27 February 2023

WISDOM -----

   इटली  के  सुविख्यात  संत  अलफांसस  लिग्योरी   अपनी  युवावस्था  में  वकालत  किया  करते  थे  l  न्यायालय  में  जब  वे  दलीलें  देकर  बहस  करते  थे,  तब  सभी  उनकी  तर्क्शैली  से  हतप्रभ  रह  जाते  थे  l  एक  दिन  वे  न्यायालय  में  अपने  मुवक्किल   के  पक्ष  में  पैरवी  कर  रहे  थे  l  मुवक्किल  ने   उनसे  एक  ऐसा  तथ्य  छिपाया  जिसके  आधार  पर  वह  दोषी  सिद्ध  होता  l  अदालत  की  कार्रवाई  के  दौरान   दूसरे  पक्ष  के  वकील  ने  कहा ---- " माननीय  अलफांसस   महोदय  !बहस  करते  समय   यदि  इस  तथ्य  का  अवलोकन  कर  लें   तो  शायद  उनकी  आत्मा  उन्हें  स्वयं   सत्य  का  आभास  दिलाने  में  सफल  होगी   l "  अलफांसस   उस  तथ्य   को  जानते  ही  समझ  गए   कि  वे  असत्य  और  अनीति  की  वकालत  कर  रहे  हैं  l  उन्होंने  वकालत  का  चोला  शरीर  से  उतारा  और  बोले --- " सर  !  मैं  इसी  वक्त  से  यह  कार्य  छोड़  रहा  हूँ  l  मैं   तर्क  शक्ति  के  बल  पर   अपराधी  को  निरपराध  तथा   निरपराध    को  अपराधी   बनाने  का  अनैतिक  कार्य   जीवन पर्यंत    नहीं  कर  सकता  l '  उन्होंने  उसी  दिन  से   अपना  जीवन ईश्वर उपासना   और   सेवा  में  लगाने  का  संकल्प  लिया   और  आगे  चलकर  संत  के  रूप  में  विख्यात  हुए  l  

26 February 2023

WISDOM ----

   स्रष्टि  में  निरंतर  संघर्ष  है --- दिन  और  रात  के  बीच , अंधकार  और  प्रकाश  के  बीच  ,  देव  और  दानव  के  बीच  निरंतर  संघर्ष  चलता  रहता  है  l  देवता   देवत्व  का  उदय  चाहते  हैं   और  दानव  आसुरी  साम्राज्य  का  आधिपत्य  l  संघर्ष  चाहे  कितना  भी  लम्बा  हो  विजय  हमेशा  धर्म  की , सत्य  की  होती  है  l    रामायण  काल  हो  या  महाभारत   काल  ,  उस  समय   सबके  सामने  स्पष्ट  था   कौन  देवता  है ,  कौन  असुर  है  ?  कौन  धर्म  और  न्याय  पर  चल  रहा  है   और  कौन   अनीति , अत्याचार  और  अधर्म  के  मार्ग  पर  है  l   लेकिन  कलियुग  की  सबसे  बड़ी  समस्या  है    कि  कौन   देवता  है , कौन  असुर  है  ?  यह  पहचानना  बड़ा   कठिन    और  असंभव  सा  है   क्योंकि  मनुष्य  ने  एक  चेहरे  पर  कई  चेहरे  लगा  रखे  हैं   l   कहते  हैं  अच्छाई  में  गजब  का  आकर्षण  होता  है   इसलिए  बुरे  से  बुरा   कार्य  करने  वाला  भी   समाज  में  स्वयं  को  बहुत  शालीन  और   सभ्य    दिखाता  है    लेकिन  ईश्वर  हम  सब  के  ह्रदय  में  बैठे  हैं  वे  हमारे  बाहरी  कार्यों  के  अलावा  हमारे  मन -मस्तिष्क  में  क्या  चल  रहा  है   , इसे  भी  अच्छी  तरह  जानते  हैं  l  वैज्ञानिक  तकनीकों  से  केवल  व्यक्ति  के  बाह्य  क्रिया -कलापों  की   जासूसी  की  जा  सकती  है    लेकिन  ईश्वर  सबसे  बड़ा  जादूगर  है  ,  सम्पूर्ण  स्रष्टि  में  प्रत्येक  व्यक्ति  के   मन  में  क्या  है , उसके  हर  पल  की  खबर  ईश्वर  को  है   क्योंकि  हम  सबके  मन  के  तार  ईश्वर  से  जुड़े  हैं  l  जो  इस  सत्य  को  जानता  है  और  कर्मफल  सिद्धांत  में  विश्वास  रखता  है ,  उसका  एक  ही  चेहरा  होता  है  , उसका  जीवन  एक  खुली  किताब  होता  है  l  इसलिए   उनके  जीवन  में  शांति  और  सुकून  होता  है   l  लेकिन  जिनकी  आँखों  पर  लोभ , लालच ,  स्वार्थ , अहंकार , महत्वाकांक्षा   का  परदा  पड़ा  होता  है  , वे  बहुत  कुछ  छुपाने  के  चक्कर  में  अपने  जीवन  का  सुख -चैन  गँवा  बैठते  हैं   और  तनाव  की  जिन्दगी  जीते  हैं  l 

25 February 2023

WISDOM ------

 1 . महात्मा  रामानुजाचार्य   अपनी  शारीरिक  दुर्बलता  के  कारण   नदी  स्नान  करने  जाते  हुए  लोगों  का  सहारा  लेकर  जाया  करते  थे   l  जाते  समय  वे  ब्राह्मण  के  कन्धों  का  सहारा  लेते   और  आते  समय   शूद्र  के  कन्धों  पर  हाथ  रखकर  आते  l  लोगों  ने  आश्चर्य पूर्वक  पूछा ---- " भगवान  !  शूद्र  के  स्पर्श  से  तो   आप  अपवित्र  हो  जाते  हैं  ,  फिर  स्नान  का  महत्त्व  क्या  रहा  ?  "    महात्मा  ने  कहा --- " स्नान  से  तो  मेरी  देह  मात्र  शुद्ध  होती  है  l  मन  का   मैल   तो  अहंकार  है  l  जब  तक  मनुष्य  में  अहंकार  शेष  है  ,  तब  तक  उसे  मन    का  मलीन   कहा  जाता  है  l  मैं  शूद्र  का  स्पर्श  कर के   अपने  मन  की  मलीनता   स्वच्छ  करता  हूँ   l  मैं  किसी  से  बड़ा  नहीं,  सब  मुझसे म बड़े  हैं  ,  शूद्र  भी  मुझसे  श्रेष्ठ  हैं  ,  इसी  भावना  को  स्थिर  रखने  के  लिए   शूद्र  का  सहारा  लिया  करता  हूँ  l  "  उनका  कहना  था   कि  शरीर  ही  नहीं  मन  को  भी  पवित्र  रखने  की  व्यवस्था   करनी  चाहिए  l  

