' नियमित शिक्षा - दीक्षा नहीं होते हुए भी उन्होंने अपनी लेखनी को इस प्रकार जीवन्त बनाया था कि उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में यश भी कमाया और देश व समाज की सेवा भी की । ईमानदारी और परिश्रम तथा मानवीय सद्गुणों के बलबूते पर वे इतने ऊपर उठे कि जब नवीन प्रान्त विन्ध्य - प्रदेश का निर्माण हुआ तो उनसे सूचना - मंत्री बनने का आग्रह किया गया । '
उन्होंने इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया , उनका कहना था कि एक पत्रकार के रूप में देश सेवा भली प्रकार की जा सकती है ।
हुकुमचंद नारद ( जन्म - 1901 ) ने शासन और सत्ता के मद में चूर अंग्रेजों पर अपनी प्राणवान पत्रकारिता के शस्त्र का उत्तम प्रयोग किया । महाकौशल पत्रकारिता के इतिहास में 'बेंडा काण्ड ' विशेष महत्व रखता है । बेंडा तथा ग्रामों में अंग्रेज टामी सैनिकों ने जो कुकर्म किये वे मानवता के मुख पर कलंक कालिमा बन चुके थे । उन्होंने ग्रामवासियों को निर्दयता पूर्वक पीटा, उनके घर लूटे तथा निरीह महिलाओं के साथ ब लात्कार किया था । अपने ह्रदय की आवाज को सुनकर कि
' आततायी कितना ही समर्थ क्यों न हो उसे दण्डित कराना प्रत्येक सजग मानव का कर्तव्य होता है उन्होंने इस काण्ड का सजीव चित्रण अपने पत्र में किया तथा यह मांग की कि टामियों का कोर्ट मार्शल न हो वरन सामान्य न्यायालय में उन पर मुकदमा चलाया जाये तथा उन्हें दण्डित किया जाये ।
सारे भारतवर्ष में इसकी भयंकर प्रतिक्रिया हुई थी । सभी समाचार पत्रों ने जोरदार शब्दों में इस आग्रह को दोहराया था । सत्ता को इस आग्रह के सामने झुकना पड़ा तथा आततायिओं को दंड मिला था । नारद जी सच्चे पत्रकार थे । वे जीवन भर गरीबों के साथी रहे , उनकी आवाज को मुखर बनाने में उन्होंने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी ।
उन्होंने इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया , उनका कहना था कि एक पत्रकार के रूप में देश सेवा भली प्रकार की जा सकती है ।
हुकुमचंद नारद ( जन्म - 1901 ) ने शासन और सत्ता के मद में चूर अंग्रेजों पर अपनी प्राणवान पत्रकारिता के शस्त्र का उत्तम प्रयोग किया । महाकौशल पत्रकारिता के इतिहास में 'बेंडा काण्ड ' विशेष महत्व रखता है । बेंडा तथा ग्रामों में अंग्रेज टामी सैनिकों ने जो कुकर्म किये वे मानवता के मुख पर कलंक कालिमा बन चुके थे । उन्होंने ग्रामवासियों को निर्दयता पूर्वक पीटा, उनके घर लूटे तथा निरीह महिलाओं के साथ ब लात्कार किया था । अपने ह्रदय की आवाज को सुनकर कि
' आततायी कितना ही समर्थ क्यों न हो उसे दण्डित कराना प्रत्येक सजग मानव का कर्तव्य होता है उन्होंने इस काण्ड का सजीव चित्रण अपने पत्र में किया तथा यह मांग की कि टामियों का कोर्ट मार्शल न हो वरन सामान्य न्यायालय में उन पर मुकदमा चलाया जाये तथा उन्हें दण्डित किया जाये ।
सारे भारतवर्ष में इसकी भयंकर प्रतिक्रिया हुई थी । सभी समाचार पत्रों ने जोरदार शब्दों में इस आग्रह को दोहराया था । सत्ता को इस आग्रह के सामने झुकना पड़ा तथा आततायिओं को दंड मिला था । नारद जी सच्चे पत्रकार थे । वे जीवन भर गरीबों के साथी रहे , उनकी आवाज को मुखर बनाने में उन्होंने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी ।