गीता हमें जीवन जीने की कला सिखाती है l आज के युग में लोगों में तनाव , अवसाद और मनोरोग बढ़ रहे हैं , इसका कारण दूषित मानसिकता है l लोग अपने सुख से सुखी नहीं हैं , दूसरे का सुख देखकर दुःखी हैं l प्रत्येक व्यक्ति इसी प्रयास में अपनी ऊर्जा गंवाता है कि कैसे किसी को अपमानित करें , नीचा दिखाएँ l आज मनुष्य अपनी तरक्की के प्रयास कम करता है , उसका सारा प्रयास केवल यही होता है कि कैसे अपने प्रतिद्वंदी को आत्महीनता की स्थिति में धकेल दें और उसकी तुलना में स्वयं को श्रेष्ठ साबित करें l इस वजह से संसार में तनाव , आत्महत्याएँ, अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं l
यह एक विडम्बना है कि उजाला हमारे पास है और हम अँधेरे में भटक रहे हैं l ईर्ष्या , द्वेष , लोभ , लालच , वासना , षड्यंत्र रचने की प्रवृति --- ये सब मानसिक विकार हैं , इन विकारों से ग्रस्त व्यक्ति एक प्रकार के मनोरोगी हैं और आज की परिस्थितियों में ऐसे ही मनोरोगियों से हमारा सामना होता है l ऐसे लोगों के बीच रहकर अपने मन को कैसे शांत और तनावमुक्त रखा जाये , यह ज्ञान गीता से ही मिलता है l गीता को धर्म और मजहब के दायरे से बाहर रखकर पढ़ा और समझा जाना चाहिए l इससे हमारा द्रष्टिकोण , सोचने - विचारने का तरीका परिष्कृत होगा तो अधिकांश समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाएँगी l
यह एक विडम्बना है कि उजाला हमारे पास है और हम अँधेरे में भटक रहे हैं l ईर्ष्या , द्वेष , लोभ , लालच , वासना , षड्यंत्र रचने की प्रवृति --- ये सब मानसिक विकार हैं , इन विकारों से ग्रस्त व्यक्ति एक प्रकार के मनोरोगी हैं और आज की परिस्थितियों में ऐसे ही मनोरोगियों से हमारा सामना होता है l ऐसे लोगों के बीच रहकर अपने मन को कैसे शांत और तनावमुक्त रखा जाये , यह ज्ञान गीता से ही मिलता है l गीता को धर्म और मजहब के दायरे से बाहर रखकर पढ़ा और समझा जाना चाहिए l इससे हमारा द्रष्टिकोण , सोचने - विचारने का तरीका परिष्कृत होगा तो अधिकांश समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाएँगी l