हमारे महाकाव्य हमें जीवन जीना सिखाते हैं , इस कला की आज सबसे ज्यादा जरुरत है ---- रामायण में बालि - सुग्रीव का कथानक हमें बहुत महत्वपूर्ण शिक्षा देता है कि कैसे आसुरी प्रवृति के लोग भाई - भाई को लड़ाकर अपने स्वार्थ और अहंकार की पूर्ति करते हैं -----
' आसुरी शक्तियों के हाथों में पहुंचकर उत्कृष्ट ज्ञान भी निकृष्टतम परिणाम देने लगता है l '
रावण बहुत ज्ञानी था लेकिन उसमे छल - कपट और अहंकार अपने चरम पर था l इसी तरह वानरराज बालि में अनेक गुण होने के बावजूद उसका अहंकार उसे जब - तब गुमराह करता था l
बालि और सुग्रीव दोनों भाइयों में बहुत प्रेम था , सुग्रीव अपने बड़े भाई बालि को पिता की तरह मान - सम्मान देता था l लेकिन बालि को उसके चापलूस पथ भ्रमित करते रहते थे , जिसने भी उसकी प्रशंसा की वह उसी को अपना सगा मान लेता था l बल और वरदान का अहंकार उसे सच सुनने और समझने नहीं देता था l
रावण की चाटुकारिता ने उसे सम्मोहित कर लिया था और वह रावण को अपना मित्र मान बैठा था l उसके विरुद्ध वह कुछ भी सुनने - समझने को तैयार न था l
बालि के पास जितना अधिक बल था रावण के पास उतना ही अधिक छल था l वह अपनी कुटिल चालों में लगा हुआ था l वह चाहता था कि अति प्रेम करने वाले बालि और सुग्रीव के बीच वैमनस्य हो जाये l वह उनमे फूट डालना चाहता था l वह जानता था कि बालि अपने बल के मद में उन्मत है वह जिससे भी शत्रुता करता है , उसे या तो झुका देता है , या मिटा देता है l रावण का अहंकार दो भाइयों में शत्रुता करा कर अपना आधिपत्य चाहता था l
आखिर बालि और सुग्रीव में शत्रुता हो गई l श्री हनुमानजी के माध्यम से सुग्रीव को भगवान श्रीराम की कृपा मिली , बालि का वध हुआ l
उस युग में असुरता को मिटाने भगवान आ गए , लेकिन अब भगवान भी कब तक आयेंगे ? ईश्वर की यही इच्छा है कि मनुष्य स्वयं जागरूक हो , विवेक से काम ले l स्वाभिमानी बने l किसी के हाथ की कठपुतली न बने l परिवार हो , समाज हो अथवा राष्ट्र हो , आसुरी शक्तियां उनमे फूट डालकर अपने आधिपत्य की महत्वाकांक्षा को पूरा करती हैं l जागरूक रहकर ही हम सत्य को समझ सकते हैं l
' आसुरी शक्तियों के हाथों में पहुंचकर उत्कृष्ट ज्ञान भी निकृष्टतम परिणाम देने लगता है l '
रावण बहुत ज्ञानी था लेकिन उसमे छल - कपट और अहंकार अपने चरम पर था l इसी तरह वानरराज बालि में अनेक गुण होने के बावजूद उसका अहंकार उसे जब - तब गुमराह करता था l
बालि और सुग्रीव दोनों भाइयों में बहुत प्रेम था , सुग्रीव अपने बड़े भाई बालि को पिता की तरह मान - सम्मान देता था l लेकिन बालि को उसके चापलूस पथ भ्रमित करते रहते थे , जिसने भी उसकी प्रशंसा की वह उसी को अपना सगा मान लेता था l बल और वरदान का अहंकार उसे सच सुनने और समझने नहीं देता था l
रावण की चाटुकारिता ने उसे सम्मोहित कर लिया था और वह रावण को अपना मित्र मान बैठा था l उसके विरुद्ध वह कुछ भी सुनने - समझने को तैयार न था l
बालि के पास जितना अधिक बल था रावण के पास उतना ही अधिक छल था l वह अपनी कुटिल चालों में लगा हुआ था l वह चाहता था कि अति प्रेम करने वाले बालि और सुग्रीव के बीच वैमनस्य हो जाये l वह उनमे फूट डालना चाहता था l वह जानता था कि बालि अपने बल के मद में उन्मत है वह जिससे भी शत्रुता करता है , उसे या तो झुका देता है , या मिटा देता है l रावण का अहंकार दो भाइयों में शत्रुता करा कर अपना आधिपत्य चाहता था l
आखिर बालि और सुग्रीव में शत्रुता हो गई l श्री हनुमानजी के माध्यम से सुग्रीव को भगवान श्रीराम की कृपा मिली , बालि का वध हुआ l
उस युग में असुरता को मिटाने भगवान आ गए , लेकिन अब भगवान भी कब तक आयेंगे ? ईश्वर की यही इच्छा है कि मनुष्य स्वयं जागरूक हो , विवेक से काम ले l स्वाभिमानी बने l किसी के हाथ की कठपुतली न बने l परिवार हो , समाज हो अथवा राष्ट्र हो , आसुरी शक्तियां उनमे फूट डालकर अपने आधिपत्य की महत्वाकांक्षा को पूरा करती हैं l जागरूक रहकर ही हम सत्य को समझ सकते हैं l