प्रतिशोध की आग इतनी तीव्र होती है की व्यक्ति उसका परिणाम नहीं सोचता l द्रोपदी के चीर हरण के लिए दु:शासन उसके केश पकड़ कर उसे घसीटते हुए सभा में लाया था l तभी से द्रोपदी अपने बाल खुले रखती थीं l द्रोपदी ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक दु:शासन के खून से अपने केश नहीं धो लेगी तब तक वह अपने लम्बे सुन्दर केश नहीं बांधेगी l
इस घटना के बाद जब भी कृष्ण आते वह आँखों में आंसु भरकर अपने खुले केश उन्हें दिखाती कि कब मेरा प्रतिशोध पूरा होगा ? कब इन केशों को बांधूंगी l
श्रीकृष्ण द्रोपदी से कहते हैं ---- " कृष्णा ! तुम्हारे खुले बालों की कीमत सहस्त्रों सैनिकों की बलि नहीं हो सकती l दु:शासन को मारने की तुम्हारी प्रतिज्ञा से मैं बंधा नहीं हूँ l मैं धर्म की संस्थापना के लिए , अधर्म का निवारण करने आया हूँ l " श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व की सम्पूर्णता से द्रोपदी परिचित नहीं थी , इसलिए अपनी सीमित द्रष्टि से ही योगेश्वर को देखती थी
इस घटना के बाद जब भी कृष्ण आते वह आँखों में आंसु भरकर अपने खुले केश उन्हें दिखाती कि कब मेरा प्रतिशोध पूरा होगा ? कब इन केशों को बांधूंगी l
श्रीकृष्ण द्रोपदी से कहते हैं ---- " कृष्णा ! तुम्हारे खुले बालों की कीमत सहस्त्रों सैनिकों की बलि नहीं हो सकती l दु:शासन को मारने की तुम्हारी प्रतिज्ञा से मैं बंधा नहीं हूँ l मैं धर्म की संस्थापना के लिए , अधर्म का निवारण करने आया हूँ l " श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व की सम्पूर्णता से द्रोपदी परिचित नहीं थी , इसलिए अपनी सीमित द्रष्टि से ही योगेश्वर को देखती थी