30 September 2023

WISDOM ----

    मनुष्य  के  जीवन  में  सुख -दुःख  ,  दिन  और  रात  की  तरह  आते -जाते  हैं  l  लेकिन  कभी -कभी  रात  बहुत  गहरी  और    अमावस्या  के  अंधकार  की  तरह    अँधेरी  होती  है  l  जीवन  का  यह  अंधकार  किसी  तरह  छंटता  ही  नहीं  है , दुःखों  की  श्रंखला  चलती  ही  रहती  है  l  सुबह  के  इंतजार  में  आँखें  भी  थक  जाती  हैं  l  ऐसा  क्यों  होता  है  ?    यदि  हम  पुनर्जन्म  के  सिद्धांत  को  माने   तो  इस  प्रश्न  का  उत्तर  मिल  सकता  है  l  एक   साधारण    व्यक्ति  यदि  कोई  भूल  करता  है   तो   ईश्वरीय  विधान   में  उसे  मिलने  वाली  सजा  भी   साधारण  ही  होती  है   क्योंकि  वह   बहुत    साधारण   व्यक्ति   है  , उसकी  गलती  ने  समाज  को  प्रभावित  नहीं  किया  l   लेकिन  एक  ऐसा  व्यक्ति  जो   कला , साहित्य , शिक्षा , संस्कृति ,  चिकित्सा , राजनीति , धार्मिक  संस्था  आदि  किसी  भी  क्षेत्र  में  ऊँचे  पद  पर  है , उसकी  कही  बात , उसके  कार्य  समाज  को  प्रभावित  करते  हैं ,  ऐसा  व्यक्ति  यदि   अपनी  गरिमा  के  विरुद्ध  अनैतिक , अमर्यादित  आचरण  करे , समाज  से  छुपकर  भी  कोई  गलत  काम  करे  , अपनी  महत्वाकांक्षा  की  पूर्ति  के  लिए  धोखा , छल -कपट  करे   तो  यह  सब  ईश्वर  से  नहीं  छुपाया  जा  सकता  l  ऐसे  व्यक्तियों  की  अँधेरी  रात  बहुत  लंबी  होती  है , शायद  सुबह  आने  में  कई  जन्मों  की  यात्रा  तय  करनी  पड़े  l   पुराण  की  एक  कथा  है  -----   भगवान  विष्णु  के  द्वारपाल  जय -विजय  थे   l  उन्हें  अपने  इस  अधिकार  पर  घमंड  हो  गया  l  वे  चाहते  थे  सब  उनसे  पूछकर  , उनकी  अनुमति  से  ही  भगवान  विष्णु  से  मिलने  जाएँ  l  यदि  कोई  उनसे  न  पूछे  तो  उन्हें  इसमें  अपना  अपमान  महसूस  होता  था  l  इन  द्वारपालों  ने  अपने  अधिकारों  का  दुरूपयोग  कर   नारायणप्रिया  , स्वयं  गृह स्वामिनी  लक्ष्मी  को  भी  भीतर  जाने  से  रोक  दिया  l  लक्ष्मी  जी  मौन  रह  गईं  , लेकिन  जिस  दिन  उन्होंने  अपने  अहंकार  के  कारण   सनक , सनंदन  , सनातन  और  सनत्कुमार  जैसे  ऋषियों  का  अपमान  किया   , उन्हें  भीतर  जाने  से  रोक  दिया  , तब  वे  चुप  न  रहे  l  उन्होंने  दोनों  को  असुर  होने  का  शाप  दे  दिया  l  तीन  कल्पों  में  उन्हें   हिरण्याक्ष -हिरण्यकशिपु  ,   रावण -कुम्भकरण ,   एवं  शिशुपाल -दुर्योधन  के  रूप  में  जन्म  लेना  पड़ा  l  संतों  को  उन्हें   यह  पाठ  पढ़ाना  था  कि  अहंकार  व्यर्थ  है  l  वैकुंठवासी  होने  के  नाते   स्वयं  को  पतन  के  भय  से  मुक्त   मान  लेना  किसी  के  लिए  भी  पतन  का  कारण  बन  सकता  है  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  लिखते  हैं --- 'पद  जितना  बड़ा  होता  है , सामर्थ्य  उतनी  ही  ज्यादा  और  दायित्व  उतने  ही  गंभीर  l  ऐसा  ही  अपमान  किसी  साधारण  द्वारपाल  ने  किया  होता  तो   इतने  परिमाण  में  दंड  नहीं  चुकाना  पड़ता  l  सामर्थ्य  का  गरिमापूर्ण  एवं  न्यायसंगत  निर्वाह  ही  श्रेष्ठ  मार्ग  है  l "  

28 September 2023

WISDOM -----

   इस  संसार  में   यदि  कोई   घटना  युगों  से  उसी  रूप  में  चली  आ  रही  है  , पात्र  बदल  जाते  हैं  लेकिन  घटना  वही  होती  है    तो  वह  घटना  है  -----  जो  व्यक्ति  ईश्वर  के  प्रति  समर्पित  है  , सत्य  के  मार्ग  पर  चलता  है   उसे  अहंकारी  , दुष्ट  आत्माएं   बदनाम  करने  में  ,  चारों  ओर  उसकी  बुराई  करने  में  कोई  कोर -कसर  बाकी  नहीं  रखती  l  इसके  पीछे  का  एक  सत्य  यह  भी  है  कि  वे  ऐसा  कर  के   अनजाने  में   उन्हें  अमर  कर  देती  हैं   l  संसार  उनके  जाने  के  बाद  उन्हें  पूजने  लगता  है  l    ईसा  को  सूली  पर  चढ़ा  दिया , मीरा  को  जहर  दे  दिया  l  भगवान  बुद्ध  को  भी  नहीं  छोड़ा   l   वे  सब   अमर  हो  गए ,  उनके  अनुयायियों  की  कमी  नहीं  है l  स्वामी  विवेकानंद  को  बदनाम  करने  की  बहुत  कोशिश  की  लेकिन  वे  आज  हर  युवा  के  आदर्श  हैं l  सत्य , अहिंसा  के  पुजारी  गांधीजी  को  गोली  मार  दी  l  ऐसा  कर  के  क्या  मिला  ?  सारा  संसार  भारत  को  गाँधी  के  देश  के  नाम  से  जानता  है  l  वास्तव  में  आसुरी  प्रवृत्ति  के  व्यक्ति  दया  के  पात्र  है  ,  मनुष्य  का  जन्म  बहुत  पुण्यों  के  बाद  मिलता  है   और  वे  लोग  इस  जीवन  को     सत्य  और  देवत्व  को  मिटाने  में  गँवा  देते  हैं  और  अंत  में  स्वयं  बेनाम  मिट  जाते  हैं  l  आज  जरुरी  है  कि  हम  अपने  लिए  सद्बुद्धि  की  प्रार्थना  करने  के  साथ   आसुरी  लोगों  के  लिए  भी  सद्बुद्धि  की  प्रार्थना  करें  ताकि  संसार  में  सुख -शांति  हो  ,  लोग   तनाव  रहित  सुख -चैन  की  नींद  ले  सकें  l --------एक  बार  कबीरदास जी  सत्संग  में  लीन   थे  l  उनके  विरोधियों  ने  उन्हें  बदनाम  करने  के  लियेलिये  नगर  की  नर्तकी  को  उनके  पास  भेज  दिया  l  उसे  कुछ  धन  भी  दिया  ,  ताकि  वह  कबीरदास जी  के  चरित्र  पर  मिथ्या  आरोप  लगा  सके  l  नर्तकी  सत्संग  में  पहुंचकर  बोली ---- " यह  साधु  ढोंगी  है  l  इसने  मुझे  विवाह  का  वचन  दिया  था  , अब  मुकर  रहा  है  l "  यह  सुनकर  सभी  उपस्थित  लोग  कबीरदास जी  की  ओर  प्रश्नवाचक  मुद्रा  में  देखने  लगे  l  कबीरदास  जी  अपने  स्थान  से  उठे  और  बोले  --- "  भाइयों  !  इसे  न्याय  तो  देना  ही  होगा  l  आप  लोग  घर  जाइए  , अब  सत्संग  नहीं  होगा  l "  सबके  चले  जाने  के  बाद   कबीरदास जी  नर्तकी  से  बोले --- "  तुमने  बहुत  अच्छा  किया  , जो  यहाँ  चली  आईं  l  मेरे  पास  हर  समय  भीड़  बनी  रहती  है  ,  जिसके  कारण  भगवान  के  भजन  का  समय  ही  नहीं  मिल  पाता  l  तुमने  सारी  भीड़  भगा  दी  l  अब  मैं  आराम   से  बैठकर   भगवान  का  भजन  करूँगा  l  तुम  भी  साथ  में  भजन  करो  l "  नर्तकी  को  कबीरदास जी  से  ऐसे  व्यवहार  की  उम्मीद  नहीं  थी  , वह  बहुत  शर्मिंदा  हुई  और  तुरंत  बाहर  आकर  लोगों  से  क्षमा  मांगी   और  कहा  कि  संत  कबीर  के  कुछ  विरोधियों  ने   उसे  धन  देकर  ऐसा  करने  को  कहा  था  l  कबीरदास जी  तो  परम  संत  हैं  l  इस  घटना  के  बाद  नर्तकी  का  ह्रदय परिवर्तन  हो  गया  l  

