1 September 2020

WISDOM -----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं ---- ' मैं '  है  मनुष्य  और  भगवान  के  बीच  की  दीवार  l '  स्वार्थी  व्यक्ति  को  अपने  आप  से  फुर्सत  नहीं  मिलती  l   उसके  लिए  समाज  सेवा  गई  भाड़  में  l '  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- ' उसका  ' मैं '  इतना  बढ़ा  हुआ  होता  है    कि   वह  अपने  ' मैं '  के  लिए   सबको  इस्तेमाल  करना  चाहता  है  l   यहाँ  तक  कि   भगवान  को ,  सिद्ध  पुरुषों  को ,  देवी - देवताओं  को  भी  अपने  ' मैं '  के  लिए  इस्तेमाल  करना  चाहता  है   l   अहंताएं  इतनी  ज्यादा  बढ़ी  हुई  हैं   कि   स्वार्थ  के  अलावा   आदमी  दूसरी  चीज  का  विचार  ही  नहीं  कर  सकता  l   "       आचार्य श्री    का कहना  है  --- जिसका  अहम् ,  जिसका  स्वार्थ  ,    जिसकी  भौतिक  महत्वाकांक्षाएं   जितनी  अधिक  बढ़ी - चढ़ी  हैं  ,  वह  भगवान  से  ,  राम  के  नाम  से  उतना  ही  दूर  है  l  जो  जितना  ख्वाहिशमंद   है  ,  ' नीडी '  है   उसको  अपनी  जरूरतों  को   पूरा  करने   और  दूसरों  को  नीचा   दिखाने   के  लिए   तैयारियाँ  करने  के  अतिरिक्त   फुरसत   ही  कहाँ  मिलती  है   ?  वह  समाज  के  लिए , देश  के  लिए  ,  भगवान  के  लिए  ,  यहाँ  तक  कि   अपनी  जीवात्मा  के  लिए  भी  कुछ  नहीं  कर  सकता   l   समूचा  जीवन  अपनी  महत्वाकांक्षाओं  की  पूर्ति  में  ही   खतम   कर  डालता  है   l