कागावा ने अपना समाज - सेवा कार्य बहुत छोटे पैमाने पर पूर्ण स्वावलम्बी रहकर आरम्भ किया और थोड़े ही समय में पूरा देश ही उनका कार्य क्षेत्र बन गया । जापान देश का कायाकल्प होने लगा और गन्दा मानव - समाज सच्चे और सच्चरित्र राष्ट्र के रूप में विकसित होने लगा । कुछ ही दिनों में जापान के विशाल नगरों ----- टोकियो , ओसाका , याकोहामा कोबे , क्योटो और नागोया की गन्दी बस्तियां विलुप्त हो गईं और उनके स्थान पर सभ्य, शिष्ट और स्वस्थ लोगों की आबादी दिखलाई देने लगी । एक व्यक्ति के तप, त्याग और प्रयत्नों ने पूरे राष्ट्र का कायाकल्प संभव कर दिया । ---- उन्होंने मजदूरों में चेतना जगाने के लिए उनका संगठन बनाया और उन्हें अपने पैरों पर खड़े होकर उद्धार करने की प्रेरणा देने लगे । उन्होंने एक राष्ट्र व्यापी विशाल जापान मजदूर संघ की स्थापना की जिसकी छत्र - छाया में मजदूरों ने अपने बहुत से अधिकार प्राप्त किये ।
इसके बाद कागावा किसानों की सेवा की ओर बढ़े और उन्होंने --- ' अखिल जापान किसान संघ ' की नींव अपने निवास स्थान पर ही डाली । वे नगरों में तो किसानों की सभाएं करते ही थे , गांवों में भी जाते थे और लोगों में चेतना जगाने का प्रयत्न किया करते थे । उन्हें पता था कि बदमाश गाँव से ही अबोध कन्याओं को बहका लाते हैं और शहरों में उन्हें वेश्या बनाकर अपनी आय का साधन बनाते हैं । पूंजीपतियों के गुर्गे गाँव से ही नौजवानों को बुला लाते हैं और कारखानों में सस्ते मजदूर बनाकर शोषण करते हैं l
कागावा ने ग्रामीण किसानों तथा उनके बच्चों को उनकी भूलें और धूर्तों की चालें बतलाकर गाँव में रहने और खेती का विकास करने की प्रेरणा दी , जिससे जापान के कृषि उद्दोग में अभूतपूर्व उन्नति हुई । ।
आज भारतवर्ष को एक नहीं अनेक ' कागावा ' जैसे संतों की आवश्यकता है जो अपनी विद्दा और परिश्रम का फल दूसरों को देकर ' परोपकार ' और ' परमार्थ ' के शब्दों का जीवित उदाहरण बनकर लाखों का हित - साधन करते हैं ।
इसके बाद कागावा किसानों की सेवा की ओर बढ़े और उन्होंने --- ' अखिल जापान किसान संघ ' की नींव अपने निवास स्थान पर ही डाली । वे नगरों में तो किसानों की सभाएं करते ही थे , गांवों में भी जाते थे और लोगों में चेतना जगाने का प्रयत्न किया करते थे । उन्हें पता था कि बदमाश गाँव से ही अबोध कन्याओं को बहका लाते हैं और शहरों में उन्हें वेश्या बनाकर अपनी आय का साधन बनाते हैं । पूंजीपतियों के गुर्गे गाँव से ही नौजवानों को बुला लाते हैं और कारखानों में सस्ते मजदूर बनाकर शोषण करते हैं l
कागावा ने ग्रामीण किसानों तथा उनके बच्चों को उनकी भूलें और धूर्तों की चालें बतलाकर गाँव में रहने और खेती का विकास करने की प्रेरणा दी , जिससे जापान के कृषि उद्दोग में अभूतपूर्व उन्नति हुई । ।
आज भारतवर्ष को एक नहीं अनेक ' कागावा ' जैसे संतों की आवश्यकता है जो अपनी विद्दा और परिश्रम का फल दूसरों को देकर ' परोपकार ' और ' परमार्थ ' के शब्दों का जीवित उदाहरण बनकर लाखों का हित - साधन करते हैं ।