8 June 2019

WISDOM ----- आध्यात्मिकता का झूठा अहंकार

 वैदिककालीन  सच्चे  अध्यात्म  और  प्राचीन  सभ्यता  का   गलत  अहंकार 
पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने   वाड्मय  ' मरकर  भी  अमर  हो  गए  जो  '  में  पृष्ठ  2.123  पर  लिखा  है   की  हमारी   प्राचीन  सभ्यता  श्रेष्ठ   थी   लेकिन   मध्य  युग  में  हमारे  यहाँ  जो  विचारधारा  फैली   वह  यही  थी  कि हम  बड़े  धर्मात्मा , ज्ञानी , विद्वान्  और  सभ्य  हैं   तथा   अन्य    देशों  में  प्राय:  मलेच्छ , बर्बर  , दैत्य  आदि  निम्न  कोटि  के  मनुष्य  भरे  पड़े  हैं   l  तभी  से हमारे  ऊपर  विदेशी  आक्रमण  होने  लगे  l यूनानी , शक , हूण, पठान  आदि  जातियों  ने  भारत  को   लूटा  , आधीन  भी  बनाया   किन्तु  हम  सदा  यही  कहते  रहे  कि  -- " वे  सब  असभ्य , राक्षस , तामसी ,  पापी  हैं   और  ज्ञानी , ध्यानी , तपस्वी , त्यागी  , पुण्यात्मा  तो  हम  ही  हैं   l  "  सुप्रसिद्ध  पर्यटक  अलबरूनी  ने     भारतवर्ष   की  तत्कालीन   स्थिति  का  अध्ययन  कर  लिखा  है ----  "  हिन्दू  लोग  समझते  हैं  कि  उनके  जैसा  दूसरा  देश  नहीं ,  उनके  राजाओं  जैसा  दूसरा  राजा  नहीं  ,  उनके   धर्म  जैसा  दूसरा  धर्म  नहीं  ,  उनके  शास्त्रों  जैसा  दूसरा  शास्त्र  नहीं   l  यदि  तुम  खुरासान  और  ईरान  के   शास्त्रों , विद्वानों  के  सम्बन्ध  में  उनसे  बात  करोगे   तो  वे  तुमको   मूर्ख   व  मिथ्यावादी  समझेंगे   l       वे  यदि  दूसरों  से   मिले -  जुलें ,  प्रवास  करें  तो  उनकी  यह  प्रवृति  नहीं  रहेगी  , क्योंकि  उनके  पूर्वज  संकुचित  नहीं  थे   l   "
 आचार्य श्री  ने  आगे  लिखा  है   ----'  इतना   ही  नहीं  जब  मुसलमानों  और  उसके  बाद  अंग्रेजों  ने  इस  देश  पर  अधिकार  जमा  लिया   हमको  अपने  आधीन  बनाकर  हर  तरह  से  प्रताड़ित , अपमानित  और  लांछित  किया  ,  तब  भी  हमारी  मोह  निद्रा  भंग  नहीं  हुई   l  हम  अपने  को  धर्मात्मा  और  उनको  मलेच्छ  कहते  रहे  l   पुराने  युग  की  बात  छोड़  दीजिए  वर्तमान  युग  में  हमने  अपनी  आँखों  से  देखा  है   कि  राजाओं  और  पंडितों  से  लेकर  सामान्य  जन  तक  अंग्रेजों  को  ' हुजुर - हुजूर '  कहते  हुए  अपना  गला  सुखाते  रहते  थे   और  उनकी  थोड़ी  सी  कृपा  पाकर  ही  अपने  को  धन्य  समझते  थे   लेकिन  अपने  सभा - समाजों  में  यही  कहते  थे  कि  हम  ऋषियों  और  चक्रवर्ती  नरेशों  के  वंशज  हैं  ,  वे   म्लेच्छ  हैं   l    लेकिन  अंत  में  उन्ही  के   क़दमों  में  बैठकर  आधुनिक  शिक्षा  प्राप्त  करने  वालों  ने    देश  का  उद्धार  किया    और  वेद  तथा  शास्त्रों  के  अभिमानी   ' पण्डित  '  उस  समय  भी   कापुरुष  की  तरह   दूर  रहकर  व्यर्थ  में  ही  गाल  बजाते  रहे   l   ' 

WISDOM ----- समाज में हो रहे अत्याचार पर द्रष्टिपात न कर केवल अपने स्वार्थ की और ही देखते रहना अमानवीय प्रवृति है

  यह  बात   सही  है  कि  मनुष्य के  जीवन  में  स्वार्थ  का  भी एक  स्थान  है   किन्तु  उस  स्वार्थ  को  निकृष्टता  ही  कहा  जायेगा   जिसका  संपादन  अथवा  जिसकी  पूर्ति   देश  व  समाज  को  क्षति  पहुंचाती  है  l  पं  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' मरकर  भी  जो  अमर  हो  गए  '  में  लिखा  है ---- ' दुनिया  में  हेय  और  हीन  बनकर  ही  तो  काम  नहीं  चलता  l   यह  तो  मनुष्य  की  अपनी  कमजोरी  और  सोचने  का  ढंग  है   कि   अन्यायियों  के  तलवे  चाटने  से  ही  काम चलता  है  l वैसे  इतिहास   तथा  उदाहरण  साक्षी  है  कि संसार  में  एक  से  एक  बढ़कर  स्वाभिमानी   तथा  सिद्धांत  के  धनी  व्यक्ति  हुए  हैं    जिन्होंने  जीवन  दे  दिया  पर  स्वाभिमान  नहीं  दिया  l  '  उनका  कहना  है  कि  स्वार्थ  और  कायरता  के  कारण लोगों  की  आत्माएं  तेजहीन  हो  गई  हैं   l  
 विवेक  पर  मोह  का  आवरण  आ  गया  है   l  निकृष्टता   का   अनुकरण  करना  श्रेयस्कर  नहीं  होता  l  यदि  अनुकरण  ही  करना  हो  तो  संसार  में  श्रेष्ठताओं   और  श्रेष्ठ  व्यक्तियों  की  कमी  नहीं  है   l  '