27 September 2023

WISDOM ------

     आज   मनुष्य  ने  भौतिक  सुख -सुविधाएँ  तो  बहुत  जुटा  लीं   लेकिन  उसका  सुख -चैन  गायब  हो  गया   l  तनाव , मनोरोग , अनिद्रा   और  इनसे  उत्पन्न  अनेक  बीमारियों  से  पीड़ित  है  l  इसके  अनेक  कारण  हैं , लेकिन  एक  जो  बड़ा  कारण  है   वह  यह  है  कि  समाज  में  प्रत्यक्ष  रूप  से  अपराध  करने  वाले   और  नकारात्मक  शक्तियों  का  प्रयोग  कर  पीठ  पर  वार  करने  वालों  की  संख्या   बहुत  अधिक  बढ़  गई  है  l    छुट -पुट  अपराधी  पकड़  में  आते  हैं  लेकिन  उनके  पीछे  जो  मास्टर  माइंड  हैं , बड़े  अपराधी  हैं  वे   पकड़  से  बाहर  हैं , समाज  में  खुला  घूमते  हैं  l  उनके  मन  में  हमेशा  अपराध  के  ही  विचार  रहते  हैं   इससे  वैचारिक   प्रदूषण  होता  है  l   इसके  साथ  ही     परिवार  में  , समाज  में   और  बड़े  स्तर  पर  क्षमा  करने  की  जो  विचारधारा  है   उससे  अपराध  और  बढ़ते  हैं  l   परिवार    में  हिंसा , उत्पीड़न  इसलिए   अधिक  होते  हैं  क्योंकि  परिवार  के  ही  बड़े -बुजुर्ग  कहते  हैं  भूल  जाओ , माफ़  कर  दो , अन्यथा  समाज  में  बदनामी  होगी  l  कहीं -कहीं  वे  स्वयं   परिवार  के  किसी  सदस्य  को  उत्पीड़ित  करने  में  सम्मिलित  होते  हैं   l    क्षमा  मिल  जाएगी  , यह  देखकर   निम्न  मानसिकता  के  लोग  और  अपराध  करने  को  प्रेरित  होते  हैं  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- अपराधी  को  क्षमा  कर  देने  से   उसके  संस्कार  नहीं  बदलते , वह  उन  अपराधों  के  लिए  कोई  प्रायश्चित  ही  नहीं  करता  l  ' इस  कथन  की  सत्यता  को  हम  आज  के  समाज  में  देखते  हैं  l    हमारे  धर्म ग्रन्थ  हमें  सिखाते  हैं   कि  हम  में  बदले  की  भावना  नहीं  होनी  चाहिए   l   बदला  लेकर  तो  व्यक्ति  स्वयं  अपराधी  की  श्रेणी  में  आ  जायेगा  l  और  इसमें  खतरा  भी  है  क्योंकि  अपराधी  की  ताकत  का  अंदाजा  नहीं  होता  l  इस  संबंध  में  सकारात्मक  ढंग  से  संगठित  प्रयास  अवश्य  करने  चाहिए   और  सबसे  बढ़कर  ईश्वर  से  न्याय  की  प्रार्थना  अवश्य  करनी  चाहिए  , ईश्वर  के  घर  देर  है  , अंधेर  नहीं  l  महाभारत  में   जब  द्रोपदी  को  भरी  सभा  में  अपमानित  किया  , दु:शासन  ने  उसके   केश  पकड़  कर  खींचे  ,  उसके  पति , भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य  आदि  सब  मौन  रहे , किसी  ने  उसकी  मदद  नहीं  की , उसका  पक्ष  नहीं  लिया  l  द्रोपदी  अपना  यह  अपमान  भूली  नहीं  l  जब  भी  भगवान  कृष्ण  उनके  सामने  होते  वे  उनको  अपने   खुले  केश  दिखातीं , उनकी  आँखों  में  प्रश्न  होता   आखिर  कब  दुर्योधन , दु:शासन  को  अपने  किए  की  सजा  मिलेगी  l  भगवान  उन्हें  सांत्वना  देते --धैर्य  रखो ,  काल  का  विधान  है , समय  का  इंतजार  करो  l  आखिर  महाभारत  हुई  l  द्रोपदी , भीम  आदि  सभी  की  प्रतिज्ञा  पूरी  हुई  l  

26 September 2023

WISDOM ----

   हमारे  धर्म  ग्रंथों  में  कहा  गया  है  कि  व्यक्ति  जैसा  इस  पृथ्वी  पर  दान  करता  है   वैसा  ही  उसे  मृत्यु  के  बाद  उस  लोक  में  प्राप्त  होता  है   l  महाभारत  कालीन  घटना  है  ---- महारथी , महादानी  कर्ण   प्रतिदिन  स्वर्ण  दान  किया  करते  थे  l  युद्ध  में  उनकी  मृत्यु  होने  के  बाद   उन्हें  स्वर्ग  में  रहने  के  लिए  ' स्वर्ण  महल '  मिला  l  जहाँ  प्रत्येक  वस्तु  सोने  की  थी  l  कर्ण  इससे  परेशान  हो  गए  l  भूख -प्यास  तो  उस  लोक  में   भी  लगती  है   जो  स्वर्ण  से   तृप्त  नहीं  हो  सकती  l  जब  उन्होंने  भगवान  से  इसका  कारण  पूछा   तो  पता  चला  कि   वह  प्रतिदिन  सवा  मन  स्वर्ण  दान  किया  करते  थे  ,  अन्य  वस्तुएं ,  अन्न  आदि  का  दान  नहीं  किया   l  यह  जानकार  कर्ण  को  बहुत  दुःख  हुआ  ,  वे  ईश्वर  से  विनती  कर   पंद्रह  दिन  के  लिए  पुन:  पृथ्वी  पर  आए   और  सभी  वस्तुओं  का  दान  किया   और  मनुष्यों  को  भोजन  कराया   l  मान्यता  है  कि   इस  कथा  की  स्मृति  में  ही   पितरों  के  प्रति  श्राद्ध  मनाया  जाता  है  l 

25 September 2023

WISDOM -----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- " हमारे  जीवन  में  जो  कुछ  भी  है  --- भौतिक  संपदा ,  आध्यात्मिक  संपदा , रिश्ते -नाते ,  ये  सब  हमारे  ही  कर्मों  की  अभिव्यक्ति  है  l  दुनिया  में  हम  जिसे  भी  देखते  हैं  अर्थात  --पिता -पुत्र , गुरु -शिष्य  ,  हमारे  सभी  पारिवारिक  रिश्ते  वे  सब  हमारे  अतीत  में  किए  गए    अपने  ही  कर्मों  का  परिणाम  हैं  जो  विभिन्न  रूपों  में  हमारे  सामने  हैं  l  आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---- ' इस  विश्व  ब्रह्माण्ड  में  हम  जहाँ  कहीं  भी  हों  ,  हमारा  कर्म  हमारा  पीछा  करता  हुआ   हम  तक  पहुँच  ही  जाता  है  l  इस  जन्म  में  नहीं  तो   अगले  कई  जन्मों  तक   ये  कर्म  हमारा  पीछा  करते  ही  रहते  हैं   और  तब  तक  समाप्त  नहीं  होते   जब  तक  हम  उन्हें  भोग  नहीं  लेते  , फिर  चाहे  कोई  राजा  हो , धर्मात्मा  हो  , शैतान  हो  , कर्मफल  का  विधान  सबके  लिए  एक  समान  है  l  स्वयं  भगवान  को  भी  अपने  कर्म  का  फल  भोगना  ही  पड़ता  है  l  '                     त्रेतायुग  में  भगवान  श्रीराम  ने  बाली  को  छुपकर  मारा  था  ,  इसका  कारण  चाहे  जो  भी  हो  लेकिन  इस  कर्म  के  परिणाम  स्वरुप  द्वापरयुग  में  जब  भगवान  ने  श्रीकृष्ण  के  रूप  में  अवतार  लिया   तब  जरा  नामक  व्याध  ने  उन्हें  छिपकर  बाण  मारा  था  , जो  इस  धरा  पर  उनकी  अंतिम  श्वास  का  कारण  बना  l '                                            सामान्य  द्रष्टि  से  हमारा  जीवन  हमारा  एक  जन्म  है  , लेकिन  अध्यात्म  की  द्रष्टि  से  यह     हमारी  आत्मा   की    एक  यात्रा  है   जो  कब  और  कहाँ  से  शुरू  हुई  और   कहाँ  समाप्त  होगी  , कोई  नहीं  जानता  l  इस  यात्रा  में   हमने  मानव  शरीर  धारण  कर   जो   शुभ - अशुभ     कर्म  किए  उनका   परिणाम  हमें   यात्रा  के  किस  पड़ाव  पर  मिलेगा  यह  काल  निश्चित  करता  है  l  यही  कारण  कि  सामान्य जन  जब  यह  देखता  है  कि  एक  से  बढ़कर  एक  पापी  सुख  भोग  रहे  हैं    और  पुण्यात्मा  कष्ट  भोग  रहे  हैं   तो  वह  भी   पाप  कर्मों  की  ओर  बढ़  जाता  है  क्योंकि  यह  राह  सरल  भी  है  l   लेकिन  इस  सत्य  को  समझना  होगा  कि   ईश्वर  ने   उनकी  यात्रा  के  इस  स्टेशन  पर  सुख  का  विधान  लिखा  हो , उनके  पाप  कर्मों  का  परिणाम  किसी  अन्य  स्टेशन  पर  मिलने  का  विधान  हो  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  गीता  में  कहा  है  --- ' मैं  काल  हूँ  ,  सब  जन्म  मुझ  से  पाते  हैं  , फिर  लौट  मुझ  में  ही  आते  हैं  l  '    जब  भगवान  के  सामने  प्रत्यक्ष  रूप  में  दुर्योधन   आदि  ने  पांडवों  पर  अत्याचार  किया  , अधर्म , अन्याय , छल , कपट , षड्यंत्र  का  मार्ग  अपनाया   और  इस  गलत  राह  पर  चलकर   हस्तिनापुर  में  राजसुख  भोगते  रहे   l  दूसरी  ओर  पांडव  सत्य  की  राह  पर  चलकर  वन  में  कष्ट  भोगते  रहे  , यज्ञ  से  उत्पन्न  हुई  द्रोपदी   भरी  सभा  में  अपमानित  हुई , महलों  में  रहने  की   बजाय    वन  के  कष्ट  भोगे  , राजा   विराट    के  यहाँ  दासी  बनी  l  यदि  दुर्योधन  आदि  कौरवों  को  उनके  पापों  की  सजा  उनके  इसी  जन्म  में  नहीं  मिलती   तो  संसार  में   गलत  सन्देश  जाता   और  तब  हर   व्यक्ति  गलत  मार्ग  अपनाता  ,  कलियुग  आरम्भ  होने  वाला  था ,  तब  इस  धरती  पर  सत्य  की  राह  पर  चलने  वालों  का  जीवन  कठिन  और  असंभव  हो  जाता  l  इसलिए  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  महाभारत  का  विधान  रचा   और  संसार  ने  देखा   कि  अनीति ,   अत्याचार  करने  वाले  कौरव  वंश  का  अंत  हो  गया   और  उनका  साथ  देने  वाले  भीष्म , द्रोणाचार्य , कर्ण  आदि   सब  युद्ध  में  मारे  गए   l                                        कर्म  की गति  बड़ी  गहन  है ,  कर्म  किसी  को  नहीं  छोड़ते  l  एक  कथा  है ----  देवराज  इंद्र  के  पुत्र  जयंत  ने   माँ  सीता  के  पैर  में  कौवे  के  रूप  में  चोंच  मार  दी  l  उनके  पैर  से  रक्त  निकल  आया  l  प्रभु  श्रीराम  ने  यह  देखकर   समीप  रखे  कुशा  के  एक  तिनके  को  उठाया  और  उसे  मंत्रसिक्त  कर  जयंत  की  ओर  फेंक  दिया  l  कुशा  के  उस  तिनके  ने  अभेद्य  बाण  का  रूप  धारण  कर  लिया  l  जयंत  भाग  निकला ,  सोचा  कि  हम  बच  गए  लेकिन  बाण  उसका  पीछा  करता  रहा  l  बाण  से  बचने  के  लिए  जयंत  सभी  लोकों  में  भागा  , किसी  ने  उसे  शरण  नहीं  दी  l  उसके  पिता  इंद्र     और  ब्रह्माजी  ने  भी  उसकी  सहायता  करने  से  मना  कर  दिया  l  अंततः  उसे  भगवान  श्रीराम  की  शरण  में  आना  पड़ा  l  उन्होंने  उसे  क्षमा  तो  किया  , परन्तु  कर्मफल  के  रूप  में  उसे  अपनी  एक  आँख  गँवानी  पड़ी  l 

23 September 2023

WISDOM -----

  इस  संसार  में  भांति -भांति  के  लोग  हैं  l  समस्या  यह  है  कि  उन्हें  पहचाने  कैसे  कि   कौन  कैसा  है  ?  अधिकांश  लोग  एक  मुखौटा  लगाए  हैं  ,  जो  जैसा  दीखता  है  वो  वैसा  है  नहीं  l  लेकिन  फिर  भी  यदि  हम  किसी  के  आचरण  का  गहराई  से  अध्ययन  करें   तो  हम   किसी  की  भी  सच्चाई  को  समझ  सकते  हैं   और  यदि   किसी  का  सच  समझ  में  आ  जाये  तो  धोखा , विश्वासघात  की  संभावना   नहीं  रहती  l  आज  के  कठिन  समय  में  पुस्तकीय  ज्ञान   के  साथ   जीवन  जीने  की  शिक्षा  भी  जरुरी  है  l  ऋषियों  का  कहना  है  --- संसार  का  प्रत्येक  प्राणी   अपने -अपने  भाव  के  अनुसार  क्रिया  प्रकट  करता  है  l  l  जिसके  भीतर  जो  है  ,  वही  उसकी  क्रिया  में  प्रकट  होता  है    जैसे  --- बगीचा  एक  है  , मक्खी  बाग़  में  घुसते  ही  गंदगी  ढूँढने  लगती  है   और  कहीं  न  कहीं  से   गंदगी  को  ढूंढकर   उसका  स्वाद  लेती  हुई  प्रसन्न  होती  है   l  लेकिन  जब  कोई  मधुमक्खी  उस  बाग़  में  जाती  है   तो  वह   गंदगी  की  ओर  आँख  उठाकर  भी  नहीं  देखती   और  सुन्दर  पुष्पों  में  से  मधुर  पराग  इकट्ठा  करती  है  l   कोयल  उस  बाग़  में  प्रवेश  कर    बहुत   प्रसन्न  होती  है  ,  कुहू -कुहू   कूकती  है  , अपनी  सुरीली  आवाज  से  सबको  प्रसन्न  करती  है   l  दूसरी  ओर  चमगादड़  है   जो  अंधकार  का , नकारात्मकता  का  प्रतीक  है  ,  वह  उस  बाग़  में  घुसता  है   तो  उसके  उत्तम  फल -फूलों  को  कुतर -कुतर  कर   जमीन  पर  ढेर  लगाता  है   और  उस  बगीचे  को  कुरूप  बनाता  है  l  बाग़  एक  ही  है  लेकिन  चारों  प्राणी  अपने  अपने  भाव  के  अनुसार  क्रिया  करते  हैं   l  इसी  तरह  यह  संसार  ईश्वर  का  सुन्दर  बगीचा  है  ,  यहाँ  काम , क्रोध , लोभ , मोह ,तृष्णा , महत्वाकांक्षा , अहंकार ,  ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार   जैसे  मानसिक  विकारों  से  ग्रस्त   लोग    रहते  हैं  l    व्यक्ति  का  मास्क  उसके  इन  विकारों  को  ढक  नहीं  पाता  l  आचार्य  श्री  कहते  हैं  --- सच्चाई  कभी  छुप  नहीं  सकती  l  मनुष्य  के  व्यक्तित्व  में  इतने  छिद्र  हैं   कि  कहीं  न  कहीं  से  सत्य  बाहर  आ  ही  जाता  है   l   ,  सरल  भाषा  में  कहें  तो  व्यक्ति   का  व्यवहार , उसके  तौर -तरीके ,  उसकी  जीवन  शैली   उसकी  सच्चाई  को  बयां   करते  हैं  l  

WISDOM -----

    संत  हरिदास  अपने  शिष्य  तानसेन   से  कह  रहे  थे  कि  यदि  ईश्वर  को  पाना  है  तो  अपने  अहंकार  को  मिटाना  होगा  l  बाबा  हरिदास  अपनी  आध्यात्मिक  अनुभूति   उन्हें  सुनाते  हुए  बोले ----" सुबह  मैंने  ध्यान  में  देखा  , राधारानी  श्रीकृष्ण  से  कह  रहीं   हैं  ---' कन्हैया !  यह  बाँसुरी  सदा  ही  तुम्हारे  ओंठों  से  लगी  रहती  है  ,  तुम्हारे  ओंठों  का  स्पर्श   इस  बांस  की  पोंगरी  को  इतना  अधिक  मिलता  है  कि  मुझे  जलन  होने  लगती  है  l '  राधारानी  की  बात  सुनकर  श्रीकृष्ण  खूब  जोर  से  हँसे   और  बोले  --- " राधिके  ! बाँसुरी  होना  सबसे  कठिन  है  , शायद    उससे  कठिन  और  कुछ  भी  नहीं  l  जो  स्वयं  को  बिलकुल  मिटा  दे  , वही  बाँसुरी  हो  सकता  है  l  यह  बांसुरी  बांस  की  पोंगली  नहीं   है  l  इसका  स्वयं  का  कोई  स्वर  नहीं  है  --- मैं  गाता  हूँ  तो  वह  गाती  है  ,  मैं  मौन  हूँ  तो  वह  मौन  है  , मेरा  जीवन  ही  उसका  जीवन  है  l "  

22 September 2023

WISDOM ----

 भगवान  विष्णु  के  वैकुण्ठ  धाम  में   भारी  भीड़  लगी  हुई  थी  l  प्रभु  ने  आज  संकल्प  किया  था  कि  वे  अपने  धाम  से  किसी  को  खाली  हाथ  नहीं  जाने  देंगे  l  सभी  प्राणी  उनसे  भांति -भांति  की  संपदा  मांगने  में  लगे  थे  l  वैकुण्ठ  का  कोष  रिक्त  होते  देख   महालक्ष्मी  ने   भगवान  विष्णु  से  पूछा ---" हे  प्रभु  !  यह  सारी  संपदा  आप  मुक्त भाव  से   लुटा  देंगे   तो  वैकुण्ठ  में  क्या  बचेगा  ?  यहाँ  के  निवासी  कहाँ  जाएंगे  , क्या  करेंगे  ? "  लक्ष्मी जी  की  बात  सुनकर  भगवान  विष्णु  मुस्कराते  हुए  बोले  ----" देवी  !  आप  चिंता  न  करें  l  सब  कुछ  लुटाने  पर  भी  एक  निधि  ऐसी  है  , जो  मेरे  पास  सदा  सुरक्षित  रहती  है  l  उसे  यहाँ  उपस्थित  नर , किन्नर , गंधर्व , विद्याधर , देव  और  असुरों  में  से  किसी  ने  नहीं  माँगा  l  यह  निधि  है --- 'मन  की  शांति  ' l  ये  प्राणी  यह  नहीं  जानते  कि  मन  की  शांति   के  बिना   समस्त  धन  संपदा  और  त्रिलोक  का  वैभव -विलास  किसी  मूल्य  का  नहीं  है  l  बिना  शांति  प्राप्त  किए   यह  सारी  संपदा   व्यर्थ  सिद्ध  होती  है  l  "

WISDOM ----

   अध्यात्म  रामायण  में  एक  कथा  है ---- एक  बार  भगवान  राम  और  लक्ष्मण  एक  सरोवर  में  स्नान  के  लिए  उतरे  l   उतरते  समय   उन्होंने  अपने -अपने  धनुष  बाहर  तट  पर  गाड़  दिए  l  जब  वे  स्नान  कर  के  बाहर  निकले   तो  लक्ष्मण  ने  देखा   उनके  धनुष  की  नोक  पर  रक्त  लगा  हुआ  है  l  उन्होंने  भगवान  राम  से  कहा  --- लगता  है  अनजाने  में  कोई  हिंसा  हो  गई  l  दोनों  ने  मिटटी  हटाकर  देखा  तो   वहां  एक  मेढ़क  मरणासन्न  पड़ा  है  l  भगवान  राम  ने   करुणावश     मेढ़क  से  कहा  ---- "  तुमने  आवाज  क्यों  नहीं  दी  ?  हम  लोग  तुम्हे  बचा  लेते  l  जब  सांप  पकड़ता  है  ,  तब  तुम  खूब  आवाज  लगाते  हो  ,  धनुष  लगा  तो  क्यों  नहीं  बोले  ? '  मेढ़क  बोला  ---- " प्रभु  !  जब  सांप  पकड़ता  है   तो  मैं  राम -राम  चिल्लाता  हूँ  ,  पर  आज  देखा  कि   भगवान  राम  स्वयं  धनुष  लगा  रहे  हैं  ,  तो  मैं  किसे  पुकारता  ?  बस ,  इसे  अपना  सौभाग्य  मानकर  चुपचाप  लेता  रहा  l  "  सच्चे  भक्त  जीवन  के  हर  क्षण  को   भगवान  का  आशीर्वाद  मानकर   उसे  स्वीकार  करते  हैं  l   सुख  ईश्वर  की  कृपा  है    तो  दुःख   देकर  ईश्वर  हमें  कुछ  सिखाना  चाहते  हैं  l  

21 September 2023

WISDOM------

 मनुष्य  यदि  ज्ञान  का  सदुपयोग  करता  है  तो  उससे  संसार  का  कल्याण  होता  है   लेकिन  दुर्बुद्धि  और  अहंकार  के  कारण  जब  वह  अपने  ज्ञान  का  दुरूपयोग  करने  लगता  है   तो  उससे   हानि  कई  गुना  अधिक  होती  है  l  आज  संसार  में  जितनी  भी  समस्याएं  हैं  वे  सब  ज्ञान  और  शक्ति  के  दुरूपयोग  के  कारण  ही  हैं  l  ज्ञान  और  शक्ति  का  दुरूपयोग  करने  वाले  आसुरी  प्रवृत्ति  के  होते  हैं  l  इनका  अंत  करने  ईश्वर  को  स्वयं  ही  आना  पड़ता  है  l  रावण  बहुत  ज्ञानी , वेद ,   शास्त्रों  का  ज्ञाता  था  ,  इसके  साथ  ही  वो  तंत्र  विद्या  का  भी  बहुत  बड़ा  ज्ञाता  था ,  मायावी  था  l  इसी  शक्ति  के  बल  पर  उसका  दसों  दिशाओं  में  आतंक  था  l   ऋषियों    को  सताना , उनके  यज्ञ , हवन  आदि  को  नष्ट  करना   ही  उसका  स्वभाव  था  l  राम -रावण  का  युद्ध  हुआ ,  रावण  का  पूरा  कुनबा  समाप्त  हो  गया    लेकिन  असुरता  समाप्त  नहीं  हुई  क्योंकि   यह  एक  प्रवृत्ति  है , एक  विचारधारा  है   जो  आज  मानव  समाज  में   व्यापक   रूप  से  विद्यमान  है  l  तंत्र  आदि  विभिन्न  नकारात्मक  क्रियाओं  को  चाहे  कानून  मान्यता  न  दे  ,  लेकिन  आसुरी  प्रवृत्ति  के  लोग   इनका  प्रयोग  अपने  अहंकार  की  तुष्टि  के  लिए , दूसरों  को  सता कर  अपना  मनोरंजन  करने  के  लिए  करते  हैं  l   तंत्र  का  प्रयोग  संसार  के  कल्याण  के  लिए  भी  हो  सकता  है  लेकिन  जब  विचारों  में  रावण  हो   तो   वह  अपने  साथ  दूसरों  का  भी  अहित  करता  है   l  इन  नकारात्मक  क्रियाओं  का  प्रयोग  बहुत  सोच विचार  कर  योजनाबद्ध  तरीके  से  लोगों  की  पीठ  पर  वार  करने  के  लिए  किया  जाता  है  l  इनसे  पीड़ित  व्यक्ति  परेशान  भी  होता  है ,  अपने  भाग्य  को  कोसता  है   क्योंकि  अपराधी  का  पता  ही  नहीं  कि  कौन   है  ?   समाज  में  अपने  को  सज्जन  ,   संस्कारी   और  सभ्रांत  दिखाने  के  लिए  लोग  छुपकर   ऐसी  नकारात्मक  क्रियाएं  करते  हैं  l   इसके  परिणाम  बहुत  घातक  होते  हैं  , इनसे  वैचारिक   प्रदूषण  होता  है  ,  प्रकृति  को  बहुत  कष्ट  होता  है  ,  समाज  में  मनोरोग , आत्महत्या  की  प्रवृत्ति,  आकस्मिक  दुर्घटनाएं  , पागलपन  , अकाल  मृत्यु  , निराशा   बढ़  जाती  हैं  l  जो  भी  कुछ  इस  पृथ्वी  के  अस्तित्व  के  लिए  घातक  है  उसे  ईश्वर  मनुष्य  की  पहुँच  से  दूर  रखता  है   लेकिन  मनुष्य  अपनी  बुद्धि  का   दुरूपयोग  कर , अपने  अहंकार  का  पोषण  करने  के  लिए  और  स्वयं  भगवान  बनने  के  लिए  उसे   -पृथ्वी   पर  ले  आता  है   जैसे    अणुबम  बनाने  के  लिए  जिस  खनिज  की  जरुरत  है    उसे  ईश्वर  ने   बहुत  गहराई  में  छुपाकर  रखा  है   ताकि  हमारी  धरती  सुरक्षित  रहे   लेकिन  मनुष्य  उसे   खींचकर  पृथ्वी  पर  ले  आया  और   मानव  सभ्यता  के  अस्तित्व  पर  संकट  उपस्थित  कर  दिया  l  इसी  तरह  नकारात्मक  क्रियाओं  के  लिए    आसानी  से  दिखाई  न  देने  वाले  नकारात्मक  तत्वों  पर पर  अपना  नियंत्रण  कर  के   मनुष्य   स्वयं  अपने  लिए  और  समाज  के  लिए  कष्टकारी   वातावरण    का  निर्माण  करते  हैं  l  पहले  तो  एक  ही  रावण  था   लेकिन  अब  क्या  कहे  ------?   पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  कहा  है  --- कलियुग  की  सबसे  बड़ी  समस्या  दुर्बुद्धि  है   इसलिए  हम  सब  को  सद्बुद्धि  के  लिए  गायत्री  मन्त्र  अवश्य  जपना  चाहिए  l l  गायत्री  मन्त्र  और  महा मृत्युंजय  मन्त्र   से  प्रकृति  को  पोषण  मिलता  है   l  

19 September 2023

WISDOM ----

  प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  है  l   यहाँ  कर्मफल  का  नियम  लागू  होता  है  l  जो  जैसे  कर्म  करता  है  ,  वैसा  ही  फल  उसे  प्राप्त  होता  है  l  कर्म  करने  के  लिए  व्यक्ति  स्वतंत्र  है   ,  उस  कर्म  का  परिणाम  कब  और  कैसे  मिलेगा  यह  काल  निश्चित  करता  है  l  जो  ईश्वरीय  विधान  को  नहीं  मानते  ,  संसार  में  जो  व्यस्था  चल  रही  है  उसे  ही  सत्य  मानते  हैं   कि  जी  भर  के  गलत  काम  करो ,  लोगों  का  हक  छीनों,  छल  ,कपट , षड्यंत्र  रचो  , धोखा  दो , लोगों  को  उत्पीड़ित  करो   और    सॉरी  बोलकर  सब  पापों  से  मुक्त  हो  जाओ  l  ऐसा  सोचना  मनुष्य  की  भूल  है  l  कर्म  का  फल  तुरंत  नहीं  मिलता   क्योंकि  प्रत्येक  व्यक्ति  अपने  जीवन  में  कुछ -न -कुछ  पुण्य  भी  करता  है  ,  उसके  पिछले  जन्मों  के  भी  संचित  पुण्य  होते  हैं  l  निरंतर  पापकर्म  करने  से  इन  संचित  पुण्यों  का  भंडार  समाप्त  होने  लगता  है   और  जैसे  ही  पुण्यों  का  भंडार  समाप्त  हुआ  ,  उसे  उसके  पापों  का  फल  मिलना  शुरू  हो  जाता  है  l  अपने  पाप  कर्मों  से  छिपकर  व्यक्ति  सात  समुद्र   पार   या  दुनिया  के  किसी  भी  कोने  में  चला  जाये   उसके  कर्म  उसे  वैसे  ही  ढूंढ  लेते  हैं  जैसे  बछड़ा  हजारों  गायों  में  अपनी  माँ  को  पहचान  लेता  है   l  आचार्य श्री  कहते  हैं --- आचार्य श्री  कहते  हैं ---- पिछले   जन्मों  का  जो  कुछ  बीत  गया  उस  पर  हमारा  वश  नहीं  है  l  हमारे  हाथ  में  वर्तमान  है  ,  इस  जन्म  में  सत्कर्म  कर  के  हम  अपने  पिछले   पापों  को  कुछ  काट  सकते  है  , उनकी  तीव्रता  को  कम  कर  सकते  हैं   और  अपने  सुनहरे  भविष्य  का  निर्माण   कर  सकते  हैं  l 

18 September 2023

WISDOM -----

  एक  व्यक्ति  के  पास  बहुत  धन  था  , पर  वह  स्वभाव  से  बहुत  कंजूस  था  l  न  खुद  अच्छे  से  रहता  , न  दूसरे  का  ही  कुछ  भला  कर  पाटा  l  वह  अपने  घर  में  धन  इसलिए  नहीं  रखता  था  , ताकि  कोई  चोर  डाकू  चुरा  न  ले  l अत: गाँव  के  बाहर  एक  जंगल  में  गड्ढा  खोदकर   उसने  अपना  सारा  धन  वहां  गाढ़कर  रख  दिया  l   हर  दूसरे -तीसरे  दिन  जाता   और  उस  स्थान  को  चुपचाप  देख  आता  l  उसे  यह  देखकर  बड़ा  संतोष  होता  कि  उसका  धन  वहां  सुरक्षित  रखा  हुआ  है  l  एक  बार  एक  चोर  को  शक  हुआ   तो  वह  उस  कंजूस  के  पीछे -पीछे  चुपचाप  गया   और  छिपकर  उस  स्थान  को  देख  आया  ,  जहाँ  कंजूस  बार -बार  जाया  करता  था  l  जब  कंजूस  उस  जगह  का  चक्कर  लगाकर  चला  गया   तो  चोर  ने  खुदाई  कर  के   सारा  धन  निकाला  और  भाग  गया  l   दो -तीन  दिन  बाद  जब  कंजूस   अपने  छिपे  धन  को  देखने  गया   तो  उसे  जमीन  खुदी  हुई  और  गड्ढा  खाली  मिला  l  यह  देखकर  वह  माथा  पकड़कर  जोर -जोर  से  रोने  लगा   , लोग  इकट्ठे  हो  गए  कहने  लगा  ---'मेरे  जीवन  भर  की  कमाई  चली  गई  l '  तब  एक  व्यक्ति  बोला  -- " सेठजी  ! यह  धन  तो  पहले  भी  आपके  काम  नहीं  आया  था   और  न  ही  अब  आपको  इसकी  जरुरत  थी  , हाँ , आपका  उस  पर  अधिकार  अवश्य  था  l  अब  यदि  यहाँ  से  कहीं  चला  गया   तो  आपको  कौन  सी  हानि  हो  गई  ?  आप  तो  उसे  वैसे  भी  इस्तेमाल  नहीं  करते  थे  l "  कहते  हैं  धन  की  तीन  ही  गति  हैं ----दान , भोग  या  नाश  !  जितना  ईश्वर  ने  दिया  है  उससे  अपनी   जरुरत  पूरी  कर   , सामर्थ्य  अनुसार  दान  भी  करे   अन्यथा  वह   नष्ट    हो  जाता  है  l  

