अमावस्या की रात में दीपक ने देखा कि आकाश में न चाँद है और न तारे l बस , वह अकेला ही संसार को प्रकाश दे रहा है l अपने इस पराक्रम पर उसको अभिमान हो गया और वह समस्त संसार को संबोधित करते हुए बोला --- " मेरी महिमा तो देखो ! मेरी ही कृपा से तुम सब तुच्छ प्राणी अंधकार में कुछ देख पा रहे हो l मुझे प्रणाम करो , मेरी दयालुता का गुणगान करो l " दीपक के इन अहंकार युक्त वचनों को किसी ने महत्त्व न दिया , परन्तु एक जुगनू से न रहा गया और वह बोला ---- " एक रात के अस्तित्व पर इतना अहंकार l तनिक ठहरो , प्रभात होने पर तुम्हारी वास्तविकता पूछूँगा l " अधिकार पाकर किसी को मदांध नहीं हो जाना चाहिए l