22 March 2022

WISDOM -------

     पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' समय  पुरस्कृत  करता  है  एवं  समय  ही  तिरस्कृत  करता  है   l   समय  का  पुरस्कार  उन्हें  मिलता  है  ,  जिनकी  सोच  सकारात्मक  है  ,  जिनके  श्रम  की  दिशा  निर्धारित  है  l   इसके  विपरीत  जिनकी  सोच  पर  निराशा  का  अँधेरा  छाया  हुआ  है  ,  जिनका  श्रम  दिशाविहीन  है  ,  वे  समय  के  हाथों  तिरस्कृत  होते  रहते  हैं   l  "   जिनकी  सोच  नकारात्मक  है  ,  दुर्भाग्यवश  जिन्हे  जीवन   में सही  मार्गदर्शन  नहीं  मिल  सका  ,  ऐसे  लोगों  की  स्थिति  वक्त  गुजरने  के  साथ  दयनीय  हो  जाती   है   क्योंकि  स्वार्थी  और  चालाक   लोग  ऐसे  ही  लोगों  की  तलाश  में  रहते  हैं    जिनकी  मदद  से  वे  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  कर  सकें  l    वे  लोग  उन्हें  तरह -तरह  के  लालच  देकर  अपना  काम   निकालते   हैं   और  स्वार्थ  पूरा  हो  जाने  के  बाद  दूध  की  मक्खी  की  तरह  निकाल  फेंकते  हैं  l    हमारा   देश युगों  तक  गुलाम  रहा   इसका  कारण  यही  है  कि   ऐसी  नकारात्मक  सोच   के लोगों  ने  अपने  स्वार्थ  और  लालचवश  विदेशियों  की  मदद  की  ,  इसी  का  परिणाम  हुआ  कि   संख्या  में  बहुत  थोड़े  विदेशी  एक  विशाल  देश  को  अपना  गुलाम  बना  पाए   l   गुलामी   भी दो  प्रकार  की  होती  है  ---प्रत्यक्ष  और  अप्रत्यक्ष  l   प्रत्यक्ष  गुलामी  में    हमें   पता    रहता  है  कि   हम  पर  किसका  शासन  है ,   उससे  जीतना   संभव  है    और  हम  आजाद  भी  हुए       लेकिन  अप्रत्यक्ष  गुलामी  बेहद  कष्टकारक  होती  है  ,   इसमें  यह  स्पष्ट  ही  नहीं  होता  कि   परदे  के  पीछे  कौन  है   l  आज  के  वैश्वीकरण  और   विज्ञान    से  विकसित  माइंड  ने  परिस्थिति  को  बहुत   जटिल बना  दिया  है   l    

WISDOM -------

     संसार  में  जो  कुछ  है ,  वह  सब  ईश्वर  की  देन   है  l   यदि  ईश्वर  पर  दृढ़   विश्वास  हो   तो   सत्य  समझ  में  आ  जाता  है  ----  श्री  रामकृष्ण  परमहंस  के  शिष्य   हरिप्रसन्न  चटर्जी  संन्यास  के  बाद  स्वामी  विज्ञानानंद   नाम  से  प्रसिद्ध   हुए  l   वे  इंजीनियर   थे  , विवाह  नहीं  किया  था   l  सदैव  प्रसन्न  रहते  थे  l  कहते ,  मैं  रामजी  का  बंदर   हूँ  l   ठाकुर  आये  तो  मैं  भी  आ  गया  l   रामकृष्ण  परमहंस  को  वे  राम  के  रूप  में  पूजते  थे   l   ठाकुर  के  जाने  के  बाद   वे  ' वाल्मीकि  रामायण '  का  अंग्रेजी  अनुवाद  करने  में    लग  गए   l  सतत   मन  लगाकर  घंटों  बैठे  रहते   l  लोग  पूछते  --- आप  इतनी  देर  कैसे  बैठ  लेते  हैं   l  '  वे  कहते  --- " यह   अनुवाद  नहीं  है  l   मैं  कथा  में  इतना  रम  जाता  हूँ   कि   मेरे  सामने  राम , सीता ,  हनुमान  सब  आ  जाते  हैं  l   मैं  अनुरक्त  हो  जाता  हूँ  l  "  उसी  भाव  प्रवाह  में  वे  लिखते  थे  ,  क्योंकि  उन्हें  साक्षात्  प्रभु  का  सान्निध्य  मिलता  था   l