24 February 2023

WISDOM ------

  1 .    जीवन  के  संघर्ष  और   आँधियों  से  दुःखी   एक  नाविक  जहाज  से   उतारकर  बाहर  आया  l  समुद्र  के  मध्य  अडिग  और  अविचलित   चट्टान   को  देखकर  उसे  कुछ  शांति  मिली   l  वह   वहां  खड़ा  होकर  चारों  ओर  देखने  लगा  l  उसने  देखा   समुद्र  की   तेज  लहरें   चारों  ओर  से  उस  चट्टान  पर   निरंतर  आघात  कर  रही  हैं   l  तो  भी   चट्टान  के  मन  में  न   रोष  है   और  न  ही  विद्वेष  है   l  संघर्ष पूर्ण   जीवन  पाकर  भी   उसे  कोई  ऊब , कोई  दुःख  नहीं  है  l  मरने  की  भी  उसने  कभी  कोई  इच्छा  नहीं  की   l  यह  देखकर  नाविक  का  ह्रदय   श्रद्धा  से  भर  गया   l  उसने  चट्टान  से  पूछा  == "  तुम  पर  चारों  ओर  से   आघात  लग  रहे  हैं  ,  फिर  भी  तुम  निराश  नहीं  हो    l  "  चट्टान  बोली  ---- " तात  !  निराशा  और  मृत्यु  दोनों  एक  ही   वस्तु  के  दो  पक्ष  हैं  l  यदि  हम  निराश  हो  गए  होते  , तो  एक  क्षण  ही  सही   दूर  से  आए  अतिथियों   को  विश्राम  देने  , उनका  स्वागत  करने  से  वंचित  रह  जाते   l  "    नाविक  को  एक  प्रेरणा  मिली  ---- जीवन  में  कितने  ही  संघर्ष  आयें  ,  अब  मैं  चट्टान  की  तरह  जिऊंगा   ताकि  भावी  पीढ़ी   और  मानवता  के  आदर्शों  की  रक्षा  हो  सके   l  

23 February 2023

WISDOM -----

   पुराण  में  कथा  है  कि    समुद्र  मंथन  में  कालकूट  विष  निकला  ,  शिवजी  ने  उसे  अपने  कंठ  में  धारण  किया  l  उसे  पीते  समय  उस  विष  की  कुछ  बुँदे  मिटटी  पर  गिर  गईं   l  वह  वही  मिटटी  थी  जिससे  ब्रह्मा जी  मनुष्यों  की  देह  बनाया  करते  थे  l  उस  विषैली  मिटटी  से  बने  शरीर  में  वही  विष  ईर्ष्या , द्वेष  की  आग  बन  कर    सबका  अहित  करता  है   और  यह  आग   पूरे  वातावरण  को  जहरीला  बना  देती  है  l    यह  दुर्गुण  ऐसा  है  जो  सब  में   चाहे  वह  सामान्य  व्यक्ति  हो  , राजा  हो , अधिकारी  हो  या  कोई  ऋषि  , तपस्वी  हो  सब  में   थोड़ी -बहुत  मात्रा  में  पाया  जाता  है   l  इस  कारण  ही  परिवार  में , समाज  में   और  पूरे  संसार  में  अशांति  है  l    पुराण  में  एक  कथा  है --- ऋषि  वशिष्ठ  और  विश्वामित्र   में   द्वेष  के  कारण  ऐसा  शत्रुता  का  भाव  उत्पन्न  हो  गया  कि   एक   दूसरे  को  देखते  ही   अपशब्द  कहने  लगते  थे  l  एक  बार  इंद्र  के  यज्ञ   में  जाने  के  लिए  वशिष्ठ  जी  आश्रम  से  बाहर  निकले  कि  उनका  सामना  विश्वामित्र  से  हो  गया  l  अब  दोनों  एक  दूसरे  पर  अपशब्दों  की  बौछार  करने  लगे  l   बात  इतनी  बढ़  गई  कि   वशिष्ठ  ने  विश्वामित्र  को  बगुला  बन  जाने  का   शाप  दिया  l  विश्वामित्र  ने  भी  उनको  ' आडी '  नामक  पक्षी  बना  दिया  l  दोनों  ही  सरोवर  के  तट  पर  घोंसला  बनाकर  रहने  लगे  लेकिन  वे  पुराना  वैर  भूले  नहीं  और  नित्य  प्रति  युद्ध  करने  लगे  l  उनके  बच्चे , सम्बन्धी  भी  युद्ध  में  शामिल  हो  गए   l  यह  युद्ध  बहुत  वर्षों  तक  चला  जिससे  वह  सरोवर  और  उसके   आस -पास  का  रमणीक  प्रदेश    घ्रणित   रूप  में  परिवर्तित  हो  गया  l  इस  दुर्दशा  को  देख   पितामह  ब्रह्मा  वहां  पधारे  और  दोनों  को  शाप मुक्त  कर  के  बहुत  डांटा - फटकारा   कि  ज्ञानी , तपस्वी  होकर  तुम   मूर्खों  जैसा  कार्य  कर  रहे  हो   तो फिर  सामान्य  जन  की  क्या  कहें   l  

