' अँधेरे के लिये न तो चिंतित हों और न ही उसका चिंतन करें | अनिवार्य है प्रकाश को प्रदीप्त करने का प्रयास करना | '
अंधकार को मान लेने वाला भूल में है, उससे लड़ने वाला भी भूल में है | न अंधकार को मानना है, न ही उससे लड़ना है | ये दोनों ही अज्ञान हैं | जो ज्ञानी है वह प्रकाश को प्रदीप्त करने का आयोजन करता है |
अँधेरे से लड़ना तो अभाव से लड़ना है | इस तरह तो बस विक्षिप्तता ही हाथ लगती है | लड़ना है तो प्रकाश को पाने के लिये लड़ो | प्रकाश को प्रदीप्त करने के लिये श्रम और मनोयोग का नियोजन करो, क्योंकि जो प्रकाश को पा लेता है, वह अंधकार को मिटा ही देता है |
अंधकार को मान लेने वाला भूल में है, उससे लड़ने वाला भी भूल में है | न अंधकार को मानना है, न ही उससे लड़ना है | ये दोनों ही अज्ञान हैं | जो ज्ञानी है वह प्रकाश को प्रदीप्त करने का आयोजन करता है |
अँधेरे से लड़ना तो अभाव से लड़ना है | इस तरह तो बस विक्षिप्तता ही हाथ लगती है | लड़ना है तो प्रकाश को पाने के लिये लड़ो | प्रकाश को प्रदीप्त करने के लिये श्रम और मनोयोग का नियोजन करो, क्योंकि जो प्रकाश को पा लेता है, वह अंधकार को मिटा ही देता है |