इस संबंध में एक कथा है ----- नारद जी को स्वास्थ्य बहुत प्रिय था , इस लिए वे हमेशा टहलते और क्रियाशील रहते थे l एक बार वे धरती पर भ्रमण कर रहे थे , उन्होंने एक विचित्र वृक्ष देखा l इस वृक्ष में तना था , डालियाँ थीं , पर सब ठूंठ थे , एक भी पत्ती नहीं थी , हाँ , फल अवश्य थे , पर वे सब काले थे l उस वृक्ष के नीचे सैकड़ों जीव - जंतु और पक्षी मरे पड़े थे l नारद जी ने अनुमान लगा लिया कि ये फल विषैले होंगे , इन्हें खाने के प्रयास में ही ये जीव अपनी जान गँवा बैठे l अब नारद जी सीधे ब्रह्माजी के पास गए और कहा --- ' भगवन ! आपकी सृष्टि में यह विषफल l कहाँ से आया यह वृक्ष , जिसमे एक भी पत्ता नहीं है और मृत्यु - मुख में पहुँचाने वाले फल ! क्या ये कभी शीतल और मधुर नहीं हो सकते ? ' विधाता बोले ---- " तात ! बहुत दिन हुए यहाँ एक युवक आया l वह जिससे मिलता तो भक्ति और वैराग्य की बातें करता , परमार्थ की सन्मार्ग पर चलने की बात कहता l लोगों ने कहा ये पागल हो गया l उसका एक हाथ ख़राब हो चुका था , उसे पिता , भाई , पत्नी सब ने त्याग दिया l कोई उसे खाना - पानी कुछ नहीं देता , उस पर व्यंग्य करते , हँसी उड़ाते l वह सोचता कि संसार में प्रेम और दया के स्रोत न सूखें तो संसार कितना खुशहाल हो सकता है l वह युवक बहुत स्वाभिमानी था , उसने देखा जिस तरह सृष्टि के अन्य जीवों की आहार संबंधी आवश्यकताएं सीमित हैं , उसी प्रकार मनुष्य भी थोड़े में अपना काम चला सकता है और शेष समय परमार्थ में लगा सकता है l उसने अपने लिए कुछ फलों के पौधे लगाने और उनसे आहार प्राप्त करने का निश्चय किया l उसे ईश्वरीय सत्ता पर विश्वास था , भूखा -प्यासा रहकर बिना किसी साधन के एक हाथ से गड्डा खोदता था l एक प्रात:काल उसने जैसे ही मिटटी का ढेला हटाया कि एक बहुमूल्य मणि का टुकड़ा उसके हाथ आ गया , वह मणि लेकर खड़ा हुआ तो लोग चौंक गए कि आज सूर्योदय समय से पहले कैसे हो गया l उसके पिता , भाई , बहिन , पत्नी सब आ गए l उसके चन्दन का लेप किया , बहुमूल्य वस्त्र पहनाये , पकवान से भरा थाल ले आये l युवक को इस मिथ्या मोह और जग - प्रपंच पर हँसी आ गई l उसने सब वस्त्र -आभूषण उतार फेंके , भोजन भी नहीं लिया और मणि लिए हुए जाने कहाँ चला गया , उस दिन से उसे किसी ने नहीं देखा l हाँ , उसका रोपा हुआ वृक्ष कुछ दिन में मीठे फल देने लगा l धीरे - धीरे उस युवक का यश सारे विश्व में गूँजने लगा और सैकड़ों लोग आ गए पहाड़ खोदने कि उन्हें भी मणि मिल जाये l मणि तो मिली नहीं एक दिन खोदते हुए बहुत बड़ा पत्थर निकल आया l सबने एकजुट होकर पत्थर हटाया तो उसके पीछे भयंकर नाग छुपा बैठा था l वह फुँकार मार कर दौड़ा , लोग भागे , उसने अधिकांश को डस लिया l भागते समय ये लोग उस वृक्ष से टकराए , उस विषधर का विष उस वृक्ष में भी व्याप गया l उस दिन से उसके सब पत्ते झड़ गए और फल विषैले हो गए l ' नारद जी ने बड़े विस्मय से पूछा ---" भगवन ! क्या यह वृक्ष फिर से हरा - भरा नहीं हो सकता ? ' ब्रह्मा जी ने कहा ---- " असंभव कुछ भी नहीं l पर आज धरती के सारे लोगों को ही स्वार्थ और प्रपंच के नाग ने डस लिया है l जितने लोग इस वृक्ष से टकराते हैं , उतने ही फल और अधिक विषैले हो जाते हैं l उस युवक की तरह कोई नि:स्वार्थ , प्रेमी संत आए और उस वृक्ष का स्पर्श करे तो यह फिर से शीतल , सुखद और मधुर फलों वाला वृक्ष बन सकता है l '