' जो ईश्वर से भय खाता है , उसे दूसरा भय नहीं सताता l ' अध्यात्मवेत्ताओं के अनुसार संकीर्ण स्वार्थ ,.
जो ईश्वर से भय खाता है उसे दूसरा भय नहीं सताता l ' अध्यात्मवेत्ताओं के अनुसार संकीर्ण स्वार्थ , वासना एवं अहंकार से युक्त अनैतिक जीवन भय का प्रमुख कारण है l वैराग्य शतक में भतृहरि ने भय की स्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण किया है --' भोग में रोग का भय , ,सत्ता में गिरने का , शत्रुओं का भय , सौंदर्य में बुढ़ापे का भय , शरीर में मृत्यु का भय l इस तरह संसार में सब कुछ भय से युक्त है l जब स्वर्ग के राजा इंद्र तक भयभीत हैं तो इस संसार में उच्च पदों पर बैठे लोग कितने भयभीत होंगे , इसका अंदाजा लगाया जा सकता है l हर व्यक्ति इस भय से निपटने के लिए अपनी मानसिक स्थिति और अपनी सामर्थ्य के अनुसार प्रयास करता है l जितना पाने की लालसा है , उतना ही खोने का भय है l आचार्य श्री लिखते हैं ---' देवराज इंद्र के भय का कारण सिर्फ इतना है कि वे वासना के शिखर पर बैठे हैं , ऐसे में जब भी कोई ऊपर उठने की कोशिश करता है तो वे घबराने लगते हैं और उसे गिराने के लिए अप्सराएं उसके पास भेजते हैं l इससे बेहतर कोई दूसरा उपाय नहीं है l l ' यह भय ही तनाव का कारण है l जितने मजे से एक सामान्य आदमी सोता है , उतने मजे से वह नहीं सो सकता , दार्शनिक लाओत्से ने कहा है --- ' अगर मजे से रहना है तो आखिरी में रहना l जो अंतिम में खड़ा है , उसे कोई धक्का देने नहीं आएगा l अगर प्रथम होने की कोशिश होगी तो फिर अनेकों आ जायेंगे पीछे खींचने के लिए