7 September 2023

WISDOM

   ईश्वर  इस  धरती  पर  जन्म  लेते  हैं  , केवल  इसलिए  नहीं  कि  हम  उनका  जन्म दिन  मनाएं  !  जीवन  में  उमंग  के  लिए  यह  सब  भी  जरुरी  है   लेकिन  इससे  भी  अधिक  जरुरी  है   वे  सब  शिक्षाएं  जो   ईश्वर  मानव  रूप  में  जन्म  लेकर  अपने  आचरण  से  हमें  देते  हैं , हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाते  हैं   ताकि  हम  तनाव मुक्त  होकर  सुख -शांति  से  जीवन  जी  सकें  l  भगवान  श्रीकृष्ण  को  जन्म  से  ही  अनेक  चुनौतियों  का  सामना  करना  पड़ा , वे  समस्याओं  से  कभी  भागे  नहीं  , मुस्करा  कर  सबका  सामना  किया   और  एक  साधारण  ग्वाल -बाल  के  रूप  में  अपना  जीवन  का  सफ़र  शुरू  कर   द्वारकाधीश  बन  गए , जगद्गुरु  कहलाये   l  उन्हें  अपने  सर्वशक्तिमान  होने  का  अहंकार  नहीं  था  l  महाभारत  के  महायुद्ध  में  अर्जुन  के  सारथी  बनकर  उन्होंने  संसार  को  महत्वपूर्ण  शिक्षा  दी   कि   केवल  अपनी  शक्ति  का  अहंकार  मत  करो  , यदि  जिन्दगी  की  जंग  को  जीतना  है  तो  भगवान  को  अपना  सारथी  बनाओ ,  ईश्वर विश्वासी  बनो  l  अर्जुन  की  तरह  अपना  कर्तव्यपालन  करते  हुए   स्वयं  को  ईश्वर  के  प्रति  समर्पित  करो  l  क्योंकि  ' नर -नारायण  का  जोड़ा  ही  जीतता  है  l  अर्जुन  ने  भगवान  को   अपना  सारथी  बनाया  , अपने  जीवन  की  डोर  उनके  हाथ  में  सौंप  दी   इसलिए  विजयी  हुआ  लेकिन  कर्ण  महादानी , महावीर  होते  हुए  भी  हार  गया   क्योंकि  उसके  पास  केवल  उसकी  ही  ताकत  थी  , ईश्वर विश्वास   का  बल  उसके  पास  नहीं  था   और  उसने  अनीति  और  अधर्म  पर  चलने  वाले  दुर्योधन  का  साथ  दिया   इसलिए  उसकी  पराजय  निश्चित  थी  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  यह  भी  सिखाया  कि  कर्तव्यपालन  के  साथ  नैतिकता   और  सकारात्मक  उद्देश्य  अनिवार्य  है  l  अपने  सगे -संबंधियों  को  देखकर  जब  अर्जुन  युद्ध  से  मुँह  मोड़  रहा  था   तब  भगवान  ने  उसे  ,  सारे  संसार  को  गीता  का  उपदेश  दिया   कि  यद्दपि  दूसरे  पक्ष  में   तुम्हारे  पितामह , गुरु  द्रोणाचार्य  आदि  हैं   लेकिन  वे  अनीति  और  अधर्म  के  साथ  हैं   l  यदि  अनीति  और  अत्याचार   को  हम  नहीं  मिटाएंगे  तो  वे  हमें  मिटा  डालेंगे  l  इसलिए  इस  धरती  को   अनीति  और  अत्याचार  से  मुक्त  करने  के  लिए   अपना  गांडीव  उठाओ  और  युद्ध  करो  l  

WISDOM ------

    बादशाह  को  एक  कर्मचारी  नौकर  की  आवश्यकता  थी  l  तीन  उम्मीदवार  सामने  पेश  किए  गए  l  बादशाह  ने  पूछा  ---- " यदि  मेरी  और  तुम्हारी  दाढ़ी  में   एक  साथ  आग  लग  जाये   तो  पहले  किसकी  बुझाओगे   ? "  एक  ने  कहा ---- " पहले  आपकी  बुझाऊंगा  l "  दूसरे  ने   कहा ---- " पहले  अपनी  बुझाऊंगा  l "  तीसरे  ने  कहा ---- "  एक   हाथ  से  अपनी  और  दूसरे  हाथ  से  आपकी  बुझाऊंगा  l "  बादशाह  ने  तीसरे  आदमी  की  नियुक्ति  कर  ली   और  दरबारियों  से  कहा ---- "  जो  अपनी  उपेक्षा  कर  के  दूसरों  का  भला  करता  है  , वह  अव्यवहारिक  है  l  जो  स्वार्थ  को  ही  सर्वोपरि  समझता  है  ,  वह  नीच  है    लेकिन   जो  अपनी  और  दूसरों   की  भलाई  का  समान  रूप  से  ध्यान  रखता  है  ,  उसे  ही  सज्जन  कहना  चाहिए  l  मुझे  सज्जन  की  आवश्यकता  थी  l  "   उस  तीसरे  आदमी  की  नियुक्ति  कर  ली  गई  l  

WISDOM -----

 1 . मगध  के  एक  व्यापारी  ने  बहुत  धन  कमाया  l  उसे  अपनी  सम्पन्नता  पर  इतना  गर्व  हुआ  कि   वह  अपने  घर  के  लोगों  पर  ऐंठा  करता  l  परिणाम  यह  हुआ  कि  उसके  लड़के  भी  उद्दंड  और  अहंकारी  हो  गए  l  पिता -पुत्र  में  ठनने  लगी  और  घर  नरक  बन  गया  l   व्यापारी  बहुर  परेशान  हुआ  और  उसने  महात्मा  बुद्ध  की  शरण  ली  और  कहा  --- " भगवन  !  मुझे  इस  नरक  से  मुक्ति  दिलाइये  , मैं  भिक्षु  होना  चाहता  हूँ  l "  तथागत  ने  कुछ   सोचकर  उत्तर  दिया --- " भिक्षु  बनने  का  अभी  समय  नहीं  है  l  तात  !  तुम   जैसा  संसार  चाहते  हो   वैसा  आचरण  करो  ,  तो  घर  में  ही  स्वर्ग  के  दर्शन  कर  सकोगे  l  जब  तक  मन  अशांत  है , तुम्हे  उपवन  में  भी  शांति  नहीं  मिलेगी  l  यह  नरक  तुम्हारा  अपना  ही  पैदा  किया  हुआ  है  l " व्यापारी  घर  लौट  आया  l  उसने  जैसे  ही  अपना  द्रष्टिकोण , व्यवहार ,  आचरण  बदला  ,  सबके  ह्रदय  बदले  और  उसे  घर  में  ही  स्वर्ग  के  दर्शन  होने  लगे  l  प्रगति -दुर्गति ,  स्वर्ग -नरक  मनुष्य  स्वयं  ही  रचता  है  l