9 October 2017

WISDOM ------ तृष्णा कभी शांत नहीं हो सकती , व्यक्ति इसके पीछे अपना अमूल्य जीवन गँवा देता है l

 आज  हर  कोई  धनवान  बनना  चाहता  है  l  जिसके  पास  जितना  है   वह  और  भी  अधिक  चाहता  है  और  इसके  लिए  दिन - रात  दुःखी   व  परेशान  रहता  है  l
    इस  संबंध  में  एक    प्राचीन   कथा  है -------  एक  साधारण  व्यापारी  था , जो  अपने  परिवार  के  साथ  सुखपूर्वक  रहता  था   किन्तु  वह  बहुत  अमीर  बनना  चाहता  था  , इस  कारण    अक्सर   चिंता  और  तनाव  में रहता  था  l  इसी  चिंता  में  वह   एक  बगीचे में    पेड़  के  नीचे  लेट  गया  ,  उसे  नींद  आ  गई  l    नींद  में   उसे  लगा  कि  कोई   उससे  कह  रहा  है ----- "जा  घर  लौट  जा  l  तेरे  घर  पर    अशरफियों  से  भरे  सात  घड़े  तेरा  इन्तजार  कर  रहे  हैं   l  "  उसकी  आँख  खुल  गई   और  वह  जल्दी - जल्दी  अपने  घर  की  ओर  चल  दिया   l  जब  उसने  घर  में  प्रवेश  किया  तो  देखकर  दंग  रह  गया  कि  सच  में  उसके  घर  सात  घड़े  रखे  थे   l  उसकी  ख़ुशी  का  ठिकाना  न  रहा  l  पत्नी  को  बुलाकर  सब  घड़े  खोल - खोलकर  देखने  लगा  l  छह  घड़े  सोने  की  अशरफियों  से  भरे  थे   और  सातवाँ  घड़ा  आधा  खाली  था  l
           अब  उसके  पास  इतना  धन  था  कि  सारा  जीवन  सुखपूर्वक  बिता  सकता  था  लेकिन  पति - पत्नी  यह  सोचकर  दुखी  थे  कि   इस  सातवें  घड़े  को  कैसे  भरा  जाये   ?  इस  चिंता  में  उन्होंने  हर  तरीके  से  धन  कमाना  शुरू  कर  दिया l  जो  कमाते  उससे  सोना  खरीद  कर  उस  घड़े  में  डालते  जाते  l  ऐसा  करते  हुए  कई  वर्ष  बीत  गए  ,  किन्तु  वह  घड़ा  तो  भरा  ही  नहीं  l   दोनों  इसी  दुःख  से  परेशान  कि  घड़ा  कैसे  भरें  l    एक  दिन  एक  साधु  उनके  घर  आया    और  उन  पति - पत्नी  को  चिंतित  देखकर  बोला --- " वह  सातवाँ  घड़ा  भरा  या  नहीं  ? "   वे  दोनों  आश्चर्य चकित ,  कि  साधु  कैसे  सब   जानता  है  l  साधु  बोला ----  बेटा !  यह  सातवाँ  घड़ा  तृष्णा  का  है ,  जो  कभी  पूरी  नहीं  होती  l  अधिक  तृष्णा  मन  को  व्याकुल  कर  देती  है   और  मनुष्य  उसी  तृष्णा  को   साथ  लिए  दुनिया  से  विदा  हो  जाता  है  l  l '  ऐसा  कहकर  वह  साधु  चला  गया  और  वह  सातों  घड़े  भी  साधु   जाते  ही  गायब  हो  गए   l   उन  दोनों  पति - पत्नी  को  बहुत  दुःख  हुआ    कि  जो  था  उसका  सदुपयोग  कर  लेते ,  अब    तो  पूरा  जीवन  ही  व्यर्थ  हो  गया  l
  '  धन  व्यक्ति  का  उद्धार  नहीं  कर  पाता,  मनुष्य  द्वारा  किये  गए  शुभ  कर्म  ही   उसकी  सहायता  करते  हैं  l '