21 May 2013

'ज्ञान, वैभव और आनंद को बांटो ,वह अनेक गुना होकर वापस लौटेगा |

एक संत से किसी ने पूछा -"मेरा दिल बहुत कड़ा है ,इसमें मुलायमी लाने के लिये क्या करूँ ?"
संत ने हँसकर कहा -"दरदमंदो के सिर पर हाथ फिराया कर और अपनी रोटी बांटकर खाया कर | "

EGO

'भगवान की कृपा सब प्राणियों पर एक समान ही बरसती है ,परंतु उसका आनंद वे ही उठा पाते हें ,जो मन रुपी पात्र को तृष्णा और अहंकार से रिक्त कर देते हैं | '
         
         घटना सुविख्यात बौद्ध संत नान -इन के जीवन की है | सम्राट मेइजी ने राजकीय विश्वविद्दालय के कुलपति को नान -इन के पास आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित करने भेजा | कुलपति को अपने पद व किताबी शिक्षा का बड़ा अहंकार था और उनके व्यवहार से स्पष्ट था कि यदि राजा का आदेश न होता तो वे नान -इन के पास कदापि न आये होते | विचार विमर्श के दौरान नान -इन ने कुलपति सेपूछा कीक्या वे चाय लेना पसंद करेंगे ?कुलपति के हाँ कहने पर नान -इन ने एक भरे प्यालेमें चाय उड़ेलना शुरू कर दिया| यह देख कुलपति चकराये और बोले -"वह प्याला तो भरा हुआ है ,उसमे और कुछ डालने की जगह ही कहां है ?"
नान -इन ने उत्तर दिया -"मित्रतुम्हारा  मन भी तो ऐसी थोथी जानकारियों से भरा हुआ है ,उसमे परमात्मा के लिये स्थान कहां है | अहंकार को विदा कर दो तो तुम्हे मेरी सहायता की कोई आवश्यकता नहीं रह जायेगी | "अहंकार आत्मघाती शत्रु है |