17 September 2023

WISDOM -----

   इस  संसार  में  अंधकार  और  प्रकाश   में  निरंतर  संघर्ष  है  l  प्रकाश  आते  ही  अंधकार  का  अस्तित्व  ही  समाप्त  हो  जाता  है   l   अंधकार  में  , नकारात्मकता  के  साथ  जीने  वाले  को  भी  यदि   किसी  तरह  एक  बार  ईश्वरीय  प्रकाश  के  दर्शन  हो  जाएँ  तो  वह  वापस  अंधकार  की  ओर  नहीं  लौटता  l  ' पतंगे  को  दीपक  का  प्रकाश  मिल  जाए   तो  फिर  वह  अँधेरे  में  नहीं  लौटता  ,  भले  ही  उसे  दीपक  के  साथ  प्राण  गँवाने  पड़े  l    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- " विषयों  में  मिलने  वाले  आनंद  से  मनुष्य  कभी  अघाता  नहीं  है , उसे  कभी  तृप्ति  नहीं  होती  l  लेकिन  जब  उसे  ईश्वरीय  प्रकाश  के  दर्शन  होते  हैं , अपनी  आत्मा  में  परमात्मा  की  अनुभूति  होती  है  तब  उसे  परम  आनंद  ,  तृप्ति  और  शांति  प्राप्त  होती  है  l '   एक  रोचक  कथा  है -------- " श्रीरंगम  में  प्रत्येक  वर्ष  एक  मेला  लगता  था  l  उसमें  श्री  रामानुजाचार्य  भी  अपने  शिष्यों  के  साथ  जाते  थे  l  एक  दुर्दांत  डाकू  जिसका  नाम  दुर्दम  था   वह  भी  उस  मेले  में  आता  था  l  उसका  उदेश्य   श्रीरंगम  की  छवि  के  दर्शन  करना  नहीं  था  l   वह  एक  सुन्दर  महिला  के  प्रति  आसक्त  था   और  उसी  सुंदरी  के  पीछे  छाता  लगाकर  चलता  था  l  उस  डाकू  के  आतंक  के  कारण  कोई  उससे  कुछ  कहता  नहीं  था  l     जब  आचार्य  रामानुज  ने  उसे  देखा  तो  शिष्यों  से  कहा --- ' उसे  मेरे  पास  बुलाओ  l "  आचार्य की  शक्ति  के  बारे  में  जानता  था  इसलिए  न  चाहते  हुए  भी  वह  उनके  पास  पहुंचा  l  आचार्य जी  उससे  बोले --- '  हमें  बड़ा  अचरज  है  कि  सभी  भगवान  के  सौन्दर्य  के  दर्शन  कर  रहे  हैं  और  तुम  एक  स्त्री  में  आसक्त  हो  l "  डाकू  बोला --- ' यह  सुन्दरतम  स्त्री  है , मैं  इसे  चाहता  हूँ  l "  आचार्य  रामानुज  बोले --- '  हम  इससे  भी  सुन्दर  कुछ  दिखा  दें  तो  क्या  तुम  इसे  छोड़   दोगे  ? "  ऐसा  कहकर  वे  उसे  श्रीरंगम  की  छवि  के  दर्शन  कराने  ले  गए  l  आचार्य  की  प्रार्थना  पर   भगवान  श्रीकृष्ण  ने   उसे  अपने  अप्रतिम  सौन्दर्य  की  एक  झलक  दिखाई  l  अपूर्व  सौन्दर्य  को  देखकर  वह  भाव विह्वल  हो  गया   और  बोला ---" महात्मन  ! अब  तो  मुझे  इन्ही  भगवान  को  प्राप्त  करना  है  l "  इस  पर  आचार्य  बोले --- " यदि  तुम  निर्दिष्ट  तप , साधना  व  ध्यान  करोगे  तो  भगवान  का   यह  अपूर्व  सौन्दर्य  तुम्हारे  ह्रदय  , तुम्हारी  आत्मा  में  टिकेगा  और  तुम्हे  सतत  दीखता  रहेगा   l " वह  डाकू  इसके  लिए   तैयार  हो  गया   तप , साधना  और  ध्यान  करते -करते   उसकी  चित शुद्धि  होने  लगी   और  उसकी  आत्मा  में  भगवान  की  मनोहर  छवि  स्थिर  होने  लगी  , ध्यान  में  वह  उस  मनोहर  छवि  के  दर्शन  करने  लगा  l  फिर  आचार्य  रामानुज  ने  उसी  स्त्री  से  उसका  विवाह  करा  दिया  l   उसने  सारा  जीवन  सदगृहस्थ  के  रूप  में  जिया  l लोकसेवा  भी  करने  लगा  l  आचार्य  कावेरी  से  स्नान कर  लौटते  तो  उसके  कंधे  पर  हाथ  रखकर  आते  ,  कोई  पूछता  तो  कहते  कि  तुम  उसका  ह्रदय  देखो  , उसमें  भगवान  बसते  हैं  l  भगवान  के  दिव्य  सौन्दर्य  के  दर्शन  ने  उसके  जीवन  को  परिवर्तित  कर  दिया  l  

16 September 2023

WISDOM ---

  एक  व्यक्ति  के  मरने  का  समय  आया  तो  स्वर्ग  से  देवदूत  उसे  लेने  पहुंचे   और  बोले  --- " चलिए  !  हम  आपको  स्वर्ग  ले  जाने  आए  हैं  l "   उसने  विनती  की  और  बोला  --- "  हे  देवदूतों  !  आप  कृपा  करें  , मेरे  कुछ  जरुरी  कार्य   शेष  हैं  , कृपा  कर  के  मुझे  एक  वर्ष   और  जीने  का  अवसर  दें  l "  उसके  पुण्य  कार्यों  को  देखते  हुए   देवदूतों  ने  कहा --- " ठीक  है  !  हम  एक  वर्ष  बाद  आयेंगे  l "  अब  वह  व्यक्ति  यह  सोचकर  निश्चिन्त  हो  गया  कि  उसे  तो  मृत्यु  के  बाद  स्वर्ग  मिलेगा   इसलिए  उसने  इस  एक  वर्ष  में  खूब  मौज -मस्ती  की  ,  कोई  पुण्य  के  कार्य  नहीं  किए  , जीवन  भर  की  अधूरी  इच्छाएं  पूरी  करने  में  व्यस्त  हो  गया  l    देखते -देखते  एक  वर्ष  बीत  गया  l  एक  वर्ष  बाद  उसे  लेने  यमदूत  आए   और  बोले  --- "  चलो  !  हम  तुम्हे  नरक  ले  जाने  आए  हैं  l "  वह  व्यक्ति  नरक  का  नाम  सुनकर  घबराया  और  बोला  --- " मेरा  स्थान  तो  स्वर्ग  में  नियत  था  , आप   भूल  कर  रहे  हैं  l  "  यमदूत  बोले  --- "  उस    समय  था   ,  लेकिन  इस  एक  वर्ष  में  तुमने  कोई  पुण्य  नहीं  किया   और  जो  पिछले  पुण्य  थे  वे  सब  इस  एक  वर्ष  में  तुमने  भोग -विलास  का   जीवन   जी  कर  समाप्त  कर  दिए   इसलिए  अब  तुम्हारी  बारी  पाप  भोगने  की  है  l  "   आचार्य श्री  कहते  हैं  --- 'पापों  को  एकत्रित  कर  स्वर्ग  की  कामना  मत  करो  l  सन्मार्ग  पर  चलो   और  सत्कर्म  की  पूंजी  एकत्रित  करते  चलो   तो  धरती  पर  ही  स्वर्ग  जैसी  सुख -शांति  प्राप्त  होगी  l '

WISDOM -----

   आज  संसार  में  अनेक  बीमारियाँ   हैं , उनके  उपचार  के  लिए  हर  तरह  की  चिकित्सा  उपलब्ध  है   l  लेकिन  इन  सब  बीमारियों  , दुर्घटनाओं  को  जन्म  देने  वाली  जो  सबसे  बड़ी  बीमारी  है   , वह  है  --तनाव  l   हमारी  रोजमर्रा  की  जो  जिन्दगी  है  उसमें  कहीं  कोई  कमी  है  जो  तनाव  को  जन्म  देती  है   l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- रोजमर्रा  की  जिंदगी  में   यदि  सबसे  ज्यादा  किसी  की  उपेक्षा  होती  है  ,  तो  वह   है  --अंतरात्मा  --- यह  हम  सबके  जीवन  का  सार  है  l  औसत   आदमी   अपनी  इन्द्रिय  लालसाओं  को   तृप्त  करने ,  अपने  अहं  को  प्रतिष्ठित  करने  ,  ईर्ष्या , द्वेष ,  संदेह  आदि  कुभाव  के  कारण  अपनी  अंतरात्मा  की  आवाज  को  नहीं  सुनता  , अपनी  ही  अंतरात्मा  का  सम्मान  नहीं  करता  l  आचार्य श्री  कहते  हैं ---आम  इनसान  अपनी  जिंदगी  को  आधे -अधूरे  ढंग  से  जीता  है  , दुनिया  के  सामने  झूठी  नकली  जिंदगी  जीता  है  l  वह  भय  के  कारण  , समाज  के  डर  की  वजह  से  , समाज  में  अपने  अच्छे  होने  का  नाटक  करता  है  , परन्तु  समाज  की  ओट  में   चोरी  छिपे   अनेकों  बुरे  काम  कर  लेता  है  l  अपने  मन  में  बुरे  ख्यालों  व  ख्वाबों  में  रस  लेता  है  l  वह  इस  सत्य  को  अनदेखा  करता  है  कि   ईश्वर  सड़क , चौराहों  और  कमरे  की  बंद  दीवारों  के  भीतर  भी  है l  यहाँ  तक  कि  हमारे  अंतर्मन , हमारे  विचार , भावनाएं   सब  पर  ईश्वर  की  नजर  है  l  हमारे  मन  के  तार  ईश्वर  से  जुड़े  हैं  l  जो  इस  सत्य  को  जानते  -समझते   हैं   वे  सरलता  से  अपना  जीवन  जीते  हैं , उनका  जीवन  एक  खुली  किताब  होता  है  , जहाँ  तनाव   की  कोई  जगह  ही  नहीं  है  l  

