28 June 2013

GREEDY

'जिनका चित संपति के अभाव में दुखी है वे दरिद्र हैं | ऐसे दारिद्रय की दवा पारस ( वह पत्थर जिसके छूने से लोहा ,सोना बन जाता है ) कैसे कर सकता है ?'

   एक था कंजूस और एक थे सिद्ध पुरुष | कृपण बार -बार सिद्ध के पास जाता और कोई बड़ी धन राशि दिलाने के लिये उनसे विनती करता | एक दिन सिद्ध पुरुष को मौज आ गई ,उनने झोली से निकाला पारस पत्थर और उसे कृपण के हाथ में ,पकड़ाते हुए कहा -"यह पत्थर सात दिनों तक तुम्हारे काम आयेगा ,लोहे से स्पर्श कर जितना चाहे सोना बना लेना "| कृपण बहुत प्रसन्न हुआ और एक दिन में करोड़पति बनने के सपने देखने लगा |           घर पहुँचने पर लोहा खरीदने की योजना बनाई | अधिक लोहा -सस्ता लोहा ,यह दो प्रश्न ही प्रमुख बन गये | कृपणता पूरे जोर -शोर से उभर आई | एक बाजार से दूसरे बाजार बहुत दौड़ -धूप की | इतने में एक सप्ताह गुजर गया | होश तो तब आया ,जब पारस का प्रभाव निष्फल हो गया | पारस मणि महात्मा को लौटाते हुए कृपण की उदासी देखते ही बनती थी |
          त्रिकालदर्शी महात्मा ने कहा --"मूर्ख !यह जीवन भी पारस मणि ही है | इसका तत्काल श्रेष्ठतम उपयोग करने वाले महान होते हैं -अमूल्य स्वर्ण बन जाते हैं और जो लालच में निरंतर निरत रहकर अवसर को चुका देते हैं ,वे तेरी ही तरह खाली हाथ रहते हैं और निराश होते हैं | "