22 February 2023

WISDOM ----

  कलियुग  का  साम्राज्य  कैसे  बढ़ा  ?     सतयुग  धरती  की  ओर  बढ़  रहा  था  l  यह  देखकर  कलियुग  ने  अपने  सहायकों  की  सभा  बुलाई  l  किसी  ने  कहा --- मैं  पृथ्वी   पर  जाकर  धन  का  लालच  फैला  दूंगा  ,  किसी  ने  कहा --- हम  लोगों  को  कामनाओं  में  फंसा  देंगे  l  किसी  ने  कहा --- नशे  की  लत  लगा  देंगे  l  पर  कलि  को  संतोष  नहीं  हुआ  l  एक   वृद्ध  सहायक   एक  कोने  में  बैठा  था  l  वह  बोला --- मैं  जा  कर  लोगों  में   निराशा  और  आलस  पैदा  कर  दूंगा  l  उनके  साहस  को  नष्ट  कर  दूंगा  ,  बस  !  फिर  वे  किसी  काम  के  नहीं  रहेंगे  l  वे  अन्याय , अत्याचार  के  विरुद्ध   खड़े  नहीं  होंगे  और  किसी  बुराई  को  दूर  करने  के  लिए  संघर्ष  भी  नहीं  कर  सकेंगे  l  किसी  अच्छाई  को   उपार्जित  करने  का  साहस  भी  उनमें  नहीं  होगा  l  इस  वृद्ध  सहायक  की  बात  कलि  महाराज  को  बहुत  पसंद  आई   l  उन्होंने  उसे  अपना  प्रधान  बना  लिया  l   आज  के  निराश  और  आलसी  लोग  कलि  महाराज  की   प्रजा  बने  हैं   l  सतयुग  आने  के  लिए  आवश्यक  शर्तें  ही  नहीं  हैं   l  

21 February 2023

WISDOM -----

    नगर सेठ  अथाह धनराशि  का  स्वामी  था  l  विपुल  धन -वैभव  के  होते  हुए  भी   उसके  मन  में  तनिक  भी  शांति  नहीं  थी  l  कई  रातें  बीत  जातीं  , पर  वह  बिस्तर  पर  करवटें  ही  बदलता  रहता   और  उसका  मन  बेचैन  बना  रहता  l  एक  दिन  वह  अपने  बिस्तर  पर  लेता  हुआ  था  कि  उसे   एक  मधुर  आवाज  सुनाई  पड़ी  ,  कोई  व्यक्ति  बाहर  ईश्वर  का  भजन  गा  रहा  था  l  उस  संगीत  को  सुनकर  सेठ  का  मन  ऐसा  शांत  हुआ  कि  उसे  नींद  आ  गई  l  अगले  दिन  उसने   उस  व्यक्ति  को  बुलाया  , जो  भजन  गा  रहा  था  l  वह  व्यक्ति  नगर  का  मोची  था , सेठ  ने  उसे  एक  स्वर्ण  मुद्रा  दी  l  स्वर्ण  मुद्रा  पाने  के  बाद   उस  व्यक्ति  का  भजन  कई  रातों  तक  सुनाई  नहीं  पड़ा  l  सेठ  ने  उसे  बुलवाया  तो  पता  चला   कि  उसने  जीवन  में  पहली  बार  स्वर्ण  मुद्रा  देखी   थी   और  उसे  पाने  के  बाद   उस  की  रक्षा  में  ऐसा  व्यस्त  हुआ   कि    उसकी  स्वयं  की  नींद  चली  गई   l  यह  सुनकर  सेठ  को  भान  हुआ  कि   वैभव  की  चाह  एवं  स्वार्थ  ही   सारी  समस्याओं  का  मूल  है  l  उसने  अपनी  धन -संपदा  को   परोपकार  के  कार्यों  में  उपयोग  करने  का  निश्चय  किया  l  ऐसा  करने  से  उसके  मन  को  शांति  मिली   l  

20 February 2023

WISDOM -----

   लघु -कथा ---- किसी  अरब  व्यापारी  को  पता  चला   कि  इथोपिया  के  लोगों  के  पास  चाँदी  बहुत  अधिक  है  l  उसे  वहां  जाकर  व्यापार  करने  की  सूझी   और  एक  दिन   सैकड़ों  ऊंट  प्याज  लादकर   वह  इथोपिया  के  लिए  चल  पड़ा   l  इथोपिया वासियों  ने  पहले  कभी  प्याज  नहीं  खाया  था  l  प्याज  खाकर   वे  बहुत  प्रसन्न  हुए  l  उन्होंने  सब  प्याज  खरीद  लिया   और  उसके  बराबर  सोना -चाँदी  तोल  दिया  l  व्यापारी  बहुत  प्रसन्न  हुआ  और  धनवान  बनकर  देश  लौटा  l  एक  दूसरे  व्यापारी  को  इसका  पता  चला  तो  उसने  भी  इथोपिया  जाने  की  ठानी  l  उसने  प्याज  से  भी  अच्छी  वस्तु  लहसुन  लादी   और  इथोपिया  जा  पहुंचा  l  वहां  के  लोगों  ने  लहसुन  चखा   तो  प्रसन्नता  से  नाच  उठे  l  सारा  लहसुन   उन्होंने  ले  लिया  ,  पर  बदले  में  क्या  दें  !  उन्होंने  देखा  कि   सोना -चांदी  तो  बहुत  है  ,  पर  सोने  से  भी  अच्छी  वस्तु  उनके  पास  प्याज  है  ,  इसलिए  प्याज  से  दूसरे  व्यापारी  की  बोरियां  भर  दीं   l  व्यापारी  खीज  उठा , पर  बेचारा  करता  भी  क्या  l  चुपचाप  प्याज  लेकर  घर  लौट  आया  l  वह  व्यापारी  समझ  नहीं  पा  रहा  था  कि   अमूल्यता    की  कसौटी   क्या  है  ?  उसे  लगा  कि   यह  सब  अपने -अपने  मन  की  मान्यता  और  प्रसन्नता  के  खेल  हैं  l 

