11 August 2019

WISDOM ------

 खलील  जिब्रान  ने   अपने  ' निफ्स  ऑफ  वेली ' नामक  संग्रह  में  लिखा  है ---- " अपने  को  सभ्य  कहने  वाला  मनुष्य   आज  कितना  बनावटी  हो  चला  है   l  बात - बात  पर  अभिनय  करने  वाला  , समय - समय  पर   भिन्न - भिन्न  मुखौटे   ओढ़ने  की  विडम्बना  में   फंसा  हुआ  आज  का  मनुष्य   बोता  तो  बहुत  है   किन्तु  काटता  कुछ  नहीं  l  उसके  जीवन  का  सारा  रस  ही  इस  दोहरेपन  ने  चूस  लिया  है   l " 
    खलील  जिब्रान  ने  एक  छोटी  सी  कथा  लिखी  है  ----- उनका  एक  मित्र  अचानक  एक  दिन  पागलखाने  में  रहने  चला  गया  l  वह  जब  उससे  मिलने  गए   तो  उन्होंने  देखा  उनका  वह  मित्र  पागलखाने  के  बाग  में   एक  पेड़  के  नीचे   बैठा  मुस्करा  रहा  था  l  पूछने  पर  उसने  कहा  ---- " मैं  यहाँ  पर  बड़े  मजे  से  हूँ  l  मैं  बाहर  के  उस  बड़े  पागलखाने  को  छोड़कर  इस  छोटे  पागलखाने  में  शांति  से  हूँ  l  यहाँ  पर कोई  किसी  को परेशान  नहीं  करता  l  किसी  के  व्यक्तित्व  पर  कोई  मुखौटा  नहीं  है  l  जो  जैसा  है ,  वह  वैसा  है   l    न  कोई  आडम्बर  है  ,  न  कोई  ढोंग  l "