19 August 2023

WISDOM -----

     छत्रपति  शिवाजी  अपने  गुरु   समर्थ  गुरु  रामदास    को  आनंद  में  निमग्न  देखा  तो  उनका  मन  हुआ  कि  राज्य , शासन  और  अन्य  परेशान  करने  वाले  दायित्वों  से  छुटकारा  पा  लिया  जाए  l  इसलिए  जब  एक  दिन  समर्थ  गुरु  का  आगमन  हुआ   तो  शिवाजी  ने  उनसे  कहा --- " गुरुदेव  ! मैं  राज्य  के  इन  झंझटों  से  परेशान  हो  गया  हूँ  l  नित्य  प्रति  नई  उलझनें  , इसलिए  मैं  संन्यास  लेने  की  सोच  रहा  हूँ  l "  गुरुदेव  बोले  --- " हाँ , ठीक  है  l संन्यास  ले  लो  , इससे  अच्छा  और  क्या  हो  सकता  है  l  "  शिवाजी  प्रसन्न  हो  गए   और  बोले  --- "  आप  कोई  ऐसा  व्यक्ति  बताइए  , जिसे  मैं  राज्य  सौंप  सकूँ  l "  समर्थ  बोले --- " मुझे  राज्य  दे  दे  और  निश्चिन्त  होकर  वन  में  चला  जा  ! "  शिवाजी  ने  हाथ  में  जल  लेकर   राज्य  दान  का  संकल्प  कर  लिया   और  वन  को  जाने  लगे  l  उन्होंने  दैनिक  दिनचर्या  के  कुछ  सामान  ले  जाना  चाहा   तो  समर्थ  बोले ---- " तुम  राज्य  दान  कर  चुके  हो  ,  तुम्हारा  उस  पर  कोई  अधिकार  नहीं  l  तब  शिवाजी  खाली  हाथ  ही  जाने  लगे   तो  समर्थ  बोले ---- "  दिनचर्या  के  लिए  साधनों  की  आवश्यकता  पड़ेगी  ,  वो  कहाँ  से  लाओगे  ? " शिवाजी  ने  उत्तर  दिया ---- " कहीं  नौकरी  कर  लूँगा  ,  उन्ही  पैसों  से  व्यवस्था  बना  लूँगा  l "  समर्थ  ने  हँसते  हुए  कहा --- "  राज्य  तो  तुम  मुझे  दे  ही  चुके  हो ,  अब  तुम्हे  नौकरी  करनी  है  तो  मेरे  सेवक  बनकर   इस  राज्य  का  सञ्चालन  करो  l  यह  राज -काज  ही  तुम्हारी  नौकरी  है  l "  इसके  उपरांत  छत्रपति  शिवाजी  को  राज्य  करने  में  कभी  कोई  तनाव   अनुभव  नहीं  हुआ  l  सत्य  यही  है  कि  मनुष्य  कार्य  करने  से  नहीं ,  वरन  उसे  बोझ  समझकर   करने  से  तनावग्रस्त  होता  है  ,  कार्य  को  प्रसन्नतापूर्वक  , दायित्व  रूप  में   करने  से  मन  निष्कलुष  और  तनावमुक्त  रहता  है  l