पृथ्वीराज चौहान ने प्रथम बार के आक्रमण में मुहम्मद गौरी को हराकर पकड़ लिया था लेकिन बाद में लोगों की चिकनी - चुपड़ी बातों में आकर मुहम्मद गौरी के क्षमा प्रार्थना करने पर उसे छोड़ दिया । परिणाम यह हुआ कि उसने फिर से अधिक तैयारी के साथ आक्रमण किया और विजय मिलने पर पृथ्वीराज को मरवा ही डाला ।
हमारे नीतिकारों ने भी यही कहा है ---- दुष्ट शत्रु पर दया दिखाना अपना और दूसरों का अहित करना है । आजकल के व्यवहार - शास्त्र का स्पष्ट नियम है कि , दूसरों को सताने वाले दुष्ट जन पर दया करना , सज्जनों को दण्ड देने के समान है क्योंकि दुष्ट तो अपनी स्वभावगत क्रूरता और नीचता को छोड़ नहीं सकता , वह जब तक स्वतंत्र रहेगा और उसमे शक्ति रहेगी , वह निर्दोष व्यक्तियों को सब तरह से दुःख और कष्ट देगा । '
वर्तमान युग के बहुत बड़े दार्शनिक बर्नार्ड शा ने एक लेख में स्पष्ट लिखा है कि, स्वभाव से ही दुष्ट और आततायी व्यक्तियों को समाज में रहने का अधिकार नहीं है । उनका अंत उसी प्रकार कर देना चाहिए जिस प्रकार हम सर्प , भेड़िया आदि अकारण आक्रमणकारी और घात में लगे रहने वाले जीवों का कर देते हैं ।
हमारे नीतिकारों ने भी यही कहा है ---- दुष्ट शत्रु पर दया दिखाना अपना और दूसरों का अहित करना है । आजकल के व्यवहार - शास्त्र का स्पष्ट नियम है कि , दूसरों को सताने वाले दुष्ट जन पर दया करना , सज्जनों को दण्ड देने के समान है क्योंकि दुष्ट तो अपनी स्वभावगत क्रूरता और नीचता को छोड़ नहीं सकता , वह जब तक स्वतंत्र रहेगा और उसमे शक्ति रहेगी , वह निर्दोष व्यक्तियों को सब तरह से दुःख और कष्ट देगा । '
वर्तमान युग के बहुत बड़े दार्शनिक बर्नार्ड शा ने एक लेख में स्पष्ट लिखा है कि, स्वभाव से ही दुष्ट और आततायी व्यक्तियों को समाज में रहने का अधिकार नहीं है । उनका अंत उसी प्रकार कर देना चाहिए जिस प्रकार हम सर्प , भेड़िया आदि अकारण आक्रमणकारी और घात में लगे रहने वाले जीवों का कर देते हैं ।