11 April 2018

WISDOM ---- गृहस्थ - योगी ------ राष्ट्रमाता कस्तूरबा

 गृहस्थ - योग  भी  योगशास्त्र  की  एक  शाखा  माना  जाता  है  और  पौराणिक  कथाओं  के  अनुसार  प्राचीन  काल  में  अनेक  नारियों  ने  इसी  के  द्वारा  महान  सिद्धियाँ  प्राप्त  की  हैं  l   बा  की  सेवा - भावना   और  परिचर्या   भी  लगभग  निष्काम  कर्मयोग  की  श्रेणी  में  जा  पहुंची  थी  l   एक  बार  जब  गांधीजी  ने  बा  से  कहा --- " मैंने  तुझे  गहने  पहनने  या  अच्छी  रेशमी  साड़ियाँ  पहनने  से  कब  रोका  ? 
बा  ने  कुछ  गंभीर  होकर  कहा --- "  आपको  साधु - संन्यासी  बनना  है  l  तब  भला  मैं  मौज - शौक  से  रहकर  क्या  करती  ?  आपका  मन  जान  लेने  के  बाद   मैंने  भी  अपने  मन  को  मोड़  लिया   और  दुनिया  का  रास्ता  छोड़  दिया  l  "
 ऐसा  था  बा  और  बापू  का  दाम्पत्य  जीवन  l 
   यद्दपि  प्रकट  में  बा  और  बापू  में  कहा - सुनी  होती  जान  पड़ती  थी  , पर  आंतरिक  रूप  से  दोनों  एक  थे  , एक  दूसरे  के  गुणों  को  समझते  थे   l 
  एक  बार  अन्य  किसी  प्रान्त  का  युवक  आश्रम  में  आया  और  आलोचक  की  तरह  गांधीजी  से  कहा --- "  आप  सब  किसी  को  तो  चाय  आदि  पीने  से  रोकते  हैं  पर  बा  तो  प्रतिदिन  दो  बार  काफी  पीती  हैं  l  "  तो  गांधीजी  ने  उत्तर  दिया  ---- " तुमको  मालूम  है  बा  ने  कितना  अधिक  त्याग  किया  है  ?  कितनी  वस्तुओं  और  आदतों  को  छोड़ा  है  ?  अब  अगर  यदि  मैं  उसकी  इस  अन्तिम  छोटी  सी  आदत  को  भी  छुड़ाने  की  कोशिश  करूँ   तो  मुझसा  निर्दयी  पति  और  कौन  होगा   ?  "
  मेहमानों  की  व्यवस्था   करने  में  बा   गांधीजी  के  नियमों  को  भी  ढीला  कर  देती  थीं  l  दीनबंधु  एंड्रूज  का  काम  चाय  के  बिना  चल  ही  नहीं  सकता  था  l  पर  गांधीजी  के  पास  किसी  को  चाय  कैसे  मिलती  l  इसलिए  बा  उनको  बुलाकर  चाय  पिलाती  थीं  l  बा के  आश्रम  में  रहने  से  ही   श्री  राजगोपालाचारी  को  चाय  मिलती  थी  l  पं. नेहरु  भी  खास  स्वाद  वाली  चाय  बा  के  कारण  ही  पा  सकते  थे   l 
 अपने  गुणों  के  कारण  ही   गांधीजी  के  साथ  बा  ने  अपना  भी  नाम  अमर  कर  लिया   l