15 September 2023

WISDOM -----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " जीवन  सुख -दुःख  का  संयोग  व  सम्मिश्रण  है  l  प्रत्येक  व्यक्ति  के  जीवन  में  सुख -दुःख   धूप  -छाँह  के  समान  सतत  परिवर्तित  होते  रहते  हैं  l  सुख  का  पल  सहज  है  लेकिन  दुःख  का  पल  अति  कठिन  होता  है  , इससे  भागा  नहीं  जा  सकता  , भोगना  तो  पड़ता  ही  है  l  यदि  सकारात्मक  ढंग  से  स्वीकार  कर  लिया  जाये  तो  दुःख   इन्सान  को  बहुत  कुछ  देने  के  लिए  आता  है  l "   जब  भी  जीवन  में  दुःख  आए , बुरा  समय  आए  तो  सर्वप्रथम  हमें  यह  स्वीकार  कर  लेना  चाहिए  कि   यह  हमारे  ही  इस  जन्म  में  या  पिछले  किसी  भी  जन्म  में  किए  गए   गलत  कर्मों  का  परिणाम  है   या  इस  बात  की  भी  पूरी  संभावना  है   और  ऋषियों  का  कहना  भी  है  कि  हमारे  पिछले  जन्मों  की  आध्यात्मिक  प्रगति  को  देखते  हुए  ईश्वर  हमें  इस  जन्म  में   अध्यात्म पथ  पर  और  ऊँचाइयों  पर  पहुँचाने  के  लिए   विभिन्न  कष्टों  और  दुःख  की  चुनौतियों  से  गुजार  कर  , हमारी  परीक्षा  लेकर  हमें  खरा  सोना  बनाना  चाहते  हैं  l  विधि  का  विधान    तो  विधाता  ही  जानते  हैं   हमें  आचार्य श्री  ने  जीवन  जीने  की  कला  सिखाई   और  बताया  कि  बुरे  समय  का  प्रबंधन  कैसे  किया  जाए    कि  इसे  सहने  योग्य  बनाया  जा  सके ------ " 1 .  बुरे  समय  में  चुप  रहना  सीखो  l  आचार्य श्री  कहते  हैं  --- दुःख  के  समय  में  , बुरे  समय  में  वाणी  का  प्रयोग  न्यूनतम  कर  देना  चाहिए  l बुरे  समय  में  व्यक्ति  इतनी   घुटन  और  असहजता  अनुभव  करता  है  कि  उसकी  अभिव्यक्ति  वाणी  के  क्रूर  प्रयोग  के  रूप  में  होना  स्वाभाविक  है  l  वह  अपनी  पीड़ा  को  , दरद  को  बंटाना  चाहता  है   , पर  इस  दुनिया  का  दस्तूर  है  कि  कोई  किसी  की  पीड़ा  को  सुनना  और  बंटाना  नहीं  चाहता l  बुरे  समय  में  व्यक्ति  अनर्गल  प्रलाप  करता  है  l  स्वयं  को  निर्दोष  साबित  कर  के  अपनी  वेदना  का  दोषारोपण   औरों  पर  मढ़ता  है  l  तर्कहीन  प्रलाप  से   बात  और  उलझ  जाति  है ,  उसी  पर   मनोदोष  और  गलतियों  को  उड़ेल  दिया  जाता  है  l  समस्या  सुलझने  के  स्थान  पर  और  उलझ  जाती  है ,  दुःख  और  बढ़  जाता  है  l  इसलिए  चुप  रहे  , अपने  दुःख  को  केवल  ईश्वर  से  ही  कहे  l  आज  के  युग  में  विश्वास  करने  लायक  कोई  भी  नहीं  है   l    2 .    दुःख  और  कष्ट  के  समय  अपना  कर्तव्य  पालन  करने  के  साथ  अपने  इष्ट  का , अपने  भगवान  का  निरंतर  स्मरण  करे  l  प्रभु  की  भक्ति  ने  ही  भक्त  प्रह्लाद  को  हर  विपरीतताओं  और  षड्यंत्रों  से  बचाए  रखा  l  आचार्य श्री  कहते  हैं --- गायत्री  मन्त्र  के  देवता  सूर्य  देव  हैं  जो  सबके  पूज्य  हैं   इसलिए  जितना  हो  सके  गायत्री  मन्त्र  का  जप  अवश्य  करें  l  ऐसा  करने  से  भीषण  बाधाएं  भी  टल  जाती  हैं  l  

12 September 2023

WISDOM ------

   यदि  नैतिकता  और  जीवन  मूल्यों  की  शिक्षा   व्यक्ति  को  उसके  बचपन  से  ही  न  दी  जाये  तो     धीरे -धीरे  एक  दिन  वह  समय  आता  है  जब  सब  कुछ  होते  हुए  भी  जीवन  अर्थहीन  और  भीतर  से  खोखला  हो  जाता  है  l  बाहरी  तौर  से   देखने  पर  सम्पन्नता  है    लेकिन  सुख  नहीं  है  l  इसका  कारण  यही  है  कि  अपने  अहंकार  के  पोषण  और  अधिकाधिक  धन  कमाने  के  लिए   व्यक्ति   अपनी  आत्मा   की  आवाज  को  मारकर  अनैतिक  और  अमर्यादित  आचरण  करता  है  l  इसका  सबसे  बुरा  प्रभाव  पारिवारिक  जीवन  पर  पड़ता  है  l  हमारे  धर्मग्रंथ  हमें  शिक्षा  देते  हैं   लेकिन  सन्मार्ग  पर  चलना  कठिन  है  इसलिए  लोग  बुराई  का  सरल  मार्ग  चुन  लेते  हैं  l  रावण  को  हर  वर्ष  जलाते  हैं  ताकि  उसकी  बुराई  का  अंत  हो  जाये   लेकिन  उसके  साथ  पटाखे  आदि  का  जहरीला  धुंआ  लोगों  के  मन  और  विचारों  में  घुल  जाता  है   और  रावण   के  दुर्गुण  लोग  बड़ी    सरलता  से   अपना  लेते  हैं  l  रावण  के  पास  सब  कुछ  था , धन -वैभव , सुन्दर  पत्नियाँ   लेकिन  फिर  भी  असंतुष्ट l   कहते  हैं  पार्वती  जी  की  जिद्द  पर  शिवजी  ने  उनके  लिए  सोने  का  महल  बनवाया  था  , रावण  ने  उसे  ही  वरदान  में  मांग  लिया  l  दूसरों  के  सुख  को  छीनने  की  आदत  बन  जाती  है  l  भगवान  राम -सीता  के   वन  के  कष्टों  के  बीच  भी  सुन्दर प्रेमपूर्ण  जीवन  को  वह  देख  न  सका , सीता -हरण  किया  l  रावण  अभी  मरा  नहीं  है  , वह  लोगों  के  विचारों  में  समा  गया  है  l  रावण  जैसी  ओछी  सोच  के  कारण  ही  कितने  परिवारों  में  तनाव है , परिवार  टूट  रहे  हैं  l  लोग  अपने  सुख  से  सुखी  नहीं  है ,  दूसरों  के  सुख  से  दुःखी  है   l   दूसरों  का  सुख  छीनने  में  कोई  कोर -कसर    बाकी  नहीं  रखते  l   यदि  आरम्भ  से  ही   बच्चों  को  नैतिक  और  मर्यादापूर्ण  जीवन  जीने  की  शिक्षा  दी  जाये  ,  कर्मफल  विधान  को  समझाया  जाये   तो  वह  कभी  अपने  पथ  से  भटकेगा  नहीं   और  तभी  स्वस्थ  समाज  की  कल्पना  संभव  होगी  l  

10 September 2023

WISDOM -----

  कलियुग  की  सबसे  बड़ी  समस्या  यह  है  कि   कैसे  पहचाना  जाए  कि  कौन  देवता  है  और  कौन  असुर  है  ?  क्योंकि  असुरता  आज  वेश  बदलकर  ,  शराफत  का   नकाब   पहन  कर   समाज  में  घुलमिल  गई  है  l  आज  स्थिति  इतनी  विकट  है  कि  पारिवारिक  रिश्तों  में  ही   हम  सारा  जीवन  बीत  जाने  पर  भी  नहीं  समझ  पाते  कि  व्यक्ति  का  सच  क्या  है  ?  जो  जैसा  हमें  दीखता  है   वह  वैसा  ही  है   या  परदे  के  पीछे  कुछ  और  है  l  परिवार  में  होने  वाली  हिंसा , उत्पीड़न , भाई -भाई  के  बीच  होने  वाले  संपत्ति  आदि  के  विवाद ,  अपने  स्वार्थ  के  लिए  अपने  ही  परिवार  के  सदस्य  का  शोषण , जो  कमजोर  है  उसे  सताना , चैन  से  जीने  न  देना  यह  सब  असुरता  ही  है  l  इसी  का  विस्तृत  रूप  समाज ,  विभिन्न  संस्थाओं ,  राष्ट्र   और  संसार  में  देखने  को  मिलता  है  l  संक्षेप  में  जहाँ  स्वार्थ , लालच , झूठ , बेईमानी , छल , कपट , षड्यंत्र  , दूसरों  का  हक  छीनना , नकारात्मक  शक्तियों   का  प्रयोग  कर  पीठ  पीछे  वार  करना  -----यह  सब  असुरता  के  लक्षण  हैं  l  जिसमें  यह  दुर्गुण  जितने  अधिक  हैं   वह  उतना  ही  बड़ा  असुर  है  , वह  अपने  ज्ञान  , अपनी  शक्ति  का  दुरूपयोग  कर  के  सम्पूर्ण  प्रकृति  को  प्रदूषित  करता   है  ,  नाराज  करता  है  l   असुरता  अपना  साम्राज्य  चाहती  है  , सबको  अपना  गुलाम  बनाना  चाहती  है  l  उसका  देवत्व  पर  आक्रमण  करने  का  अपना  एक  पैटर्न  है  l  देवत्व  को  मिटाने  के  लिए  सबसे  पहले  धन   का  लालच  दिया  जाता  है ,  फिर  वासना  का  जाल  बिछाया  जाता  है ,  मोह  जाल  में  फंसाने  के  लिए  उसके  रिश्तों  में  फूट  डालने  का  भरपूर  प्रयास  किया  जाता  है  l  छल , कपट  षड्यंत्र ,  तंत्र -मन्त्र , विभिन्न  नकारात्मक  शक्तियों  का  प्रयोग  कर   देवत्व  को  मिटाने  का  प्रयास  किया  जाता  है  l  असुरता  बड़ी  मजबूती  से  संगठित  है  इसलिए  यह  सब  कार्य  बड़े  संगठित  रूप  से  ही  किया  जाता  है  l    इस  जंग  में  विजयी  वही   होता  है    जिसमें  विवेक  होता  है ,  जो  सत्कर्म  कर  के  , सन्मार्ग  पर  चलकर  ईश्वर  की  कृपा  प्राप्त  कर  लेता  है   l      कामना , वासना , लोभ , लालच  और  मोह  के  जाल   से  बच  कर  निकलने  की  समझ   और  विवेक   केवल  ईश्वरीय  कृपा  से  ही  प्राप्त   होता  है  l  विज्ञान  के  पास  ऐसा  कोई  यंत्र  नहीं  है  जो  व्यक्ति   की  बुद्धि  में  विवेक  और  सही  निर्णय  लेने  की  समझ  पैदा  कर  सके  l  गीता  में  भगवान  ने  कहा  है   कि  निष्काम  कर्म  से   ही  मन  का   मैल    साफ़  होता  है  और  विवेक  जाग्रत  होता  है   l  

