आई.सी.एस. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सुरेन्द्रनाथ बनर्जी को सिलहट (आसाम ) में ए.डी.जे. नियुक्त किया गया l उन दिनों भारतवासियों को हीनता की द्रष्टि से देखा जाता था और अंग्रेज उनसे उपेक्षापूर्ण व्यवहार करते थे l सुरेन्द्रनाथ बनर्जी बहुत योग्य थे किन्तु उच्च अधिकारियों के वैमनस्य के कारण दो वर्ष के भीतर ही उन्हें इस सरकारी नौकरी से हटा दिया l इस अन्याय की शिकायत करने वे दुबारा इंगलैंड गए लेकिन जातीयता के आधार पर वहां भी गोरों का पक्ष लिया गया l उन्होंने कहा --- " मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि यह अन्याय मुझे केवल इसलिए सहना पड़ा कि मैं भारतीय था l मैं एक ऐसे समाज का सदस्य था जिसमे कोई संगठन नहीं है , जिसका एक सार्वजनिक मत नहीं है , जिसका अपने देश के शासन में कोई महत्व नहीं है l जो अन्याय मेरे साथ किया गया वह हमारे देशवासियों की नितान्त शक्तिहीनता का द्योत्क था l "
अत: भारत लौटते ही उन्होंने शिक्षा प्रचार में ध्यान देना आरम्भ किया l 1882 में उन्होंने एक संस्था स्थापति की जो बाद में रियन कॉलेज के नाम से विख्यात हुई l इससे उन्होंने हजारों विद्दार्थियों को सुयोग्य नागरिक बना कर निकाला l शासन सुधार की द्रष्टि से उन्होंने 'इण्डियन एसोसिएशन ' की स्थापना की l ब्रिटिश सरकार आई. सी. एस. परीक्षा में सम्मिलित होने के लिए आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर रही थी , जिससे भारतीयों का उसमे शामिल हो सकना कठिन हो जाता l ' इण्डियन एसोसिएशन ' के जोरदार आन्दोलन की वजह से 19 वर्ष वाला नियम रोक दिया गया l इसी प्रकार जब सरकार ने ' वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट ' बनाकर देशी भाषाओँ के अख़बारों का दमन करना चाहा तो सुरेन्द्र बाबू ने उसके विरुद्ध जोरदार आन्दोलन खड़ा किया l और इंग्लैंड जाकर प्रधानमंत्री मि. ग्लैड्सटन का दरवाजा खटखटाया इसी का परिणाम था कि दो चार वर्ष बाद नए वायसराय के आने पर वह कानून रद्द कर दिया गया l समाज सुधार के क्षेत्र में भी उन्होंने बहुत कार्य किये l ' इण्डियन एसोसिएशन ' की सफलता से प्रेरणा लेकर ही मि. ह्युम ने कांग्रेस की स्थापना की |
अत: भारत लौटते ही उन्होंने शिक्षा प्रचार में ध्यान देना आरम्भ किया l 1882 में उन्होंने एक संस्था स्थापति की जो बाद में रियन कॉलेज के नाम से विख्यात हुई l इससे उन्होंने हजारों विद्दार्थियों को सुयोग्य नागरिक बना कर निकाला l शासन सुधार की द्रष्टि से उन्होंने 'इण्डियन एसोसिएशन ' की स्थापना की l ब्रिटिश सरकार आई. सी. एस. परीक्षा में सम्मिलित होने के लिए आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर रही थी , जिससे भारतीयों का उसमे शामिल हो सकना कठिन हो जाता l ' इण्डियन एसोसिएशन ' के जोरदार आन्दोलन की वजह से 19 वर्ष वाला नियम रोक दिया गया l इसी प्रकार जब सरकार ने ' वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट ' बनाकर देशी भाषाओँ के अख़बारों का दमन करना चाहा तो सुरेन्द्र बाबू ने उसके विरुद्ध जोरदार आन्दोलन खड़ा किया l और इंग्लैंड जाकर प्रधानमंत्री मि. ग्लैड्सटन का दरवाजा खटखटाया इसी का परिणाम था कि दो चार वर्ष बाद नए वायसराय के आने पर वह कानून रद्द कर दिया गया l समाज सुधार के क्षेत्र में भी उन्होंने बहुत कार्य किये l ' इण्डियन एसोसिएशन ' की सफलता से प्रेरणा लेकर ही मि. ह्युम ने कांग्रेस की स्थापना की |