14 October 2020

WISDOM ---- मृत्यु को आने - जाने के लिए द्वार आवश्यकता नहीं होती

      जीवन  जीने  की  इच्छा  कितनी  ही  प्रबल  क्यों  न  हो  ,  मृत्यु  से  बचा  नहीं  जा  सकता  l   सत्य  यही  है  कि  जिसने  जन्म  लिया  है  ,  उसका  मरण  सुनिश्चित  है  l    अपनी  सुरक्षा  के  लिए  राजा - महाराजाओं  ने  कितने  मजबूत  किले  बनवाए  l   वे  किले  तो  अभी  तक  हैं  ,    लेकिन    उनमें  रहने  वाले  नहीं  बचे  l   इसलिए  ऋषियों   का  कहना  है   कि   जो  निश्चित  है  उससे  भयभीत  न  हो  ,  जो  जीवन  हमारे  हाथ  में  है   उसे  सार्थक  करने  का  प्रयास  करें   l   '  जब  आया  था  इस  दुनिया  में ,  सब  हँसते  थे  तू  रोता   था   l   अब  ऐसी  करनी  कर  जग  में ,  सभी  रोयें  , तू  हँसता  जा   l  '

WISDOM -----

  महाभारत   का  यह  प्रसंग   हमें  शिक्षा  देता  है  कि     कोई  परिवार  हो ,  संस्था  हो  अथवा  राष्ट्र  हो  ,  उनका  आपसी  वैमनस्य  परिवार  के  भीतर  ही  रहना  चाहिए  l  किसी  अन्य  के  साथ  संघर्ष  होने  पर   सबका  साथ - साथ  रहना  ही  श्रेयस्कर   है    l   यह  प्रसंग  है ------जब  पांडवों  का    वनवास काल  चल  रहा  था    और  वे  द्वैत  वन  में  निवास  कर  रहे  थे  ,  तब  इस  बात  की  सुचना  दुर्योधन  को  मिली  l   यह  समाचार  मिलने  पर    दुर्योधन  ने   अपने  दल - बल  के  साथ  वहां  जाने  का   निर्णय  किया  l   उसका   उद्देश्य मात्र  पांडवों  को  नीचा   दिखाना   और  अपने  राजसी  वैभव  का  दिखावा  करना  था  l   दुर्योधन  के  वहां   पहुँचने  से  पहले  ही  उसका  सामना  गंधर्व राज  चित्ररथ  के  समूह  से  हो  गया  l   चित्ररथ  अत्यंत  पराक्रमी  था  l   दुर्योधन  तो   स्वभाववश  वैमनस्य  रखने  वाला  था  ही  ,  उसने  अकारण  ही   अपनी  सेना  को  चित्ररथ  पर  हमला  करने  को  बोल  दिया  l   दुर्योधन  को  अंदेशा  था   कि  वह  आसानी  से   चित्ररथ  को  हरा  लेगा  ,  पर  होनी  को  कुछ   और  ही  मंजूर  था  l   चित्ररथ  की  सेना  ने  दुर्योधन    को  न  केवल  हरा  दिया  ,  वरन  उसको  अपने  कब्जे  में  ले  लिया  l   दुर्योधन  के  मंत्री  व  बचे  हुए  सैनिक  पांडवों  के  पास  सहायता  माँगने   को  पहुंचे  l   युधिष्ठिर  ने  उनको  अभयदान  दिया    व  युद्ध  कर  के    दुर्योधन  को  चित्ररथ  के  पास  से  सकुशल  छुड़वा  दिया  l     भीम  दुर्योधन  की  सहायता  करने  के  पक्ष  में  नहीं  थे  l   उन्होंने  भ्राता  युधिष्ठिर  से  प्रश्न  किया  ---- "  दुर्योधन  तो  अकारण  ही  हमसे  वैर  रखता  है  , फिर   हमें    उसकी  सहायता  करने  से  क्या  लाभ   ?  उसको  उसके  कर्मों  का  फल  मिलने  दिया  होता   l  "  भीम  का  वचन  सुनकर  युधिष्ठिर    ने  उत्तर  दिया  --- "  हम  पाँचों  भाइयों  का  भले  ही  अपने  सौ   भाइयों   से  विवाद  हो  जाये  l   किसी  अन्य  के  साथ  संघर्ष  होने  पर   हम  सबका  साथ - साथ  रहना  ही  श्रेयस्कर  है   l  "