13 May 2021

WISDOM ----- साधनों के अभाव से मनुष्य दुःखी नहीं है , संसार के दुःख का कारण है --- भावनाओं का अभाव

  इस  संबंध   में  एक  कथा  है  ----- नारद जी   को    स्वास्थ्य   बहुत  प्रिय  था  , इस    लिए   वे  हमेशा   टहलते  और    क्रियाशील  रहते  थे   l   एक  बार  वे  धरती  पर  भ्रमण  कर  रहे  थे  , उन्होंने  एक  विचित्र  वृक्ष  देखा   l   इस  वृक्ष  में  तना  था , डालियाँ  थीं  , पर  सब  ठूंठ  थे  , एक  भी  पत्ती   नहीं  थी ,  हाँ , फल  अवश्य  थे   , पर  वे  सब  काले   थे  l  उस  वृक्ष  के  नीचे  सैकड़ों  जीव - जंतु  और  पक्षी  मरे  पड़े  थे  l  नारद जी  ने  अनुमान  लगा  लिया  कि   ये  फल  विषैले  होंगे  , इन्हें  खाने  के  प्रयास  में  ही   ये  जीव  अपनी  जान  गँवा  बैठे   l   अब  नारद जी  सीधे  ब्रह्माजी  के  पास  गए  और  कहा  --- ' भगवन  !  आपकी  सृष्टि  में  यह  विषफल  l  कहाँ  से  आया  यह  वृक्ष  , जिसमे  एक  भी  पत्ता  नहीं  है  और   मृत्यु - मुख  में  पहुँचाने  वाले  फल  !  क्या  ये  कभी   शीतल  और  मधुर  नहीं  हो  सकते   ? '     विधाता  बोले  ---- " तात  !  बहुत  दिन  हुए  यहाँ  एक  युवक  आया  l  वह  जिससे  मिलता  तो  भक्ति  और  वैराग्य  की  बातें  करता , परमार्थ  की  सन्मार्ग  पर  चलने  की  बात  कहता   l   लोगों  ने  कहा  ये  पागल  हो  गया  l  उसका  एक  हाथ  ख़राब  हो  चुका  था  , उसे  पिता , भाई , पत्नी   सब ने  त्याग  दिया  l  कोई  उसे  खाना - पानी  कुछ  नहीं  देता  , उस  पर  व्यंग्य  करते ,  हँसी   उड़ाते  l   वह  सोचता   कि   संसार  में  प्रेम  और  दया  के  स्रोत  न  सूखें   तो  संसार  कितना  खुशहाल  हो  सकता  है   l  वह     युवक  बहुत  स्वाभिमानी  था  ,  उसने  देखा   जिस  तरह  सृष्टि   के अन्य  जीवों  की   आहार  संबंधी   आवश्यकताएं  सीमित   हैं  ,  उसी  प्रकार  मनुष्य   भी   थोड़े  में  अपना  काम  चला  सकता  है   और  शेष  समय  परमार्थ  में  लगा  सकता  है  l   उसने  अपने  लिए   कुछ  फलों  के  पौधे  लगाने  और  उनसे  आहार  प्राप्त  करने  का  निश्चय  किया   l   उसे  ईश्वरीय  सत्ता  पर  विश्वास  था  ,  भूखा -प्यासा  रहकर  बिना  किसी  साधन  के  एक  हाथ  से   गड्डा   खोदता  था  l   एक  प्रात:काल  उसने   जैसे ही  मिटटी  का  ढेला  हटाया   कि   एक  बहुमूल्य  मणि  का  टुकड़ा  उसके  हाथ  आ  गया  ,  वह  मणि   लेकर खड़ा  हुआ  तो  लोग  चौंक  गए  कि   आज  सूर्योदय   समय  से  पहले  कैसे  हो  गया  l   उसके  पिता , भाई  , बहिन , पत्नी   सब आ  गए  l   उसके  चन्दन  का  लेप  किया , बहुमूल्य  वस्त्र  पहनाये  , पकवान  से  भरा  थाल  ले  आये  l  युवक  को  इस  मिथ्या  मोह  और  जग - प्रपंच  पर  हँसी   आ  गई  l   उसने  सब  वस्त्र -आभूषण  उतार  फेंके , भोजन  भी  नहीं  लिया   और  मणि  लिए  हुए  जाने  कहाँ  चला  गया  ,  उस  दिन  से  उसे  किसी  ने  नहीं  देखा  l  हाँ ,  उसका  रोपा  हुआ  वृक्ष  कुछ  दिन  में  मीठे   फल देने  लगा  l   धीरे - धीरे  उस  युवक  का  यश  सारे  विश्व  में   गूँजने   लगा  और  सैकड़ों  लोग  आ  गए  पहाड़  खोदने  कि   उन्हें  भी  मणि  मिल  जाये  l  मणि  तो  मिली  नहीं  एक  दिन  खोदते  हुए   बहुत  बड़ा  पत्थर  निकल  आया  l  सबने  एकजुट  होकर  पत्थर  हटाया   तो  उसके  पीछे  भयंकर  नाग  छुपा  बैठा  था  l  वह  फुँकार   मार  कर  दौड़ा  , लोग  भागे  , उसने  अधिकांश  को  डस   लिया  l   भागते  समय  ये  लोग  उस  वृक्ष  से  टकराए ,  उस  विषधर  का  विष  उस  वृक्ष  में  भी   व्याप    गया  l   उस  दिन  से  उसके  सब  पत्ते  झड़   गए  और  फल  विषैले  हो  गए   l  ' नारद  जी  ने  बड़े  विस्मय  से  पूछा  ---" भगवन  ! क्या  यह   वृक्ष  फिर  से  हरा - भरा  नहीं  हो  सकता   ? '  ब्रह्मा जी  ने  कहा ---- " असंभव  कुछ  भी  नहीं  l   पर  आज   धरती  के  सारे  लोगों  को  ही   स्वार्थ  और  प्रपंच  के  नाग  ने  डस   लिया  है   l   जितने  लोग   इस  वृक्ष  से  टकराते  हैं  ,  उतने  ही  फल  और  अधिक  विषैले   हो जाते  हैं   l     उस  युवक  की  तरह  कोई   नि:स्वार्थ  , प्रेमी   संत आए   और  उस  वृक्ष  का  स्पर्श  करे   तो  यह  फिर  से   शीतल , सुखद   और  मधुर   फलों  वाला   वृक्ष  बन  सकता  है   l   '