9 September 2023

WISDOM ----

 पुराण  में  अनेक  कथाएं  हैं  जो   यह  बताती  हैं  कि  असुरों  ने  कठोर  तपस्या  की  और  भगवान  से  वरदान  प्राप्त  कर  शक्तिशाली  हो  गए  और  स्वयं  को  ही  भगवान  समझने  लगे  l  हिरण्यकश्यप , भस्मासुर   ऐसे  ही  असुर  थे   l  ये  असुर  अभी  मरे  नहीं  है  , विभिन्न  रूपों  में  आज  भी  जिन्दा  हैं  l  परिवार  हो  ,  समाज  हो  , संस्थाएं  हों ,  हर  स्तर   पर   ऐसे  असुर  हैं   जो    किसी  भी  तरीके  से  शक्तिशाली  बन  गए  हैं   और  अपने  ही  लोगों  पर  अत्याचार  करने  से  नहीं   चूकते  हैं  l  असुर  जिस  भी  क्षेत्र    पर  कब्ज़ा  कर  लेते  हैं  , उसी  क्षेत्र  में  नकारात्मकता  बढ़   जाती  है   l  देखने  में  तो  लगता  है  कि  तरक्की  हो  रही  है   लेकिन  मानवीय  मूल्यों   का  पतन  हो  रहा  है  l  कला , साहित्य , शिक्षा , चिकित्सा  , कृषि ---- आदि  सभी  क्षेत्रों  में  मनुष्य  को  शारीरिक  और  मानसिक  द्रष्टि  से  स्वस्थ  बनाने  का  प्रयास  नहीं  है ,  इसलिए   असुरता  और  तेजी  से  बढ़ती  जा  रही  है  l   ज्ञानी  व्यक्ति  जब  अहंकारी  हो  जाता  है  तो  वह  अपनी  शक्तियों  का  दुरूपयोग  करने  लगता  है   और  ऐसा  व्यक्ति  जिस  भी  क्षेत्र  में  है  वह  उसे  पतन  के  मार्ग  पर  ले  जाता  है  ,   समाज  का  अहित  करता  है  l  

7 September 2023

WISDOM

   ईश्वर  इस  धरती  पर  जन्म  लेते  हैं  , केवल  इसलिए  नहीं  कि  हम  उनका  जन्म दिन  मनाएं  !  जीवन  में  उमंग  के  लिए  यह  सब  भी  जरुरी  है   लेकिन  इससे  भी  अधिक  जरुरी  है   वे  सब  शिक्षाएं  जो   ईश्वर  मानव  रूप  में  जन्म  लेकर  अपने  आचरण  से  हमें  देते  हैं , हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाते  हैं   ताकि  हम  तनाव मुक्त  होकर  सुख -शांति  से  जीवन  जी  सकें  l  भगवान  श्रीकृष्ण  को  जन्म  से  ही  अनेक  चुनौतियों  का  सामना  करना  पड़ा , वे  समस्याओं  से  कभी  भागे  नहीं  , मुस्करा  कर  सबका  सामना  किया   और  एक  साधारण  ग्वाल -बाल  के  रूप  में  अपना  जीवन  का  सफ़र  शुरू  कर   द्वारकाधीश  बन  गए , जगद्गुरु  कहलाये   l  उन्हें  अपने  सर्वशक्तिमान  होने  का  अहंकार  नहीं  था  l  महाभारत  के  महायुद्ध  में  अर्जुन  के  सारथी  बनकर  उन्होंने  संसार  को  महत्वपूर्ण  शिक्षा  दी   कि   केवल  अपनी  शक्ति  का  अहंकार  मत  करो  , यदि  जिन्दगी  की  जंग  को  जीतना  है  तो  भगवान  को  अपना  सारथी  बनाओ ,  ईश्वर विश्वासी  बनो  l  अर्जुन  की  तरह  अपना  कर्तव्यपालन  करते  हुए   स्वयं  को  ईश्वर  के  प्रति  समर्पित  करो  l  क्योंकि  ' नर -नारायण  का  जोड़ा  ही  जीतता  है  l  अर्जुन  ने  भगवान  को   अपना  सारथी  बनाया  , अपने  जीवन  की  डोर  उनके  हाथ  में  सौंप  दी   इसलिए  विजयी  हुआ  लेकिन  कर्ण  महादानी , महावीर  होते  हुए  भी  हार  गया   क्योंकि  उसके  पास  केवल  उसकी  ही  ताकत  थी  , ईश्वर विश्वास   का  बल  उसके  पास  नहीं  था   और  उसने  अनीति  और  अधर्म  पर  चलने  वाले  दुर्योधन  का  साथ  दिया   इसलिए  उसकी  पराजय  निश्चित  थी  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  यह  भी  सिखाया  कि  कर्तव्यपालन  के  साथ  नैतिकता   और  सकारात्मक  उद्देश्य  अनिवार्य  है  l  अपने  सगे -संबंधियों  को  देखकर  जब  अर्जुन  युद्ध  से  मुँह  मोड़  रहा  था   तब  भगवान  ने  उसे  ,  सारे  संसार  को  गीता  का  उपदेश  दिया   कि  यद्दपि  दूसरे  पक्ष  में   तुम्हारे  पितामह , गुरु  द्रोणाचार्य  आदि  हैं   लेकिन  वे  अनीति  और  अधर्म  के  साथ  हैं   l  यदि  अनीति  और  अत्याचार   को  हम  नहीं  मिटाएंगे  तो  वे  हमें  मिटा  डालेंगे  l  इसलिए  इस  धरती  को   अनीति  और  अत्याचार  से  मुक्त  करने  के  लिए   अपना  गांडीव  उठाओ  और  युद्ध  करो  l  

WISDOM ------

    बादशाह  को  एक  कर्मचारी  नौकर  की  आवश्यकता  थी  l  तीन  उम्मीदवार  सामने  पेश  किए  गए  l  बादशाह  ने  पूछा  ---- " यदि  मेरी  और  तुम्हारी  दाढ़ी  में   एक  साथ  आग  लग  जाये   तो  पहले  किसकी  बुझाओगे   ? "  एक  ने  कहा ---- " पहले  आपकी  बुझाऊंगा  l "  दूसरे  ने   कहा ---- " पहले  अपनी  बुझाऊंगा  l "  तीसरे  ने  कहा ---- "  एक   हाथ  से  अपनी  और  दूसरे  हाथ  से  आपकी  बुझाऊंगा  l "  बादशाह  ने  तीसरे  आदमी  की  नियुक्ति  कर  ली   और  दरबारियों  से  कहा ---- "  जो  अपनी  उपेक्षा  कर  के  दूसरों  का  भला  करता  है  , वह  अव्यवहारिक  है  l  जो  स्वार्थ  को  ही  सर्वोपरि  समझता  है  ,  वह  नीच  है    लेकिन   जो  अपनी  और  दूसरों   की  भलाई  का  समान  रूप  से  ध्यान  रखता  है  ,  उसे  ही  सज्जन  कहना  चाहिए  l  मुझे  सज्जन  की  आवश्यकता  थी  l  "   उस  तीसरे  आदमी  की  नियुक्ति  कर  ली  गई  l  

WISDOM -----

 1 . मगध  के  एक  व्यापारी  ने  बहुत  धन  कमाया  l  उसे  अपनी  सम्पन्नता  पर  इतना  गर्व  हुआ  कि   वह  अपने  घर  के  लोगों  पर  ऐंठा  करता  l  परिणाम  यह  हुआ  कि  उसके  लड़के  भी  उद्दंड  और  अहंकारी  हो  गए  l  पिता -पुत्र  में  ठनने  लगी  और  घर  नरक  बन  गया  l   व्यापारी  बहुर  परेशान  हुआ  और  उसने  महात्मा  बुद्ध  की  शरण  ली  और  कहा  --- " भगवन  !  मुझे  इस  नरक  से  मुक्ति  दिलाइये  , मैं  भिक्षु  होना  चाहता  हूँ  l "  तथागत  ने  कुछ   सोचकर  उत्तर  दिया --- " भिक्षु  बनने  का  अभी  समय  नहीं  है  l  तात  !  तुम   जैसा  संसार  चाहते  हो   वैसा  आचरण  करो  ,  तो  घर  में  ही  स्वर्ग  के  दर्शन  कर  सकोगे  l  जब  तक  मन  अशांत  है , तुम्हे  उपवन  में  भी  शांति  नहीं  मिलेगी  l  यह  नरक  तुम्हारा  अपना  ही  पैदा  किया  हुआ  है  l " व्यापारी  घर  लौट  आया  l  उसने  जैसे  ही  अपना  द्रष्टिकोण , व्यवहार ,  आचरण  बदला  ,  सबके  ह्रदय  बदले  और  उसे  घर  में  ही  स्वर्ग  के  दर्शन  होने  लगे  l  प्रगति -दुर्गति ,  स्वर्ग -नरक  मनुष्य  स्वयं  ही  रचता  है  l 

