पं. श्रीराम शर्मा आचार्य श्री लिखते हैं --- " आज समाज में जो भी आतंकवाद , दंगे , युद्ध , खून -खराबे बढ़ रहे हैं , वे सब भाव शून्यता व संवेदनहीनता के कारण उपजे हैं और यह सब तभी समाप्त हो सकता है जब व्यक्ति के अंदर संवेदना जगे और वह प्राणिमात्र के कल्याण की बात सोचे l "------------------- अति वैभव संपन्न और शक्तिशाली होने की महत्वाकांक्षा व्यक्ति को निर्दयी बना देती है l बिना अत्याचार और शोषण के धन कमाना संभव भी नहीं है l रावण के कितने ही ऋषियों का खून बहाया , प्रजा पर अत्याचार किए तब वह सोने की लंका खड़ी कर पाया l रावण हो या सिकंदर , तैमूरलंग , हिटलर सबने अत्याचार के कीर्तिमान खड़े किये l इतिहास ऐसे क्रूर शासकों की सनक से भरा पड़ा है , किसी को हाथियों को पहाड़ से गिराकर उनकी चिंघाड़ सुनने में आनंद आता था ,, तो कोई लोगों को मारकर उनकी खोपड़ियों का पहाड़ बनाता था l सबकी प्रवृति , सबके संस्कार अलग - अलग हैं l तितली कितनी सुन्दर होती है , बाग़ में जाएगी , फूलों पर बैठेगी , उसे देखकर मन प्रसन्न होता है लेकिन गुबरैला कीड़ा उसी बाग़ में जाकर गंदगी को ढूंढेगा और उस पर बैठेगा l जिनके पास अपार धन सम्पदा है , शक्तिशाली हैं वे निस्स्वार्थ भाव से लोक कल्याण के कार्य करके , लोगों की पीड़ा दूर कर के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा सकते हैं लेकिन अपनी प्रवृति के अनुसार उन्हें अत्याचार , खून - खराबे का रास्ता ही आनंद देता है , अनेक तर्कों से वे अपने इस मार्ग को सही सिद्ध करते हैं l देवासुर संग्राम पहले मनुष्य के भीतर चलता है फिर उसे वे बाहर कार्य रूप में अंजाम देते हैं l