13 November 2022

WISDOM ----

   ऋषि  दधीचि   शिव  जी  के  अनन्य  भक्त  थे  l  उनका  पूरा  जीवन  तप , साधना , शिक्षण  में  बीता  l  जब  वृत्रासुर  का  प्रकोप  बढ़ा   तो  भगवान  विष्णु  ने  कहा  कि  दधीचि  जैसे  तप  साधक  की  अस्थियों  से  बना  वज्र  ही   इंद्र  की  रक्षा  कर  सकेगा  l  हड्डियाँ   कोई  मांगने  पर  क्यों  देगा  , क्यों  शरीर  छोड़ेगा  ,  इस  सोच  से  परेशान  इंद्र  ने   दधीचि  की  हत्या  कर  अस्थियाँ  लेने  की  सोची  l  विष्णु  जी  ने  उन्हें  फटकार  लगाईं   और  फिर  स्वयं  गए   l  प्रार्थना  की  कि   संकट  से  त्राण  हेतु  आपकी  अस्थियों  की  जरुरत  है  l  तपोबल  के  धनि  मुनि श्रेष्ठ  ने   योगबल  से  शरीर  छोड़ा  और  अपनी  अस्थियाँ  दान  कर  दीं  l   उनका  पुत्र  बहुत  छोटा  था   l  उसकी  माँ  भी  पति  वियोग  में  चली  गई   l  पुत्र  पर  बहुत  कष्ट  आए  ,  पीपल  के  नीचे   पीपल  के  फल  खाकर   शिव -शिव  नाम  जपकर  वह  जीवित  रहा  l  नारद जी  ने  आकर  उसका  संस्कार  किया  और  उसे   पिप्पलाद  नाम  दिया  l  उसकी  एक  ही  पुकार  थी  कि  हमें  इतना   दुःख  क्यों  सहन  करना  पड़ा  ?  किसने  दिया  इतना  दुःख  ?  नारद जी  ने  बताया  कि  शनि  का  तुम  पर  प्रकोप  रहा  है  , उसी  से  यह  स्थिति  हुई  है  l  पिप्पलाद  बोले  --- " यदि  हमने  शिव भक्ति  की  है   तो  हमारे  कहने  से  ' शनि ' अपने  गृह मंडल  से  नीचे  गिरेगा  l  ऐसा  ही  हुआ  , चारों  ओर  हाहाकार  मच्   गया  l  सब  देवताओं  ने  विनती  की  कि  स्रष्टि  का  संतुलन  होना  है  ,  अत:  उसे  पुन:  स्थापित   करना  होगा   l  पिप्पलाद  ने   कर  दिया  तब से  पिप्प्लाद्  कृत    शनि स्रोत  का  पाठ  होता  है  l  और  शनि  के  लिए  पीपल  की  पूजा  होती  है  l