जागरूकता और प्रखरता का अद्भुत समन्वय अंगद के चरित्र में देखने को मिलता है l रावण के मित्र बालि के पुत्र होने के नाते प्रभु ने उन्हें दूत बनाकर भेजा था l परस्पर उत्तेजक संवाद के बाद जब रावण अंगद के पैरों को भी हिला नहीं पाया , तो उसने एक कूटनीतिक चाल चली l
रावण ने कहा --- अंगद जिस राम ने तेरे पिता को मारा , तू उन्ही की सहायता कर रहा है l मेरे मित्र का पुत्र होकर भी तू मुझसे बैर कर रहा है l
अंगद हँसा और बोला --- रावण ! अन्यायी से लड़ना और उसे मारना ही सच्चा धर्म है , चाहे वह मेरे पिता हों या आप ही क्यों न हों l "
अंगद के तेजस्वी शब्द सुनकर रावण से उत्तर देते नहीं बना l
रावण ने कहा --- अंगद जिस राम ने तेरे पिता को मारा , तू उन्ही की सहायता कर रहा है l मेरे मित्र का पुत्र होकर भी तू मुझसे बैर कर रहा है l
अंगद हँसा और बोला --- रावण ! अन्यायी से लड़ना और उसे मारना ही सच्चा धर्म है , चाहे वह मेरे पिता हों या आप ही क्यों न हों l "
अंगद के तेजस्वी शब्द सुनकर रावण से उत्तर देते नहीं बना l