25 March 2022

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- " आज  समाज  में  जो  भी  आतंकवाद , दंगे , युद्ध , खून -खराबे  बढ़  रहे  हैं  ,  वे  सब  भाव शून्यता   व  संवेदनहीनता  के  कारण  उपजे  हैं   और   यह सब  तभी  समाप्त  हो  सकता  है   जब  व्यक्ति  के  अंदर  संवेदना  जगे  और  वह  प्राणिमात्र  के  कल्याण  की  बात  सोचे   l  "-------------------  अति  वैभव  संपन्न  और  शक्तिशाली  होने  की  महत्वाकांक्षा  व्यक्ति  को  निर्दयी  बना  देती  है   l   बिना  अत्याचार  और  शोषण  के  धन   कमाना  संभव  भी  नहीं  है   l   रावण  के  कितने  ही  ऋषियों  का  खून  बहाया ,  प्रजा  पर  अत्याचार  किए   तब  वह  सोने  की  लंका  खड़ी  कर  पाया   l   रावण  हो  या  सिकंदर , तैमूरलंग ,  हिटलर   सबने  अत्याचार  के  कीर्तिमान  खड़े  किये  l   इतिहास  ऐसे  क्रूर  शासकों  की   सनक  से  भरा  पड़ा  है   , किसी  को  हाथियों  को  पहाड़   से गिराकर   उनकी  चिंघाड़  सुनने  में  आनंद  आता  था ,,  तो  कोई  लोगों  को   मारकर     उनकी  खोपड़ियों  का  पहाड़  बनाता   था  l   सबकी  प्रवृति , सबके  संस्कार  अलग - अलग  हैं  l   तितली  कितनी  सुन्दर  होती  है  , बाग़  में  जाएगी  , फूलों  पर  बैठेगी ,  उसे  देखकर  मन  प्रसन्न  होता  है   लेकिन   गुबरैला  कीड़ा   उसी  बाग़  में  जाकर   गंदगी  को  ढूंढेगा  और  उस  पर  बैठेगा   l   जिनके  पास  अपार  धन सम्पदा  है , शक्तिशाली  हैं  वे  निस्स्वार्थ  भाव  से  लोक  कल्याण  के  कार्य  करके ,  लोगों  की  पीड़ा  दूर  कर  के  इतिहास  में  अपना  नाम  स्वर्णाक्षरों  में  लिखा  सकते  हैं    लेकिन  अपनी  प्रवृति  के  अनुसार  उन्हें  अत्याचार ,  खून - खराबे  का  रास्ता  ही  आनंद  देता  है  ,  अनेक  तर्कों  से  वे  अपने  इस  मार्ग  को  सही  सिद्ध  करते  हैं  l   देवासुर  संग्राम  पहले  मनुष्य  के  भीतर  चलता  है    फिर  उसे  वे  बाहर  कार्य  रूप  में  अंजाम  देते  हैं    l