19 January 2013

एक भैंस थी बड़ी उपद्रवी ।रस्सा तुड़ाकर भाग जाती थी और जिस खेत में घुस जाती थी उसी को कुचल कर रख देती थी ।पकड़ने वालों की भी अच्छी खबर लेती थी ।एक दिन तो वह ऐसी हो गई कि किसी की पकड़ में नहीं आ रही थी ।हैरान लोगों के बीच से एक साहसी लड़का निकला ।सिर पर उसने हरी घास का गट्ठर रख लिया और उपद्रवी भैंस की तरफ सहज स्वभाव से आगे चलता चला गया ।ललचायी भैंस घास खाने के लिए आगे बढ़ी ।लड़के ने उसके आगे गट्ठर डाल दिया और मौका मिलते ही उछलकर उसकी पीठ पर जा बैठा ।डंडे से पीटते हुए वह उसे बाड़े में ले आया ।लोगों ने जाना कि आवेश भरे प्रतिरोध से भी बढ़कर उपद्रवी तत्वों को काबू में लाने के लिए कई बार दूरदर्शी नीति अधिक कार्य करती है ।
पुत्र ने पिता से पूछा -वृक्षों को शंकर भगवान की उपमा क्यों दी जाती है ?पिता ने कहा -"बेटा ,समुद्र मंथन हुआ तो उसमे से विष भी निकला ,जब उसे किसी ने ग्रहण नहीं किया तो शंकरजी ने पीकर मानवता की रक्षा की ।शंकरजी ने तो ऐसा एक ही बार किया ,पर धरती के जितने भी जीवधारी अपनी गंदी साँस का जहर निकालते हैं ,बेचारे वृक्ष उसे पीकर बदले में स्वच्छ ऑक्सिजन देते हैं ,जिससे उनका जीवन सुरक्षित रहता है ।पुत्र बोला -फिर तो वृक्ष महाशंकर हुए ।

ATMOSPHERE

प्रजापति ब्रह्मा ने वृक्ष बनाये ,वनस्पति बनाई ,छोटे -छोटे जीव -जंतु बनाए ,पशु और पक्षी बनाए और जब देखा कि इनमे से एक भी पर्यावरण को व्यवस्थित रख सकने में समर्थ नहीं है ,हर जीव खुदगर्ज साबित हुआ ,तब विधाता ने सम्पूर्ण प्रतिभा और ज्ञान संपन्न मनुष्य का निर्माण किया ।मनुष्य को अपने समान क्षमतावान देखकर विधाता की चिंता दूर हुई ,संसार की व्यवस्था मनुष्य को सौंपकर वे अपनी थकावट मिटाने के लिए शयन करने लगे ।एक हजार वर्ष की नींद टूटी तो विधाता ने देखा कि द्वार पर जीव -जंतुओं की भारी भीड़ जमा है ।विधाता को जगाने और अपनी शिकायत पेश करने के लिए सब दरवाजा खटखटा रहे हैं ,नारे लगा रहे हैं ।चकित विधाता दरवाजा खोलकर बाहर निकले और जीव -जंतुओं से उनके दुःख का कारण पूछा ।जीवों के प्रमुख प्रतिनिधियों ने बताया -भगवन !आपने मनुष्य को बनाया था स्रष्टि की व्यवस्था के लिए ,पर यह हम सबको ही सताए और नष्ट किये डाल रहा है ।स्रष्टि का सौंदर्य नष्ट होता देखकर विधाता बहुत चिंतित हुए और बोले -बच्चे दुःख न करो ,मनुष्य ने अपनी सद्बुद्धि को दुर्बुद्धि में बदलकर आप लोगों का उतना अहित नहीं किया ,जितना अपना पतन किया है ।जाओ कुछ दिन और प्रतीक्षा करो ,एक दिन उसकी यह दुर्बुद्धि ही उसे पशुवत जीवन में ले जाएगी ,तब वह स्वयं अनुभव करेगा कि यदि -हम भी पशुओं की तरह ही जीवन जीते हैं ,तो मनुष्य शरीर पाने का क्या लाभ ?यह ज्ञान ही उसे पश्चाताप और सुधार की प्रेरणा देगा ,तभी सुख -शांति स्थापित होगी ।वह स्वयं ही गिरा है तथा उठेगा भी स्वयं ही ।