4 September 2023

WISDOM -----

 इस  संसार  में   शुरू  से  ही  देवता  और   असुरों  में ,  अँधेरे  और  उजाले  में  संघर्ष  रहा  है   l   अंधकार  को  सबसे  ज्यादा  भय   उजाले  से  लगता  है  l प्रकाश  आते  ही  अंधकार  का  अस्तित्व  ही  समाप्त  हो  जाता  है  l  यह  लड़ाई  ही  अस्तित्व  की  है  l   असुरता  ही  अंधकार  है  l  आसुरी  प्रवृति  के  लोगों  में   स्वार्थ , अहंकार , लालच , महत्वाकांक्षा  , छल , कपट , , धोखा , षड्यंत्र ,  छिपकर  वार   करना ------जैसी  बुराइयाँ  एक  सीमा  से  भी  ज्यादा  होती  हैं   इसलिए  ये  अपने  अस्तित्व  की  रक्षा  के  लिए  किसी  भी  हद  तक  जा  सकते  हैं  l  हिरण्यकश्यप   ने  अपने  पुत्र  प्रह्लाद   को  सताने  में  कोई  कसर  नहीं  छोड़ी  l  दुर्योधन  , दुशासन  ने  अपनी  ही  कुलवधु    द्रोपदी  को  भरी  सभा  में  अपमानित  किया   l  ऐसे  असंख्य  उदाहरण  हैं   जो  इस  बात  को  स्पष्ट  करते  हैं  कि   जब  भी  कोई  सफलता  के  मार्ग  पर ,   सच्चाई   के  रास्ते  पर  आगे  बढ़ता  है  तो   नकारात्मक  शक्तियां   उसके  लक्ष्य  तक  पहुँचने  के  मार्ग  पर   अनेकों  बाधाएं  उपस्थित  करती  हैं  ,  उनका  एकमात्र  उदेश्य  होता  है   कि  ऐसे  व्यक्ति  को  मानसिक  रूप  से  इतना  उत्पीड़ित  कर  दो  कि  वह   जंग  हार  जाये  l   लेकिन  उगते  हुए  सूरज  को  कोई  रोक  नहीं  सका  है  l  यदि  लक्ष्य  श्रेष्ठ  हो , ऊँचा  हो   और  संकल्प  दृढ  हो   तो  सारी  कायनात  मदद   करती  है  l  हमें  ईश्वर  की  सत्ता  पर  विश्वास  होना  चाहिए   l  आत्मविश्वास  ही  ईश्वर  विश्वास  है  l  विद्वानों  का  कहना  है ----- 'अपने  मन  को  मत  गिरने  दो ,  लोग  गिरे  हुए  मकान  की  ईंटे  उठाकर  ले  जाते  हैं  लेकिन  खड़ी  इमारत  को  कोई  हाथ  भी  नहीं  लगाता  l  '    

WISDOM -----

  1 .-- एक  गाँव  में  आग  लग  गई  l  सभी  तो  सुरक्षित  भाग  निकले  ,  पर  दो  व्यक्ति  ऐसे  थे   जो  भाग  नहीं  सकते  थे  --- एक  अँधा  था  , एक  पंगा  l दोनों  ने  एकता  स्थापित  की  ,  अंधे  ने  पंगे  को  कंधे  पर  बैठा  लिया   l  पंगा  रास्ता  बताने  लगा   और  अँधा  तेज  दौड़ने  लगा   l  दोनों  सकुशल  बाहर  आ  गए   l  सहयोग  का  अर्थ  ही  है ----   अनेक  तरह  की  सामर्थ्यों  से   परिपूर्ण  शक्ति  का  उद्भव  l  


WISDOM -----

 द्वितीय  विश्व युद्ध  चल  रहा  था  l  महर्षि  अरविन्द  को  एहसास  हुआ  कि   आश्रम  के  कुछ  अंतेवासी  मन -ही -मन  हिटलर  की  विजय  की  दुआ  करने  लगे  हैं  l  आपस  की  चर्चाओं  में  भी  कभी -कभी   यह  बात  आ  ही  जाती  थी  l  श्री  अरविन्द  ने  तत्कालीन  कार्यकर्ताओं  की   शाम  की  एक  बैठक  में  कहा  कि  ---- " जो  लोग  ऐसा कर  रहे  हैं  , वे  असुरता  की  विजय  चाहते  हैं  l  भारतीय  मूल्य  हमें  ऐसा  नहीं  करने  देंगे  l  ऐसे  व्यक्ति  जो  हिटलर  की  विजय  की  इच्छा  रखते  हैं  ,  आश्रम  से  चले  जाएँ  l  प्रश्न  मूल्यों  का  है  l  हम  परमात्मा  की , आदर्शों  की  विजय  चाहते  हैं  l  "   आचार्य श्री  कहते  हैं  ---- यह  प्रसंग  हम  सबके  लिए  एक  सन्देश  है  l  हमें  मूल्य  आधारित  जीवन  जीना  है  l  श्रीकृष्ण  ने  अर्जुन  से  यही  कहा  था  कि  तू  मोहग्रस्त  होकर  भीष्म  और  द्रोणाचार्य  को  देख  तो  रहा  है  ,  उन्हें  न  मारने  की  दलीलें  भी  दे  रहा  है  ,  पर  तुझे  यह  नहीं  दिखाई  देता  कि  वे   दुर्योधन  के --अनीति  के  संरक्षक  भी  हैं  l   आज  जब  सारा  संसार  एक  मंच  पर  है  और  कुछ  लोगों  के   स्वार्थ ,  अहंकार  और  महत्वाकांक्षा   के  दुष्परिणाम  झेल  रहा  है   , ऐसे  में  श्री  अरविन्द  का  यह  प्रसंग  और  भगवान  श्रीकृष्ण  का  गीता  में  यह  संदेश  संसार  को  जागरूक  करने  के  लिए   है  l  

1 September 2023

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " मानवीय  संबंधों  का  आधार  भावनाएं  हैं l भावनात्मक  तृप्ति  मानव  जीवन  की  सबसे  बड़ी  आवश्यकता  है  l  लेकिन   आज  का  सबसे  बड़ा  दुर्भिक्ष  भावनाओं  के  क्षेत्र  का  है  l  सब  कुछ  पाकर  भी  मनुष्य  अतृप्त  ही  बना  रहता  है  l  इसी  के  कारण  जीवन  के  प्रत्येक  स्तर  पर  समस्याएं  उत्पन्न  हुई  हैं  l  रिश्तों  में  अपनापन  होने  का  मतलब  है  --- भावनाओं  के  तल  पर  जीना  , जिसमें  गहरी  तृप्ति  और  शांति  मिलती  है  l  लेकिन  आज  के  युग  में  भावनाओं  का  अकाल  है  इस  कारण  जीवन  में  तनाव  और  आंतरिक  खालीपन  है  l "  एक  प्रसंग  है ---- दो  संन्यासी  एक  आलीशान  कोठी  के  पास  से   गुजर  रहे  थे  कि  उन्हें  बहुत  जोर -जोर  से  पति -पत्नी  के  झगड़ने  की  आवाज  सुनाई  दी  l  उस  ओर   ध्यान  दिया  तो  देखा  कि  वे  दोनों  पास -पास  ही  खड़े  हैं  लेकिन   बहुत  ही  ऊँची  आवाज  में  , चीख -चिल्लाकर   विवाद  कर  रहे  हैं  l  आवाज  कोठी  के  बाहर  तक  आ  रही  है  l  नौकर -चाकर  आदि  लोगों  के  लिए  यह  सामान्य  , आए  दिन  की  बात  थी  l  l  एक  संन्यासी  ने  अपने  से  बुजुर्ग  संन्यासी  से  पूछा --- "  ये  दोनों  इतने  पास -पास  हैं  फिर  इतनी  ऊँची  आवाज  में  क्यों  बात  कर  रहे  हैं  ? "  बुजुर्ग  संन्यासी  बोले ---- " भावनात्मक  अलगाव  , एक  साथ  रहने  वालों  के  बीच  भारी  अंतर  व  दूरी  बना  देता  है  , सबके  बीच  एक  दीवार  खड़ी  कर  देता  है  l  पास  होकर  भी  जब  भावनाएं  जुड़ती -मिलती  नहीं  हैं   तो  दूरी  का  एहसास  होता  है   और  इस  दूरी  के  कारण  ये  दोनों  इतनी  जोर -जोर  से  बोल  रहे  हैं  l "  संन्यासी  ने   अपनी  बात  आगे  बढ़ाते  हुए  कहा --- " यदि  एक =दूसरे  की  भावनाओं  की  समझ  पैदा  हो  जाए  ,  भाव  गहरे  हों   तो  फुसफुसाहट  भी   अच्छे  से  समझ  में  आ  जाती  है   और  भाव  न  हों  तो   ऊँची  आवाज  भी  सुनाई  नहीं  देती  है  l "    आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- "  मनोरोग  और  कुछ  नहीं , मनुष्य  की  दबी , कुचली , रौंदी  गई  भावनाएं  ही  हैं  l सकारात्मक  भावनाओं  की  प्राप्ति  से  ही   इन  रोगों  का  निराकरण  हो  सकता  है  l  जीवन  की  आंतरिक   नीरसता  और  खोखलेपन  को  दूर  करना  है   तो  परमार्थ  को , निष्काम  कर्म  को   अपनी  दिनचर्या  में  सम्मिलित  करना  होगा  , इससे  ही  हमारे  अंदर  के  विकार  दूर  होंगे   जो  संबंधों  में  कडुआहट  पैदा  करते  हैं  ,  जीवन  का  खालीपन  दूर  होगा   और  जीवन  में  आंतरिक  ख़ुशी  व  संतुष्टि  महसूस  होगी  l  "