19 February 2023

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----' इस  स्रष्टि  में   मात्र  कर्मफल  का  सिद्धांत  ही  अकाट्य  है  l  स्रष्टि  में  कभी  किसी  के  साथ  पक्षपात  नहीं  होता  l   व्यक्ति  अपने  कर्मों  से   बँधा  है  , कर्म  को  काल  नियंत्रित  करता  है  l  लेकिन  जो   कर्म  और  काल  दोनों  को  नियंत्रित  करता  है  ,  वह  महाकाल  है  l "  आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं ----- "ऋणानुबंधन   ही  वह  कारण  है  ,  जिसके  कारण  सभी  मनुष्य  इस  संसार  में  बँधे   हुए  हैं  l  जिस  व्यक्ति  के  प्रति  हमारा  ऋण  होता  है  ,  हमें  उसी    व्यक्ति  को   वह  ऋण  चुकाना  पड़ता  है  ,  फिर  चाहे  वह  इस  जन्म  में  हो   या  अगले  जन्म  में  l  कर्मफल  को  पूरा  भोगे  बिना  प्रकृति  हमें  आगे  बढ़ने  नहीं  देती   और  इसे  भोगने  के  लिए  किसी  न  किसी  को  निमित्त  बनाकर   हमारे  समक्ष  प्रस्तुत  कर  देती  है  l   "     कर्मफल  से  कोई  नहीं  बचा  है ,  चाहे  फिर  वह  स्वयं  भगवान  ही  क्यों  न  हों  ल  भगवान  श्रीकृष्ण  जब  रामावतार  के  रूप  में  थे  , तब  उन्होंने  छिपकर   बालि  पर  तीर  चलाकर  उसे  मारा  था  l  इस  कर्म  के  पीछे  सुग्रीव  का  हित  था  , लेकिन   जब  उन्होंने  श्रीकृष्ण  के  रूप  में  अवतार  लिया  तो  इस  कर्म  का  फल  भोगना  पड़ा  l   उसी  बालि  ने   ' जरा '  नाम  के  बहेलिये   के  रूप  में  छिपकर    उनके  ऊपर  यह  समझकर  तीर  चलाया  था   कि   जंगल  में  वहां  कोई  जानवर  है  l   इस  तरह  भगवान  श्रीकृष्ण  का  भोग  पूरा  हुआ   l  "  आचार्य श्री  कहते  हैं --- 'प्रकृति  के  इस  रहस्य  को  जो  व्यक्ति  समझता  है  , वह  कभी  अपने  जीवन  से  शिकायत  नहीं  करता  , बल्कि  स्वयं  को  शुभ  कर्मों  की  ओर  प्रेरित  करता  है  l   वह  अपने   दुःख , कष्ट  आदि  के  लिए  दूसरों  पर  दोषारोपण  नहीं  करता  ,  और  शुभ  कर्मों  द्वारा   स्वयं  के  जीवन  को  प्रकाशित  करने  का  प्रयास  करता  है  l  

18 February 2023

WISDOM ---

   विनोबा  भावे  की  एक  पुस्तक  है --- ' चिरयौवन  की  साधना  '  -- इसमें  एक  श्लोक  की  व्याख्या  करते  हुए  वे    हनुमान जी  को  चिरयुवा   कहते  हैं  l  अनीति  के  विरुद्ध  संघर्ष  के  कारण   यह  संज्ञा  उनने  दी  है  l  वे  कहते  हैं  कि   मात्र  हनुमान जी  ही  चिरयुवा  हैं   और  कोई  नहीं  ,  वे  बल  के  देवता  हैं   l  वे  लिखते  हैं ---"  कुम्भकरण  और  रावण  भी  बड़े  बलशाली  थे  ,  पर  दोनों  ने  अपने  बल  को  कामनाओं  की  पूर्ति  के  लिए   प्रयुक्त  किया  l    बाली  भी   अत्यंत  बलशाली  था  , उसने  रावण  तक  को  परस्त  कर  दिया  था  , मप्र  कामवासना  के  वशीभूत  हो  रावण  और  बाली  दोनों  का  ही  बल  व्यर्थ  हो  गया   l  लेकिन  हनुमान जी  ने   अपने  निष्काम  बल  से  सारी  लंका  उजाड़  दी   और  सुग्रीव  के  कहने  पर  श्रीराम  से  बाली  का  वध  कराया  l  "  भगवान  श्रीराम  के  प्रति  उनका  समर्पण   और  निष्काम  भाव  के  कारण  ही   उनमे  वह  शक्ति  थी   कि  समुद्र  पार  कर  सके  और  लंका  को  तहस -नहस  कर  दिया  l   आज  के  युवाओं  के  लिए  वे  प्रेरणा  हैं  l  श्रीमद् भगवद्गीता  में  भगवान  ने  कहा  है  ---आसुरी  बल  की  तुलना  में  भगवत्ता  का  बल  ज्यादा  है   l  जब  यह  बल  दूसरों  की  रक्षा  में  ,  समाज  के  पीड़ितों  ,  आपदा  से  त्रस्त  लोगों  को  राहत  देने  में  नियोजित  होता  है   तब  वहां  बल -सामर्थ्य  के  रूप  में  परमात्मा  स्वयं  विद्यमान  हैं  l  

17 February 2023

WISDOM ----

   आंधी  ने  शीतल  बयार  से  कहा --- " अरी  बहन !  ये  तुम  क्या  धीरे -धीरे  बहती  हो   l  मुझे  देखो न,  मैं  जब  आवेग  के  साथ  चलती  हूँ   तो  पेड़ -पौधे  काँपते  हैं  , बड़े -बड़े  भवन  थरथराते  हैं , सब  अपने  बचाव  में   इधर -उधर   भागते  हैं  l  जिन्दगी  ऐसे  जीनी  चाहिए  जिसका  सब  लोग  लोहा  माने  और  हमसे   डरें  l "   शीतल  बयार  ने  नम्रता  से  उत्तर  दिया ---- " आँधी  दीदी  !  मुझे  तो  इस  धीमी  चाल  में  ही  आनंद  आता  है  l  इसमें  किसी  को  कष्ट  नहीं  होता   और  मैं  जिसको  छू  कर  जाती  हूँ , उसके  चेहरे  पर  एक  शांति  की  रेखा  छोडती  हुई  जाती  हूँ  l  दूसरों  के  सुख  में  ही  मेरे  जीवन  का  सुख  है  l  "    आवेगपूर्ण  जीवन  आँधी  की  तरह   स्वयं  और  दूसरों  के  कष्ट  का  कारण  बनता  है  l  

