5 April 2023

WISDOM ----

  कौए  ने  विद्वान्  हंस  से  प्रश्न  किया --- " शास्त्रों  में  सत्संग  की   इतनी  महिमा  क्यों  कही  गई  है  ?  "  हंस  ने  उत्तर  दिया ---- " संग  जिसके  साथ  का  होता  है  ,  उसके  जैसे  गुण  संग  करने  वाले  को  प्राप्त  होते  हैं  l  गरम  लोहे  पर  पड़ने  से   जल  का  निशान  नहीं  पड़ता  , परन्तु  वही  जल  कमल  के  पत्ते  पर  पड़ने  से   मोती  सा  चमकने  लगता  है    और  वही  जल  स्वाति  नक्षत्र  में  सीप  के  मुंह  में  पड़  जाने  से  मोती  बन  जाता  है  ,  कोई  केले  में  गिरी  तो  कपूर  बन  गई  l  ठीक  ऐसे  ही  संसर्ग  जैसा  हो  ,  प्राणी  वैसे  ही  उत्तम , माध्यम   अथवा  अधम  गुण  प्राप्त  करता  है   l  "

WISDOM -----

   गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने   कहा  है ---- "प्रशंसा  केवल  अच्छाई  की  ही  हो  ,  यह  जरुरी  नहीं  , बुराई  की  भी  प्रशंसा  होती  है  l  जैसे  अमृत  की  प्रशंसा  है  कि   थोड़ी  सी   मात्रा    में  होते  हुए  भी  वह  कितनी  शीघ्रता  से  जीवन  को  बचा  सकता  है   और  विष  की  प्रशंसा  यह  है  कि   विष  की  छोटी  सी  बूंद  भी  कितने  हजारों  को  क्षण  भर  में  मृत्यु  दे  सकती  है  l  "    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' प्रशंसा   मधु  (शहद )  ने  सद्रश  है  ,  यदि  इसमें  व्यक्ति  की  आसक्ति  हो  जाये   तो  व्यक्ति  भी   मक्खी  की  तरह  इसमें  फँसकर   अपना  सब  कुछ  गँवा  देता  है   l  अर्थात  यदि  प्रशंसा  सुनकर   व्यक्ति  का  अहंकार  प्रबल  हो  जाये  ,  तो  धीरे -धीरे   उस  अहंकारी  व्यक्ति  के  पास   वास्तव  में  प्रशंसा  के  करने  योग्य   कुछ  बच  नहीं  पाता  ,  क्योंकि  अहंकार  रूपी  दुर्गुण   उसके  समस्त  गुणों  को   आवृत   कर  लेता  है  l  प्रशंसा  का  एक  सकारात्मक  पक्ष  भी  है  कि  यदि  व्यक्ति  को  अपनी  प्रशंसा   में  अपने  सद्गुण  नजर  आने  लगे   तो  वह  स्वयं  को  सुधारने  में  लग  जाता  है  l  "