जैसे माता - पिता होंगे , वैसी ही उनकी संताने होंगी । इस सन्दर्भ में एक प्रसंग है ---- जब राम जी वनवास हेतु वन गये हुए थे तब राम ने लक्ष्मण जी के चरित्र की परीक्षा लेनी चाही । उन्होंने लक्ष्मण से प्रश्न किया ----- " हे लक्ष्मण ! सुन्दर पुष्प , पके हुए फल और मदमस्त यौवन देखकर ऐसा कौन है जिसका मन विचलित न हो जाये ? "
इस पर लक्ष्मण ने उत्तर दिया ---- " आर्य श्रेष्ठ ! जिसके पिता का आचरण सदैव से पवित्र रहा हो , जिसकी माता पतिव्रता रही हो , उनसे उत्पन्न बालकों के मन कभी चंचल नहीं हुआ करते | "
लक्ष्मण का यह उपदेश प्रत्येक माता - पिता के लिए है कि श्रेष्ठ संतान के लिए स्वयं का चरित्र श्रेष्ठ बनाना चाहिए ।
अपने बच्चे को संस्कारवान बनाने के लिए एक महिला ने संत ईसा से प्रश्न किया ---- " आप हमें बताइए कि बच्चे की शिक्षा - दीक्षा कबसे प्रारंभ की जानी चाहिए । " ईसा मसीह ने उत्तर दिया ----
" गर्भ में आने के 100 वर्ष पहले से । " ईसा मसीह ने इस बात को समझाया कि यद्दपि सौ वर्ष पूर्व बच्चे का अस्तित्व नहीं होता , लेकिन उसकी जड़ उसके बाबा या परबाबा के रूप में सुनिश्चित होती है | उसकी मन: स्थिति , उसके आचार , उसके संस्कार पिता के माध्यम से बच्चे के अन्दर आते हैं ।
इसी तरह माता - पिता के विचार , उनके रहन - सहन , आहार - विहार से भी बच्चे का निर्माण होता
है ।
सुसंस्कारित बच्चे पैदा होना और उनकी विकास यात्रा में योगदान देना माता - पिता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है ।
इस पर लक्ष्मण ने उत्तर दिया ---- " आर्य श्रेष्ठ ! जिसके पिता का आचरण सदैव से पवित्र रहा हो , जिसकी माता पतिव्रता रही हो , उनसे उत्पन्न बालकों के मन कभी चंचल नहीं हुआ करते | "
लक्ष्मण का यह उपदेश प्रत्येक माता - पिता के लिए है कि श्रेष्ठ संतान के लिए स्वयं का चरित्र श्रेष्ठ बनाना चाहिए ।
अपने बच्चे को संस्कारवान बनाने के लिए एक महिला ने संत ईसा से प्रश्न किया ---- " आप हमें बताइए कि बच्चे की शिक्षा - दीक्षा कबसे प्रारंभ की जानी चाहिए । " ईसा मसीह ने उत्तर दिया ----
" गर्भ में आने के 100 वर्ष पहले से । " ईसा मसीह ने इस बात को समझाया कि यद्दपि सौ वर्ष पूर्व बच्चे का अस्तित्व नहीं होता , लेकिन उसकी जड़ उसके बाबा या परबाबा के रूप में सुनिश्चित होती है | उसकी मन: स्थिति , उसके आचार , उसके संस्कार पिता के माध्यम से बच्चे के अन्दर आते हैं ।
इसी तरह माता - पिता के विचार , उनके रहन - सहन , आहार - विहार से भी बच्चे का निर्माण होता
है ।
सुसंस्कारित बच्चे पैदा होना और उनकी विकास यात्रा में योगदान देना माता - पिता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है ।