सुप्रसिद्ध गायत्री उपासक , आर्य समाज के एक स्तम्भ महात्मा आनंद स्वामी के पास एक धनपति आये l इनके कई कारखाने थे , सभी लड़के अपने - अपने काम में लगे थे l चारों ओर वैभव का साम्राज्य था , पर VE अन्दर से बड़ा खालीपन अनुभव करते थे l उनकी भूख चली गई थी और रात्रि कि नींद भी l अपनी यह व्यथा उन्होंने स्वामीजी को सुनाई l
महात्मा आनंद स्वामी ने कहा ---- " आपने जीवन में कर्म और श्रम को तो महत्व दिया , पर भावना को नहीं l सत्संग , कथा - श्रवण आदि से तो विचारों को पोषण भर मिलता है l अन्दर कि शुष्कता कम करने के लिए अब प्रेम , धन , श्रम लुटाना आरम्भ कीजिये l अपने आपे का विस्तार कीजिये l सबको स्नेह दें , अनाथों - निर्धनों के बीच जाएँ और उन्हें स्वावलंबी बन सकने योग्य सहायता दें l अपना शरीर - श्रम जितना इस पुण्य कार्य में लग सके , लगाइए l दिनचर्या सुव्यवस्थित रखें l फिर देखिये आपकी भूख लौट आएगी तथा नित्य चैन की नींद सोयेंगे l आपका स्वास्थ्य भी ठीक हो जायेगा l "
सेठजी ने ऐसा ही किया l इस चमत्कारी परिवर्तन ने उन्हें जो सेहत , शांति व प्रसन्नता दी , वह पहले कभी नहीं मिली l
महात्मा आनंद स्वामी ने कहा ---- " आपने जीवन में कर्म और श्रम को तो महत्व दिया , पर भावना को नहीं l सत्संग , कथा - श्रवण आदि से तो विचारों को पोषण भर मिलता है l अन्दर कि शुष्कता कम करने के लिए अब प्रेम , धन , श्रम लुटाना आरम्भ कीजिये l अपने आपे का विस्तार कीजिये l सबको स्नेह दें , अनाथों - निर्धनों के बीच जाएँ और उन्हें स्वावलंबी बन सकने योग्य सहायता दें l अपना शरीर - श्रम जितना इस पुण्य कार्य में लग सके , लगाइए l दिनचर्या सुव्यवस्थित रखें l फिर देखिये आपकी भूख लौट आएगी तथा नित्य चैन की नींद सोयेंगे l आपका स्वास्थ्य भी ठीक हो जायेगा l "
सेठजी ने ऐसा ही किया l इस चमत्कारी परिवर्तन ने उन्हें जो सेहत , शांति व प्रसन्नता दी , वह पहले कभी नहीं मिली l