ईसामसीह की असाधारण सफलता एवं उनके अभिनव उत्कर्ष में उनके व्यक्तित्व में निहित गुण ही मुख्य थे | उनका सबसे पहला गुण था -- उनका आत्मविश्वास | ईसा में असीम विश्वास था, वे कोई भी कार्य करते समय उसके संपन्न होने के प्रति पूर्ण आश्वस्त रहते थे तथा पूरे विश्वास के साथ उसे पूर्ण करते थे | दूसरा विलक्षण गुण उनमे था--व्यक्तित्व को परखने की शक्ति | अपने प्रथम संपर्क में ही वे व्यक्ति की योग्यता व शक्ति का आभास कर लेते थे | उन्होंने अपने 12 प्रमुख शिष्य चुने थे | वे सब साधारण थे परंतु बाद में उनकी कर्मठता देखकर सब लोग आश्चर्यचकित हो गये | वे ईसा की सेवा में आकर स्वर्णवत हो गये |
ईसा मसीह ने इन 12 शिष्यों को तीन वर्षों तक अनवरत शिक्षण दिया | वे शिष्यगण उनसे सदैव यह पूछा करते थे कि इतना सब कर ईसा कौन सा राज्य स्थापित करने जा रहें हैं और उस राज्य में उन शिष्यों को क्या-क्या पद मिलने वाले हैं | अपने शिष्यों के ऐसे व्यवहार के बाद भी ईसा ने धैर्य नहीं छोड़ा, वे निरंतर अपने लक्ष्य की पूर्ति में लगे ही रहे फिर विश्व ने देखा कि अंतत: ईसा के विश्वास, धैर्य व साहस को सफलता मिली |
ईसा मसीह ने इन 12 शिष्यों को तीन वर्षों तक अनवरत शिक्षण दिया | वे शिष्यगण उनसे सदैव यह पूछा करते थे कि इतना सब कर ईसा कौन सा राज्य स्थापित करने जा रहें हैं और उस राज्य में उन शिष्यों को क्या-क्या पद मिलने वाले हैं | अपने शिष्यों के ऐसे व्यवहार के बाद भी ईसा ने धैर्य नहीं छोड़ा, वे निरंतर अपने लक्ष्य की पूर्ति में लगे ही रहे फिर विश्व ने देखा कि अंतत: ईसा के विश्वास, धैर्य व साहस को सफलता मिली |