WISDOM -----

   श्रीमद् भगवद्गीता  में  भगवान  ने  आसुरी  प्रवृत्ति  के  लोगों  के  लक्षणों  की  चर्चा  करते  हुए  कहते  हैं  की  आसुरी  प्रवृत्ति  वाले  व्यक्ति  अहंकारी , कामी  और  क्रोधी  होते  हैं  ,  वे  स्वयं  को  ईश्वर  समझते  हैं   इसलिए  उनका  प्रकृति  के  कर्मफल  विधान   में  जरा  भी  भरोसा  नहीं  होता   जैसे  हिरण्यकशिपु   स्वयं  को  नारायण  समझने  लगा  था  l   आसुरी  वृत्ति  को  मनुष्य  की  चेतना  विध्वंसक  होती  है  , अपने  सभी  प्रतिस्पर्धी  उन्हें  अपने  दुश्मन  नजर  आते  हैं  , अहंकार  से  उन्मत्त  होकर  दूसरों  का  जीवन  नष्ट  करते  हैं  l  l  श्री  भगवान  कहते  हैं --आसुरी  प्रवृत्ति  वाला  व्यक्ति  करता  सब  गलत  है , उसकी  चेतना  कपट  और  आडम्बर  करना  ही  जानती  है  ,  लेकिन  अपने  मन  में  वह  यही  मान  कर  बैठता  है   कि  वो  बिलकुल  सही  है    l      पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  -- जो  लोग  बुरे  पथ  पर  चलते  हैं ,  उनकी  अंतरात्मा  उन्हें  कचोटती  है   तो  वे  कुतर्कों  के  द्वारा  उसे  भी  धोखा  देने  और  चुप  कराने  की  कोशिश  करते  हैं  l  दान  आदि  शुभ  कर्म  भी   उनकी  अहंकार  पूर्ति  का  माध्यम  हैं  l   भगवान  कहते  है  कि  ऐसे  लोग  अपने  जीवन  को  ही  नरक  बना  लेते  हैं  l  रावण , दुर्योधन , तैमूरलंग , सिकंदर   ऐसे  ही  अहंकारी  थे  l  

16 February 2023

WISDOM ----

     संत  कबीर  अध्यात्म  के  मूल  तत्वों   की  बातें  करते  थे  और  किसी  एक  धर्म  का  प्रचार  नहीं  करते  थे  l  उनके  उपदेशों  में  चित्त -शुद्धि , लोक -कल्याण , आत्मपरिष्कार  , सामाजिक  सद्भाव  , कुरीति  उन्मूलन  जैसे  विषय  रहते  थे  l  किसी  ने  उनके  विरुद्ध   बादशाह  सिकंदर लोदी  से  शिकायत  कर  दी  l  बादशाह  ने  उनको  बेड़ियों  से  जकड़कर   गंगा  में  डुबो  देने  का  आदेश  दिया   और  कहा  कि  यदि  कबीर   अपनी  शिक्षाएं  बदल  दें   तो  उन्हें  माफ़  किया  जा  सकता  है  l   कबीर  ने   डूब  जाने  का  निश्चय    किया  ,  पर  उन्हें  डुबाने  वाली  जंजीरें   खुद  खुल  गईं  और  वे  किनारे  आ  लगे  l  बादशाह  को  जब  ये  पता  चला   तो  उसने  लज्जित  होकर   संत  कबीर  से  क्षमा  मांगी  l  यदि  उद्देश्य  ऊँचे  हों  तो  मनुष्य  की  रक्षा  करने  स्वयं  भगवान  आते  हैं   l  

15 February 2023

WISDOM ------

     पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- " जब  स्रष्टि  का  स्रजेता   शाश्वत  ईश्वर   स्वयं  को  श्रेष्ठ  सिद्ध  करने  का   कभी  कोई  प्रयास  नहीं  करता  , तब  हम  मरणधर्मा   होते  हुए  स्वयं  को   श्रेष्ठ  मानने   व  सिद्ध  करने  का  उपाय   किस  आधार  पर  कर  सकते  हैं   l  हमें  यह  सदैव  स्मरण  रखना  चाहिए   कि  ईश्वर  के  सिवाय   अन्य  कुछ  भी   न  तो  श्रेष्ठ  है   और  न  स्थायी  l  जिन  उपलब्धियों  के  कारण   मनुष्य  आज  गर्वोन्मत   हो  रहा  है  , उन्हें  नष्ट  होने  में  क्षणमात्र  भी  नहीं  लगेगा  l    इसलिए  व्यक्ति  को   सदैव  विनम्र  और   और  शालीन  बने  रहना  चाहिए  l  मनुष्य  को  जो  कुछ  भी  विशेषता  प्राप्त  हो   उसके  आधार  स्वयं  को   श्रेष्ठ  सिद्ध  करने  के  बजाय    इसका  सदुपयोग   स्वयं  के  विकास  में  और  दूसरों  के  कल्याण  के  लिए  करना  चाहिए   l  "

14 February 2023

WISDOM ----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " मन , वचन  और  कर्म  में  एकरूपता  को  सत्य  कहते  हैं  l  यह  सत्य  भी  समय  और  परिस्थिति  को  देखते  हुए   ही   बोलने  का  निर्देश  है  l   कठोर  सत्य  को  न  बोलने  का  निर्देश  है   l  यदि  अंधे  को  अँधा   और  लँगड़े  को  लंगड़ा  कह  दिया  जाए  , तो  यह  सत्य  होते  हुए  भी  अपमानजनक  संबोधन  है  l  इसे  गाली  समझा  जाता  है  l  अत:  ऐसे  वचनों  का   शास्त्रों  में  निषेध  किया  गया  है  l "  एक  कथा  है ---- एक  बार  एक  कसाई  अपनी  बूढ़ी  गाय  को  ढूंढते  हुए   एक  निर्जन  स्थान  से  गुजरा  l  वहां  एक  ब्राह्मण  वेद  पाठ  कर  रहा  था  l  कसाई  ने  उससे  अपनी  गाय  के  बारे  में  पूछा  ,  तो  उसने  वस्तुस्थिति  को  भाँपते  हुए   उसका  गोलमाल  उत्तर  दिया   और  कहा --- ' जिसने  देखा  वह  बोलती  नहीं    और  जो  बोलती  है , उसने  देखा  नहीं  l  इससे  एक  साथ  दो  प्रयोजन  सधे  l  गाय  की  प्राण रक्षा  हो  गई    जो  सत्य  बोलने  से  शायद  नहीं  हो  पाती  और  दूसरा    उसका  मिथ्या  न  बोलने  के   संकल्प  का  भी   निर्वाह  हो  गया   l  

