7 May 2022

WISDOM-----

   गुरूदेव   श्री   रवीन्द्रनाथ  टैगोर   मृत्यु शैया  पर  अंतिम  साँसे  ले  रहे  थे  l   तभी    एक  व्यक्ति  आकर  बोला  --धन्य  हैं  आप  !  आपने  अपना  जीवन  सार्थक  कर  लिया   l  छह  हजार  गीत  रचे  ,  आप  तो  तृप्त  हो  गए  होंगे  l   दुनिया  के  लिए  एक  अनूठी  धरोहर  छोड़ी  आपने   l   गुरुदेव  श्री  रवीन्द्रनाथ    ने  आँखें  खोलीं  और  बड़ी  नम्रता  से  बोले  ---- " तृप्त  कहाँ  हुआ  ? मेरा  प्रत्येक  गीत  अधूरा  ही  रहा   !  जो  मेरे  उदगार  थे   वो  तो  अभी  भी  अटके  हुए  हैं  l   ये  तो  छह  हजार  उस  दिशा  में  की  गईं   असफल  चेष्टाएँ  हैं  ,  उन  उदगारों  को  बाहर  लाने  के  प्रयास  हैं  l  मैंने  छह  हजार  बार  कोशिश  की   किन्तु  वह  गीत   अधूरा   ही  रहा   जिसे  गाना  चाहता  था  l   उस  गीत  को  ,  उस  उदगार  को  गाने  का  प्रयास   करने  में  ही  लगा  था   कि   जब  तक  बुलावा  आ  गया   l