एक समय की बात है इंदौर में किसी रास्ते के एक किनारे पर एक गाय अपने बछड़े के साथ खड़ी थी l तभी देवी अहिल्याबाई के पुत्र मालोजी राव की सवारी निकली l गाय का बछड़ा अकस्मात उछलकर रथ के सामने आ गया l गाय भी उसके पीछे दौड़ी , पर तब तक मालोजी का रथ बछड़े को कुचलता हुआ आगे निकल गया , किसी ने परवाह नहीं की l गाय स्तब्ध आहत - सी वहीँ बैठ गई l थोड़ी देर बाद अहिल्याबाई वहां से गुजरीं , उन्होंने गाय को और उसके पास मृत पड़े बछड़े को देखकर घटनाक्रम का पता लगाया l सारा घटनाक्रम जानने पर अहिल्याबाई ने दरबार में मालोजी की पत्नी मेनाबाई को बुलाया l उन्होंने मेनाबाई से पूछा ---- " यदि कोई व्यक्ति किसी माँ के सामने उसके बेटे की हत्या कर दे , तो उसे क्या दंड मिलना चाहिए ? " मालोजी की पत्नी ने जवाब दिया --- " उसे प्राणदंड मिलना चाहिए l " देवी अहिल्या ने मालोजी को हाथ - पैर बांधकर मार्ग पर डालने को कहा और फिर उन्होंने यह आदेश दिया कि मालोजी को यह मृत्युदंड रथ से टकरा कर दिया जाये l परन्तु यह कार्य करने को कोई भी सारथी तैयार न हुआ l देवी अहिल्याबाई न्यायप्रिय थीं l अत: वे स्वयं माँ होते हुए भी इस कार्य को करने के लिए रथ पर सवार हो गईं l वे रथ को लेकर आगे बढ़ी ही थीं कि तभी एक अप्रत्याशित घटना घटी l वही गाय रथ के सामने आकर खड़ी हो गई और उसे जितनी बार हटाया जाता , वह उतनी ही बार अहिल्याबाई के सामने आ जाती l यह दृश्य देखकर मंत्री परिषद ने देवी अहिल्या से मालोजी को क्षमा करने की प्रार्थना की l इस तरह गाय ने स्वयं पीड़ित होते हुए भी मालोजी को क्षमा करके उनके जीवन की रक्षा की | इंदौर में जिस जगह यह घटना घटी , वह स्थान आज भी आड़ा बाजार के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस स्थान पर गाय ने अड़कर दूसरे की रक्षा की l
21 September 2020
WISDOM ----
चाहे कोई भगवान का कितना भी बड़ा भक्त हो , कर्म फल से कोई नहीं बचा है l जब धरती पर पाप बहुत बढ़ जाता है तब भगवान स्वयं जन्म लेते हैं पापियों का नाश करने के लिए l जब दसों दिशाओं में रावण का आतंक था , तब भगवान राम का जन्म हुआ l उस समय ऋषियों के चिंतन में यह बात थी की रावण तो सपरिवार परम शिव भक्त है , तो क्या प्रभु स्वयं अवतार लेकर अपने ही भक्त का विनाश करेंगे ? तब भगवान भोलेनाथ ने ऋषियों से कहा --- ' हे ऋषिगण ! पूजा के कर्मकांड को भक्ति नहीं कहा जा सकता l भक्ति तो पवित्र भावनाओं में वास करती है l जो भक्त है , उसकी संवेदना का विस्तार तो सृष्टिव्यापी होता है , भला वह कैसे किसी का उत्पीड़न कर सकेगा l रावण भक्त नहीं , तपस्वी है l आज उसे अपने तप का फल मिल रहा है , परन्तु उसकी संवेदना को उसके अहंकार ने निगल लिया है l फिर यदि किन्ही अर्थों में वह मेरा भक्त भी है तो अपने भक्त का उद्धार करना मेरा ही दायित्व है l ' युद्ध से पूर्व जब रावण ने शक्ति पूजा की तब देवी ने उसे वरदान दिया था --- ' तुम्हारा कल्याण हो l ' रावण का अंत होने में ही उसका कल्याण था l