  एवं  सीताजी  ने  पिता  की आज्ञा  से   14 वर्ष  का   अरण्यवास  किया  l  निरंतर  तप  या अनीति  से  संघर्ष  करते  ही   जीवन  बीता   l  साधनहीन  थे , राजकुमार  होकर  भी  वल्कल  वस्त्र  में  अति  प्रसन्न  मन:स्थिति  में  रहते  थे  l  सम्राट  से  भी  ज्यादा  सुखी - संतुष्ट  थे  l
 एक  विलक्षण बात  है  कि  जब  वे  वन  में  तप  कर  रहे  थे ,  राक्षसों  का  संहार  कर  रहे  थे  ,  तब  उन  चौदह  वर्षों  में   पूरी  अयोध्या  के  परिजन  भी   धार्मिक  अनुष्ठानों  , जप - तप - व्रत  में  लीन  थे  l  इन  चौदह  वर्षों  में   किसी  भी  घर  में  एक  भी  संतान  नहीं  जन्मी   l  ऐसा  कठोर  तप  अयोध्यावासियों  ने   अपने  प्रभु  राम  के  लिए  किया   l     भगवान    लौटकर  आने  के  एक  वर्ष  बाद  घर - घर  में  किलकारियां    गूंजी   l   वाल्मीकि  रामायण  में  यह  प्रसंग    आता  है  कि  भरत    साथ   पूरी अयोध्या  ने  तप  किया  l  

3 November 2018

WISDOM ---- दूसरों के दोष - दुर्गुण देखना मनुष्य के व्यक्तित्व का नकारात्मक पहलू है

 दूसरों  की  बुराई  करना  ,  उनमे  दोष - दुर्गुण  देखना  --- यह  एक  ऐसी  आदत  है  जिसके  कारण  व्यक्ति  अपने  लक्ष्य  से  भटक  जाता  है   l  बुराई  करने  की  इस  आदत  के  कारण    ही  परिवार  में  लड़ाई - झगड़े  होते  हैं  l   इस  आदत  का  सबसे  दुःखद   परिणाम  यह  है कि--- जो    व्यक्ति   दूसरों  की  बुराई  करता  है ,  उनमे   कमियां    ढूंढता  है    उसके  चारों  और  एक  नकारात्मक  औरा   बन  जाता  है   जिसकी  वजह  से  कोई  भी सकारात्मक  विचार  व  भाव  उसकी  और  आकर्षित  नहीं  होते   l   यह  एक  तरह  का  अंधकार है   जो  व्यक्तित्व  को  अप्रभावी  बना  देता  है   l 
  इस  बुरी  आदत  को   छोड़ना  इतना  आसान  नहीं  है   l  इसके  लिए  जरुरी  है  कि  हम  अपने  जीवन  में  सतर्क  रहें  ,  दूसरों  की  बुराई   या  कमजोरी  देखने  के  साथ   उसके  अन्दर  की  एक  अच्छाई  को  अवश्य  याद  करें  l   उस  व्यक्ति  द्वारा  किये  गए   अच्छे  कार्य  को  पहले  प्राथमिकता  दें ,  उसके  बाद   उसकी  कमियों  को  देखें  l   l  ऐसा  करने  से  धीरे - धीरे  अच्छाई  देखने की  आदत  पड़ेगी  l  

WISDOM ----- अहंकार का नाश होना ही एकमात्र सच्चाई है

 अहंकार  एक  भ्रम  है  ,  जो  व्यक्ति  के  अन्दर  तब  उत्पन्न होता  है    जब  वह  स्वयं  को    शक्तिमान  समझने  लगता  है   l  व्यक्ति  को  आगे  बढ़ाने  वाली  शक्ति  व  प्रेरणा  उसे   परमात्मा  की  कृपा  से  मिलती  है  ,  लेकिन  जब  व्यक्ति  सफल  होता  है   तो  वह  परमात्मा  को   धन्यवाद  देना  भूल  जाता  है   और  यह  सोचता  है   कि  उसी  ने  सब  कुछ  किया  है   l  अहंकारी  व्यक्ति  परमात्मा से   दूर  हो  जाता  है  l
वह  यह  मानने  लगता  है  कि  यह  दुनिया उसी  के  ईशारों   पर  चल  रही  को  l
  इतिहास  में  अनेकों  व्यक्ति  हुए  ,  को  बहुत  अहंकारी  थे   पर  आज उसका अस्तित्व नहीं   है  l  जसे  रावण , कंस  ,  सिकंदर , हिटलर   आदि  सभी  की  दुर्गति हुई   l  अहंकार  व्यक्ति  की  क्षमताओं  को  कम  करता  है ,  उसे  कहीं  का  नहीं  छोड़ता  है   l  

