किसी की कृपा पर पलने वाला व्यक्ति एक तरह से अपने ऊपर कृपा करने वाले का गुलाम हो जाता है और फिर वह उस व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले प्रत्येक कार्य को उचित बताता है , उसके द्वारा अत्याचार , अन्याय किसी के भी प्रति किया जाता है तो वह उसे अपनी मौन स्वीकृति देता है l धन का लालच , सुख -सुविधा से जीवन जीने की चाह , समाज में अपनी पहचान बनाना --ऐसे कई कारण हैं जिनसे व्यक्ति अपने से समर्थ की गुलामी को स्वीकार कर लेता है l उसके लिए स्वाभिमान से जीना एक कठिन और असंभव कार्य होता है l यही कारण है कि समाज पर अन्याय , अनीति और अत्याचार की गाथा युगों से चली आ रही है l ----द्रोणाचार्य ने अपने जीवन में गरीबी के दिन देखे थे l उनका पुत्र अश्वत्थामा जब दूध के लिए रोता था तब उसकी माँ उसे आटा पानी में घोलकर पिलाती थी l अब जब वे हस्तिनापुर में पांडवों को शस्त्र विद्या , धनुर्विद्या सिखाने के आचार्य बन गए तब उनकी गरीबी दूर हुई l कौरवों और पांडवों की शिक्षा पूर्ण हो गई , दुर्योधन युवराज बन गया तब भी वे महलों में ही रहे और दुर्योधन की कृपा से राजसत्ता का सुख भोगते रहे l दुर्योधन द्वारा पांडवों के प्रति किए जाने वाले प्रत्येक षड्यंत्र पर वे मौन रहे , यहाँ तक कि भरी सभा में द्रोपदी के चीर -हरण पर भी मौन रहे l यह मौन उनकी स्वीकृति था l वे जानते थे कि दुर्योधन के विरोध से उन्हें भी विदुर की भांति शाक -पात पर आना पड़ेगा , ये सुख उनसे छिन जायेगा l मनुष्य अपनी मानसिक कमजोरियों से ही हारा हुआ है l परिवार हो , समाज हो या सारा संसार --- जिसके पास भी शक्ति है वह उसके अहंकार में अपनी ताकत का दुरूपयोग करता है , लोगों की कमजोरियों का फायदा उठाता है और जो उसके अहंकार को चुनौती दे , उसे मिटाने की जी -तोड़ कोशिश करता है , वह मदांध हो जाता है और उस अद्रश्य सत्ता को भी चुनौती देने लगता है l यही संसार है l
13 September 2022
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं --- "चिंता मनुष्य को वैसे ही खा जाती है , जैसे कपड़ों को कीड़ा l बहुत चिंता करने वाले व्यक्ति अपने जीवन में चिंता करने के सिवा और कुछ सार्थक नहीं कर पाते और चिंता से अपनी चिता की ओर बढ़ते हैं l " चिंता की घुन क्या होती है , यह स्पष्ट करने वाला एक प्रसंग है ---- दो वैज्ञानिक --एक युवा और एक वृद्ध आपस में बात कर रहे थे l वृद्ध वैज्ञानिक ने कहा ---" चाहे विज्ञानं कितनी भी प्रगति क्यों न कर ले , लेकिन वह अभी तक ऐसा कोई उपकरण नहीं ढूंढ पाया , जिससे चिंता पर लगाम कसी जा सके l " युवा वैज्ञानिक इस बात से सहमत नहीं हुआ और बोला --चिंता तो बहुत साधारण बात है , इसके लिए उपकरण ढूँढने में क्यों समय नष्ट किया जाए l तब वृद्ध वैज्ञानिक उसे अपनी बात समझाने के लिए घने जंगलों की ओर ले गए l वहां एक विशालकाय वृक्ष के सामने खड़े हो गए और उस युवा वैज्ञानिक से कहा ---- " इस वृक्ष उम्र लगभग चार सौ वर्ष है , इस वृक्ष पर चौदह बार बिजलियाँ गिरी l चार सौ वर्षों से अनेक तूफानों का इसने सामना किया लेकिन फिर भी यह धराशायी नहीं हुआ , मजबूती से खड़ा रहा l लेकिन अब देखो इसकी जड़ों में दीमक लग गई l दीमक ने इसकी छाल को कुतर -कुतरकर तबाह कर दिया और अब यह वृक्ष गिरने की कगार पर है l इसी तरह चिंता की दीमक भी एक सुखी , समृद्ध और ताकतवर व्यक्ति को चट कर जाती है l " आचार्य श्री का कहना है ---- 'चिंता करने के बजाय स्वयं को सदा सार्थक कार्यों में संलग्न रखें l जीवन के प्रति सकारात्मक द्रष्टिकोण रखना और मन को अच्छे विचारों से ओत -प्रोत रखना --ऐसे उपाय हैं ,जिनसे मन को चिंतामुक्त किया जा सकता है l '