13 February 2023

WISDOM -----

   1.  दो  बीज  धरती  को  गोद  में  जा  पड़े  l  मिटटी  ने  उन्हें  ढँक  दिया  l  दोनों  रात  में  सुख  की  नींद  सोए  l  प्रात:काल  दोनों  जगे   तो  एक  के  अंकुर  फूट  गए  , वह  ऊपर  उठने  लगा  l  यह  देख  छोटा  बीज  बोला  --- " भैया  ! वहां  बहुत  भय  है  , लोग  तुझे  रौंद  डालेंगे  , मार  डालेंगे  l " बीज  सब  सुनता  रहा  और  चुपचाप  ऊपर  उठता  रहा  l  धीरे -धीरे  धरती  की  परत  पार  कर   ऊपर  निकल  आया  l  सूर्य  देवता  ने   धूप  स्नान  कराया   और  पवन  देव  ने  पंखा   डुलाया  l  वर्षा  आई  और  शीतल  जल  पिला  गई  , किसान  आया  और  बिस्तर  लगाकर   चला  गया  l  बीज  बढ़ता  ही  गया  l  लहलहाता , फूलता -फलता  हुआ  बीज   एक  दिन  परिपक्व  अवस्था  तक  जा  पहुंचा  l  जब  वह  इस  संसार  से  विदा  हुआ   तो  अपने  जैसे  असंख्य  बीज   छोड़कर   हँसता  हुआ   और  आत्म संतोष   अनुभव  करता  विदा  हो  गया  l  मिटटी  के  अन्दर  दबा  बीज   यह  देखकर  पछता  रहा  था  कि --भय  और  संकीर्णता  के  कारण   मैं  जहाँ  था  , वहीँ  पड़ा  रहा   और  मेरा  भाई  असंख्य  गुनी  समृद्धि   पा  गया  l  

2 .  एक  मंदिर  बन  रहा  था  l  देश  भर  से  आए  शिल्पी   पत्थरों  पर  छेनी  से  काम  कर  रहे  थे  l  कारीगरों  के  मुखिया  ने  एक  पत्थर  को  बेकार  समझकर  फेंक  दिया  l  रास्ते  में  पड़ा  वह  पत्थर   राहगीरों  के  पैर  की  ठोकरें  खाता  रहा   और  स्वयं  को  अभागा  समझता  रहा  l   एक  दिन  एक  राज कलाकार  उधर  से  गुजरा  , उसने  वह  बेकार  पत्थर  उठाया  और   छेनी , हथोड़े  की  मदद  से  एक  सुन्दर  मूर्ति  तैयार  कर  दी   l  सबने  उसकी  बहुत  प्रशंसा  की  l  कलाकार  बोला --- " मैं  तो  औरों  की  तरह  ही  हूँ  l  जो  पत्थर  में  से  प्रकट  किया , वह  था  तो  पत्थर  के   अंदर  ही  l  मैंने  तो  मात्र  उसे  पहचाना  और  उकारा  है  l "    हम  सबके  भीतर  भी   महानतम , श्रेष्ठतम  बनने  की   संभावनाएं  हैं  l  कभी -कभी   जीवन  को  गढ़ने  वाला   कोई  कलाकार , गुरु , मार्गदर्शक  मिल  जाता  है   तो  हम  क्या  से  क्या  बन  जाते  हैं  l  

12 February 2023

WISDOM -----

   लघु -कथा ----   एक  बार  बादशाह  सुल्तान  सैर  को  निकले   l  उन्हें  शिकार  अत्यंत  प्रिय  था  l   संध्या  के  समय  वे  सूर्यास्त  का  द्रश्य  देख  रहे  थे  कि  उन्हें  लगा  कि  टीले  पर  कोई  जानवर  बैठा  है   तो  उन्होंने  तुरंत  निशाना  साधकर   उस  पर  तीर  छोड़ा  l  तीर  लगते  ही  एक  जोर  की  चीख  सुनाई  दी  l  चीख  सुनकर  सुल्तान  काँप  उठे  क्योंकि  यह  मनुष्य  की  चीख  थी  l  उन्होंने  पास  जाकर  देखा   तो  एक  बालक  तीर  से  घायल  होकर  पीड़ा  से  छटपटा  रहा  है  l  कुछ  ही  समय  में  बालक  का   मजदूर   पिता   भी  आ  गया  l  सुल्तान  ने  बालक  का  शीघ्र  इलाज  कराया  l  और   दो   थाल   बालक  के  पिता  के  लिए  मंगाए  l  एक  में  अशर्फियाँ  और  दूसरे  में  तलवार  रखी  थी  l  सुल्तान  मजदुर  से  बोले --- " मैंने  जानवर  समझकर  तीर   छोड़ा  था  , परन्तु  गलती  से  वह  तुम्हारे  पुत्र  को  लगा  l  तुम  चाहो  तो  अशर्फी  लेकर  इस  भूल  को  माफ़  कर  दो  ,  या  फिर  मेरा  सिर  तलवार  से  कलम  कर  दो  l  सुल्तान  की  न्यायप्रियता  देखकर  मजदूर  दंग  रह  गया  l  उसने  कहा --- "हुजूर  !  मुझे  दोनों  में  से  कुछ  नहीं  चाहिए  l  आपसे  निवेदन  है  कि   निरीह  प्राणियों  का  वध  करना  छोड़  दें  l "  बादशाह  ने  उस  दिन  के  बाद  शिकार  करना  छोड़  दिया  l  