2 November 2018

WISDOM ----- मनुष्य बनें

   पुराणों में  अनेक  ज्ञानवर्धक  कथाएं  हैं   जो  हमें  सिखाती  हैं  कि  हम  अपनी  चेतना  को  जगाएं  और  सही  अर्थों  में  मनुष्य  बनें   l  एक  कथा  है ------  एक  बार  महर्षि  वेद व्यास   एक  नगर  से  होकर  जा  रहे  थे  l  उन्होंने  एक  कीड़े  को  तेजी  से  भागते  देखा  l  उन्हें  यह  जानने  की  जिज्ञासा  हुई  कि  एक  छोटा  सा  कीड़ा  इतनी  तेजी  से किस  कारण  भागा  जा  रहा  है  ?   महर्षि  व्यास   कीड़े - मकोड़े  और  पशु - पक्षियों  की  भाषा  के  गहरे  जानकर  थे  और  उनमें   सभी  से    संवाद  करने  की   अद्भुत   क्षमता   थी  l 
 उन्होंने  उस  कीड़े  से  पूछा ---- " तुम  इतनी  तेजी  से  कहाँ  भागे   जा  रहे  हो  ? " 
 कीड़े  ने  कहा --- " अरे  ! मैं  तो  अपनी  जान  बचाने  के  लिए   भाग  रहा  हूँ  l  देख नहीं  रहे   पीछे  कितनी  तेजी  से  बैलगाड़ी   चली  आ  रही  है  l  "
कीड़े  के  उत्तर  ने  महर्षि  को  चौंकाया  ,  वे  बोले ---- "  पर  तुम  तो  इस  कीट  योनि  में  पड़े  हो  l  यदि  मर  गए  तो  तुम्हे   दूसरा  और  बेहतर  शरीर  मिलेगा   l  "
वह  कीड़ा  बोला ---- " महर्षि  ! मैं  तो  कीड़े  की  योनि  में  रहकर  कीड़े  का  आचरण   कर  रहा  हूँ  ,  परन्तु  ऐसे  प्राणी  तो   असंख्य  हैं  ,  जिन्हें  विधाता  ने  शरीर  तो   मनुष्य  की  दिया  है  ,  पर  वे  मुझ  कीड़े   से  भी  गया - गुजरा  आचरण  कर  रहे  हैं  l  मेरे  पास तो  शरीर  ही  ऐसा  है  कि  अधिक  ज्ञान  नहीं  पा  सकता  ,  पर  मानव  तो  श्रेष्ठ  शरीर  धारी  है  ,  परन्तु  उनमे  से  ज्यादातर   ज्ञान  से  विमुख  होकर  कीड़े  जैसा  आचरण  कर   रहे  हैं   l  " 
  कीड़े  की  इन  बातों  को  सुनकर  महर्षि  सोचने  लगे  कि   मानव  जीवन  पाकर  भी  जो  कामना ,  वासना  , ईर्ष्या   और  अहंकार   के  वशीभूत  होकर   दुराचरण  करता  है   वह  है  तो  कीड़े  जैसा  ही ,  बल्कि  कीड़े  से  भी  बदतर   है   l 
  महर्षि  ने  कहा --- :  " हम  तुम्हारी  सहायता  कर  देते  हैं   l  तुम्हे  अपने  हाथ  में  उठाकर  मैं   आने  वाली  बैलगाड़ी   से   दूर  पहुंचा  देता  हूँ   l  "
इस  पर  कीड़े  ने  कहा --------  " आपका  आभार मुनिवर  !  परन्तु  श्रम रहित  पराश्रित  जीवन   विकास  के  सारे  द्वार  बंद  कर  देता  है  l  मुझे  स्वयं  ही  संघर्ष  करने  दीजिए  l  इस  संघर्ष  में  यदि   मृत्यु   हो  भी  गई  तो    भगवती  आदि  शक्ति   स्वयं  ही  मेरे  लिए  विकास  के  द्वार  खोल  देंगी  l  l "
 कीड़े  के  कथन  में   हम  सबके  लिए  ज्ञान  का    नया  सन्देश  है   l