16 September 2023

WISDOM ---

  एक  व्यक्ति  के  मरने  का  समय  आया  तो  स्वर्ग  से  देवदूत  उसे  लेने  पहुंचे   और  बोले  --- " चलिए  !  हम  आपको  स्वर्ग  ले  जाने  आए  हैं  l "   उसने  विनती  की  और  बोला  --- "  हे  देवदूतों  !  आप  कृपा  करें  , मेरे  कुछ  जरुरी  कार्य   शेष  हैं  , कृपा  कर  के  मुझे  एक  वर्ष   और  जीने  का  अवसर  दें  l "  उसके  पुण्य  कार्यों  को  देखते  हुए   देवदूतों  ने  कहा --- " ठीक  है  !  हम  एक  वर्ष  बाद  आयेंगे  l "  अब  वह  व्यक्ति  यह  सोचकर  निश्चिन्त  हो  गया  कि  उसे  तो  मृत्यु  के  बाद  स्वर्ग  मिलेगा   इसलिए  उसने  इस  एक  वर्ष  में  खूब  मौज -मस्ती  की  ,  कोई  पुण्य  के  कार्य  नहीं  किए  , जीवन  भर  की  अधूरी  इच्छाएं  पूरी  करने  में  व्यस्त  हो  गया  l    देखते -देखते  एक  वर्ष  बीत  गया  l  एक  वर्ष  बाद  उसे  लेने  यमदूत  आए   और  बोले  --- "  चलो  !  हम  तुम्हे  नरक  ले  जाने  आए  हैं  l "  वह  व्यक्ति  नरक  का  नाम  सुनकर  घबराया  और  बोला  --- " मेरा  स्थान  तो  स्वर्ग  में  नियत  था  , आप   भूल  कर  रहे  हैं  l  "  यमदूत  बोले  --- "  उस    समय  था   ,  लेकिन  इस  एक  वर्ष  में  तुमने  कोई  पुण्य  नहीं  किया   और  जो  पिछले  पुण्य  थे  वे  सब  इस  एक  वर्ष  में  तुमने  भोग -विलास  का   जीवन   जी  कर  समाप्त  कर  दिए   इसलिए  अब  तुम्हारी  बारी  पाप  भोगने  की  है  l  "   आचार्य श्री  कहते  हैं  --- 'पापों  को  एकत्रित  कर  स्वर्ग  की  कामना  मत  करो  l  सन्मार्ग  पर  चलो   और  सत्कर्म  की  पूंजी  एकत्रित  करते  चलो   तो  धरती  पर  ही  स्वर्ग  जैसी  सुख -शांति  प्राप्त  होगी  l '

WISDOM -----

   आज  संसार  में  अनेक  बीमारियाँ   हैं , उनके  उपचार  के  लिए  हर  तरह  की  चिकित्सा  उपलब्ध  है   l  लेकिन  इन  सब  बीमारियों  , दुर्घटनाओं  को  जन्म  देने  वाली  जो  सबसे  बड़ी  बीमारी  है   , वह  है  --तनाव  l   हमारी  रोजमर्रा  की  जो  जिन्दगी  है  उसमें  कहीं  कोई  कमी  है  जो  तनाव  को  जन्म  देती  है   l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- रोजमर्रा  की  जिंदगी  में   यदि  सबसे  ज्यादा  किसी  की  उपेक्षा  होती  है  ,  तो  वह   है  --अंतरात्मा  --- यह  हम  सबके  जीवन  का  सार  है  l  औसत   आदमी   अपनी  इन्द्रिय  लालसाओं  को   तृप्त  करने ,  अपने  अहं  को  प्रतिष्ठित  करने  ,  ईर्ष्या , द्वेष ,  संदेह  आदि  कुभाव  के  कारण  अपनी  अंतरात्मा  की  आवाज  को  नहीं  सुनता  , अपनी  ही  अंतरात्मा  का  सम्मान  नहीं  करता  l  आचार्य श्री  कहते  हैं ---आम  इनसान  अपनी  जिंदगी  को  आधे -अधूरे  ढंग  से  जीता  है  , दुनिया  के  सामने  झूठी  नकली  जिंदगी  जीता  है  l  वह  भय  के  कारण  , समाज  के  डर  की  वजह  से  , समाज  में  अपने  अच्छे  होने  का  नाटक  करता  है  , परन्तु  समाज  की  ओट  में   चोरी  छिपे   अनेकों  बुरे  काम  कर  लेता  है  l  अपने  मन  में  बुरे  ख्यालों  व  ख्वाबों  में  रस  लेता  है  l  वह  इस  सत्य  को  अनदेखा  करता  है  कि   ईश्वर  सड़क , चौराहों  और  कमरे  की  बंद  दीवारों  के  भीतर  भी  है l  यहाँ  तक  कि  हमारे  अंतर्मन , हमारे  विचार , भावनाएं   सब  पर  ईश्वर  की  नजर  है  l  हमारे  मन  के  तार  ईश्वर  से  जुड़े  हैं  l  जो  इस  सत्य  को  जानते  -समझते   हैं   वे  सरलता  से  अपना  जीवन  जीते  हैं , उनका  जीवन  एक  खुली  किताब  होता  है  , जहाँ  तनाव   की  कोई  जगह  ही  नहीं  है  l