11 February 2023

WISDOM -----

   श्रीमद् भगवद्गीता   में  भगवान  कहते  हैं कि  आसुरी  स्वाभाव  वाले  व्यक्तियों  में   बाहर  और  भीतर  की  पवित्रता  का  तो  अभाव  होता  ही  है  , इसके  साथ  ही  वे  निष्कपट , हितकर  और  सत्य  भाषण   को  भी  करने  से  विमुख  होते  हैं  l  उनमे  शुचिता , श्रेष्ठ  आचरण  तथा  सत्य  भाषण  का  सर्वथा  अभाव  होता  है  l   आसुरी  प्रकृति  वाले  व्यक्ति   उन्ही  कार्यों  को  करते  हैं  जिनसे  उन्हें  सुख  मिलता  है , उनका  स्वार्थ  साधता  है  l  '  महाभारत  में  दुर्योधन  का  चरित्र   प्रसिद्ध  है  l    दुर्योधन    और  युधिष्ठिर  दोनों  सहपाठी  थे ,  दोनों  को  पढ़ाने  वाले  आचार्य  भी   एक  ही  थे  l  एक  जैसा  परिवेश मिलने  पर  भी   युधिष्ठिर  धर्म  के  प्रतीक  हैं  , सदा  श्रेष्ठ  आचरण  करते  हैं   जबकि  दुर्योधन  सदा  अधर्म ,  अनीति   के  पथ  पर  चलता  और  दुराचरण    करता  दीखता  है  l   दुर्योधन  को  पितामह  भीष्म , , द्रोणाचार्य , कृपाचार्य  , माता  गांधारी  और  महात्मा  विदुर  का  साथ  मिला   किन्तु  उसकी  अपनी  कुटिल   प्रवृतियां  और  जटिल  संस्कार   उसे  कुमार्ग  पर  धकेलती  रहीं  , वह  सारा  जीवन  षड्यंत्र  रचता  रहा   l  अंत  में  भगवान  कृष्ण   उसे  समझाने  गए  और   उससे  धर्म  व  नीति  की  बात   कही , द्वेष  का  पथ  छोड़कर   प्रेम  और  सद्भाव  से  चलने  का  पथ  सुझाया  l  प्रत्युत्तर  में  दुर्योधन  ने  कहा ---- जानामि  धर्म  न  च  में  प्रवृत्ति  ,  जानामि   अधर्म  न  च  में  निवृत्ति  l  '   "  आप  जो  कह  रहे  हैं  ,  वह  धर्म  मैं  जानता  हूँ  ,  लेकिन  उसमे  मेरी  प्रवृत्ति  नहीं  है  l  आप  जिसे  अधर्म  कहते  हैं  ,  उसे  भी  मैं  जानता  हूँ  ,  लेकिन  उसे  भी  मैं  छोड़  नहीं  पाता  l    आसुरी  प्रवृत्ति  हमेशा  दूसरों   को  दोष  देते  हैं , दुर्योधन  भगवान  से  कहता  है ---" लोग  तो  आपको  अंत: करण  का  स्वामी , हर्षिकेश   अन्तर्यामी  कहते  हैं  l  इसलिए   आप  ही  तो  मेरे   ह्रदय  में  बैठ  कर   जैसा  कराते  हो , वैसा  कर  लेता  हूँ  l  "  यह  सुनकर  भगवान  हँसने  लगे  l   दुर्बुद्धि  उस  पर  ऐसा  हावी  थी  कि  वह  भगवान  को  ही  बन्दी  बनाने  चला  l 

10 February 2023

WISDOM

   एक  बार  की  बात  है  एक  हिन्दू  और  एक  मुसलमान  साथ -साथ  जा  रहे  थे   l  रास्ते  में  नदी  पड़ी  l  हिन्दू  को  राम -नाम  पर  और  मुसलमान  को  खुदा  पर  विश्वास  था  l  सो  वे  दोनों  विश्वासपूर्वक   अपने -अपने  इष्ट  का  नाम  लेते  हुए  पार  हो  गए   l  एक  तार्किक  यह  द्रश्य  देख  रहा  था  l  उसने  सोचा  राम -खुदा  का  मिश्रण  कर  के  तैरा   जाए   तो  आधे  समय  में  ही   पार  हुआ  जा  सकता  है  l  श्रद्धा  के  अभाव  में   उसका  नाम -जप  व्यर्थ  गया   और  वह  पानी  में  डूब  गया  l  नाम  की  नहीं  श्रद्धा  की  महत्ता  है  l 

9 February 2023

WISDOM -------

  पुराण  में  अनेक  कथाएं  हैं  जिनमे  यह   बताया  गया  है  कि   भगवान  को  छल , कपट , अहंकार    पसंद  नहीं  है  l   चाहे  कोई  भी  हो , वे  उसके  अहंकार   का  अंत  करते  हैं  l  हर  अहंकारी  इस  सत्य  को  जानता  भी  है   लेकिन  वह  इसे  छोड़  नहीं  पाता  l  महाभारत  की  एक  कथा  है ----  महाभारत  का  युद्ध  आरम्भ  होने  वाला  था  l  पांडवों  के  शिविर  में  उनके  पक्ष  के  सभी  महावीर  उपस्थित  थे  l  शिविर  में  चर्चा  होने  लगी  कि  कौन  महावीर   इस  महाभारत  के  महासमर  को  कितने  दिन  में  समाप्त  कर  सकता  है  L   युधिष्ठिर  ने  कहा --- पितामह  भीष्म   इसे  एक  महीने  में , द्रोणाचार्य   पंद्रह  दिनों  में   और  कर्ण  ने  तो  केवल  छह  दिनों  में  युद्ध  को  समाप्त  करने  की  बात  कही  है  l "  यह  सुनकर  अर्जुन  बोले ---- "वैसे  तो  युद्ध  के  संबंध  में  जय , पराजय  की  कोई  पहले  से  कोई  घोषणा  नहीं  कर  सकता ,  फिर  भी  मैं  आपको  आश्वस्त  करता  हूँ  कि  मैं  स्वयं  इस  युद्ध  को   एकम दिन  में  समाप्त  करने  में  समर्थ  हूँ   l "  अर्जुन  की  यह  बात  सुनकर   भीम  के  पौत्र   यानि  उसके  पुत्र  घटोत्कच  का  पुत्र  बर्बरीक   जो  एक  महा तपस्वी  और  परमवीर   था , उसे  इसका  अहंकार  भी  था , वह  बोला --- " मैं  आप  सबको  विश्वास  दिलाता  हूँ  कि  मैं  इस  युद्ध  को   केवल  एक  मुहूर्त  में  समाप्त  कर  सकता  हूँ   l  "  यह  सुनकर  सबको  बहुत  आश्चर्य  हुआ  l  श्रीकृष्ण  ने  ऊ८श्र्श्र  कहा --- " वत्स  !  तुम  भीष्म ,  द्रोणाचार्य , कर्ण  आदि  महारथियों  से  सुरक्षित  सेना  को    किस  विधि  से   एक  मुहूर्त  में  समाप्त  कर  पाओगे  ? "  इस  पर  बर्बरीक  ने  कहा ---  " इस  प्रश्न  का  उत्तर  मैं  कल  युद्ध भूमि  में  दूंगा  l "  दूसरे  दिन  प्रात : जब  दोनों  सेनाएं  युद्ध  भूमि  में  खड़ी  हुईं  तब   बर्बरीक  ने   अपने  धनुष  पर  बाण  चढ़ाया   और  उस  बाण  को  लाल  रंग  की  भस्म  में  रंग  दिया   और  बाण  को  प प्रत्यंचा  चढ़ाकर  छोड़  दिया  l  बाण  से  जो  भस्म   उड़ी   वह  दोनों  सेनाओं  के  मर्मस्थल  पर  गिरी  l  केवल  पांच  पांडव , , कृपाचार्य  और  अश्वत्थामा  के  शरीर  से  उसका  स्पर्श  नहीं  हुआ  l  अब  बर्बरीक  ने  कहा --- इस  क्रिया  से  मैंने  मरने  वालों  के  मर्मस्थल  का   निरीक्षण  कर  लिया  है  l  अब  बस , दो  घड़ी  में  मैं  इन्हें  मार  गिरता  हूँ  l "  यह  सुनकर  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  तुरंत  अपने  सुदर्शन  चक्र   से   उसका  मस्तक  काट  दिया  l  इससे  भीम , घटोत्कच  आदि  सबको  बहुत  दुःख  व  आश्चर्य  हुआ  l   तब  वहां  ब्रह्माजी  आए  और  उन्होंने  कहा --- " बर्बरीक  पूर्वजन्म  में  यक्ष  था   और  इसने  अहंकार वश  कहा  था   कि  किसी  देवता  को    पृथ्वी   पर  अवतार  लेने  की  जरुरत  नहीं  , यह  कार्य  मैं  अकेले  ही  कर  सकता  हूँ   , अवतार  का  प्रयोजन  जाने  बिना  उसने  अभिमानवश  यह  बात  कही  l  "  श्रीकृष्ण  ने   उसका  मस्तक  काटकर  उसके  अभिमान  का  अंत  किया   l   श्रीकृष्ण  ने  वहां  उपस्थित  सिद्ध चंडिका   से  कहा --- " आप  इसके  मस्तक  पर  अमृत सिंचन  करें  ताकि  यह  अमर  हो  जाये  l  ' अमृत सिंचन  से  जीवित  होने  पर  बर्बरीक  के  मस्तक  ने  भगवान  श्रीकृष्ण  से  निवेदन  किया  कि  वह  इस  महायुद्ध  को  देखना  चाहता  है   l  तब  भगवान  ने  उसके  मस्तक  को  पर्वत शिखर  पर   स्थापित  कर  दिया  l  युद्ध  की  समाप्ति  पर   जब  भीम , अर्जुन  आदि  को  अपनी  वीरता  का  अभिमान  हुआ   तो  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  कहा --- ' क्यों  न  हम  बर्बरीक  से  पूछ  लें  l ' जब  सब  इस  प्रश्न  को  लेकर  बर्बरीक  के  पास  गए   तो  उसने  कहा --- " आप  सब  बिना  किसी  कारण  अभिमान  कर  रहे  हैं  l  मैंने  यही  देखा  कि  इस  महायुद्ध  में  सभी  योद्धा   स्वयं  महाकाल  मके  द्वारा  मारे  गए  l  श्रीकृष्ण  के  रूप  में  आप  सब  उन्हें  पहचानों  और  अपने  अभिमान  को  दूर  कर  लो   क्योंकि  अभिमान  कभी  भी  शुभ  और  सुखद  नहीं  होता  l  

