13 May 2013

FEELINGS -SYMPATHY

सुप्रसिद्ध गायत्री साधक ,आर्य समाज के एक स्तंभ महात्मा आनंद स्वामी के पास एक धनपति आये | बहुत बड़ा व्यवसाय था उनका ,चारों ओर वैभव का साम्राज्य था ,पर वे अंदर से बड़ा खालीपन अनुभव करते थे | उनकी भूख चली गई थी और रात्रि की नींद भी | अपनी यह व्यथा उन्होंने स्वामीजी को सुनाई | महात्मा आनंद स्वामी ने कहा -"आपने जीवन में कर्म एवं श्रम को तो महत्व दिया ,पर भावना को नहीं | सत्संग ,कथा -श्रवण आदि से तो विचारों को पोषण मिलता है | अंदरकी शुष्कता कम करने के लिये अब प्रेम ,धन ,श्रम लुटाना आरंभ कीजिये | अपने आपे का विस्तार कीजिये | सबको स्नेह दें ,अनाथों -निर्धनों के बीच जायें और उन्हें स्वावलंबी बन सकने योग्य सहायता दें | अपना शरीर -श्रम भी जितना इस पुण्य कार्य में लग सके ,लगाइये | दिनचर्या सुव्यवस्थित रखिये | फिर देखिये ,आपकी भूख लौट आयेगी तथा नित्य चैन की नींद सोयेंगे | आपका स्वास्थ्य भी ठीक हो जायेगा | "
सेठजी ने ऐसा ही किया ,इस चमत्कारी परिवर्तनने  उन्हें जो सेहत ,शांति ,प्रसन्नता दी ,वह पहले उन्हें कभी नहीं मिली थी | लोकमंगल युक्त परमार्थ परक भावनाओं और संवेदनाओं को अपने जीवन -व्यवहार में अधिकाधिक स्थान देने से ही अंदर की शुष्कता और खालीपन दूर होगा ,भावनात्मक तृप्ति मिलेगी 

SYMPATHY


'सजल संवेदनाएं जीवन साधना की धुरी हैं | यह जीवन का स्वर्णिम सच है कि संवेदनशीलता का चुम्बकत्व जहां जितना गहरा होता है ,वहां उसी के अनुपात में अपने आप ही सद्गुणों की स्रष्टि होती है | इसके विपरीत संवेदनहीनता जहां जितनी मात्रा में पनपती है ,उसी के अनुरूप दुर्गुणों ,दोषों  की कतारें खड़ी हो जाती हैं |
                        संवेदनशीलता को ठुकराकर ,इनकी उपेक्षा करके विकास एवं प्रगति के कितने ही प्रतिमान क्यों न तय किये जायें ,पर अतृप्ति की कसक हमेशा ही मन को सालती रहती है | धन ,सम्मान ,प्रतिष्ठा के बहुतेरे साधन अंतर्मन को संतोष नहीं दे पाते ,सब कुछ मिल जाने पर भी खालीपन बुरी तरह से कचोटता रहता है |
              भावनात्मक तृप्ति की अनुभूति किस तरह से हो ?तो जवाब बड़ा ही आसान है --भावनाएं बांटने पर मिलती ,बिखेरने पर बढ़ती हैं ,यह ऐसी संपदा है ,जिसे जितना लुटाओगे ,उतनी ही बढ़ेगी | इसलिये जो भावनात्मक तृप्ति चाहते हैं वे अपनी भावनाएं पीड़ितों को ,जरुरतमंदों को दें |
इस परम पवित्र निष्काम कर्म का परिणाम हर हालत में संतुष्टि एवं तृप्तिदायक होगा |