10 October 2022

WISDOM -----

    ऋषियों  का  कहना  है ---- ' चींटी  का  संगृहीत  अन्न ,  मक्खी  का  संचित  शहद  और  कृपण  का  संचित  धन   उनको  छोड़  सबके  काम  आता  है  l  अत: धन  का  सदुपयोग   उसके  सार्थक  कार्यों  में  निवेश  से  है  , निरर्थक  संग्रह  से  नहीं  l ' ------ एक  अमीर  सेठ  अपनी  तिजोरी  में  सोने  की  ईंट  रखता  था   और  प्रतिदिन  उसे  खोलकर  देखता  फिर   तिजोरी  बंद  कर  देता  l   बहुत  खुश  होता  कि  उसके  पास  अपार  संपत्ति  है  l   पुत्र  ने  उसे  ऐसा  करते  देख  लिया  , वह  अपने  पिता  की  कंजूसी  से  बड़ा  परेशान  था  l  तो  उस  पुत्र  ने  तिजोरी  की  चाबी  निकाल  कर  एक -एक   सोने  की  ईंट  खिसकाना  आरम्भ  किया   और  उसके  स्थान  पर  पीतल  की  ईंट  रखता  रहा  l   इस  तरह  नाटक  करते  सारा  जीवन  बीत  गया  l  अंत  समय  जब  सेठ  मरने  लगा   तो  लड़के  ने  कहा ---- " पिताजी , एक  रहस्य  की  बात  बताऊँ  ,  जो  आपसे  अब  तक  छुपा  रखी  थी  l  "  पिता  ने  कहा ---- " जरुर  बताओ  बेटा  l  " पुत्र  ने  कहा --- " पिताजी , जिन  ईंटों  को  देखकर  आप  इतना  खुश  होते  थे ,  वे  तो  पीतल  की  हैं  l  सोने  की  ईंट  तो  हमने  कब  की  बेच  डालीं  l  "  पिता  यह  सुनकर  रोने  लगा , उसको  बहुत  धक्का  लगा ,  आँखें  खुली  की  खुली  रह  गईं  , उसका  हार्ट फेल  हो  गया  l  

WISDOM ---

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----' देवता  यदि  कहीं  हैं , तो  हमारे  ही  अन्दर  सत्प्रवृत्तियों  के  रूप  में  हैं   l  और  असुर  हैं , तो  वे  भी  हमारे  अन्दर  पाशविक  प्रवृत्तियों  के  रूप  में  हैं  l  जो  विवेकशील  हैं,  वे  विलास  उपभोग  के  मायाजाल  में  न  पड़कर   पाशविक  प्रवृत्तियों  को  स्वयं  पर  हावी  नहीं  होने  देते  l '  देवराज  इंद्र  को  असुरों  से  अनेक  बार  परस्त  होना  पड़ा  l  भगवान  की  विशेष  सहायता  से  ही   बड़ी  कठिनाई  के  साथ  अपना  इन्द्रासन  लौटाने  में  सफल  हो  सके  l  एक  दिन  इस  बार -बार  की  पराजय  का  कारण  प्रजापति  से  पूछा  ,  तो  उन्होंने  कहा --- ऐश्वर्य  की  रक्षा  संयम  से  होती  है  l  जो  वैभव  पाकर  प्रमाद  में  फंस  जाते  हैं  , उन्हें    पराभव  का  मुँह  देखना  पड़ता  है  l   एक  कथा  है ------- दो  संत  तीर्थ  यात्रा  पर  जा  रहे  थे  l  एक  विशालकाय  वृक्ष  के  नीचे  उन्होंने  आश्रय  लिया   और  आगे   बढ़े  l  यात्रा  से  जब   अगले  वर्ष  वापस  लौटे   तो  उन्होंने  देखा  कि  जिस  सघन  वृक्ष  की  छाया  में   उन्होंने  भोजन  किया  था  , विश्राम  किया  था , वह  गिरा  पड़ा  है  l   पहले  संत  ने  अपने  वरिष्ठ  संत  से  पूछा  --- " महात्मन  !  यह  कैसे  हुआ  ?  इतनी  अल्प  अवधि  में  यह  वृक्ष  कैसे  गिर  गया  ? "  संत  बोले --- " तात  !  यह  वृक्ष  छिद्रों  के  कारण  गिरा  है  l  प्राण  था --- इसका  जीवन  रस ,  जो   गोंद  रूप  में  सतत  बहता  रहा  l  उसे  पाने  की  लालसा  में  मनुष्य  ने  उसमें  छेद  कर   उसे  खोखला  बना  दिया  l  खोखली  वस्तु  कभी  खड़ी  नहीं  रह  सकती  l  झंझावातों  को  सहन  न  कर  पाने   के  कारण  ही  इसकी  यह  गति  हुई  है  l  '