8 February 2023

WISDOM ------

   महर्षि  शाल्विन  की  प्रथम  पत्नी  श्लेषा   और  दूसरी  पत्नी   इतरा , भिन्न -भिन्न  जातियों  की  थीं  l  दोनों  में  परस्पर  अत्यंत  प्रेम  था  l  संयोगवश  दोनों  ने  साथ -साथ  पुत्र  को  जन्म  दिया  l  महर्षि  दोनों  पुत्रों  में  कोई  भेद  नहीं  करते  थे  ,  लेकिन  एक  दिन  महर्षि  ने   इतरा  के  पुत्र  ऐतरेय  को  यज्ञशाला  में  आने  से  रोक  दिया  ,  जबकि  श्लेषा  के  पुत्र  को  आने  दिया  l  उसको  ऐसा  लगा  कि  जाति  भिन्नता  के  कारण  मुझसे  भेद   रखा  गया  l  उसने  अपनी  माँ  से  पूछा  --- " अब  मैं  यज्ञ  कहाँ  करूँ  ? " माँ  बोली --- "पुत्र  !  तू  अपनी  आत्मा  को  गुरु  मान और  धरती  को  यज्ञ  स्थल  मानकर  अपनी  उपासना साधना  आरम्भ  कर  l  " बालक  ने  माँ  के  बताए  मार्ग  का  अनुसरण  किया   और    साधना  कर  योगी  बन  गया  l   जब  वह  घर  लौटा  तो  दोनों  ही  माताओं  ने  उसका  स्वागत  किया  l  उसके  पिता  ने  उसके  द्वारा  रचित  पांडुलिपियों  को  देखा  तो  उसे  ह्रदय  से  लगा  लिया   l  वे  पांडुलिपियाँ  वेदों  की  विशुद्धतम  व्याख्या  थीं  ,  जो  ऐतरेय  ब्राह्मण  के  नाम  से   प्रसिद्ध   हुईं   l  ऐतरेय  की  इस  उपलब्धि  ने   सिद्ध  कर  दिया  कि   व्यक्ति  जन्म  से  नहीं  कर्म  से   ब्राह्मण  बनता  है  l  

7 February 2023

लघु -कथा ----

   एक  बार  एक  नाव  में   एक    गणितज्ञ   यात्रा  कर  रहा  था   l  उस  नाव  में   वह  और  मांझी  दो  ही  सवार  थे  l  अपनी  विद्वता  की  धाक  जमाने  के  लिए   गणितज्ञ   ने  माँझी  से  पूछा --- " तुमने  कभी  गणित  पढ़ा  है  ? "  माँझी  ने  कहा --- "  नहीं , मैंने  कभी   नहीं  पढ़ा  l "  गणितज्ञ  बोला  --- " तब  तो  तुम्हारी  चार  आने  जिदगी  बेकार  चली  गई  l "  उसने  फिर  पूछा  --- "  तुमने  भूगोल  तो  पढ़ा  ही  होगा   ?  "   माँझी  ने  कहा --- " नहीं  बाबूजी  ! भूगोल  का  क्या  मतलब , मैं  ये  भी  नहीं  जनता  l "  सुनकर  गणितज्ञ  बोले ---- ' तब  तो  तुम्हारी  और  चार  आना  जिन्दगी  बेकार  चली  गई  l  "  माँझी  चुप  रहा , क्या  कहता  !   कुछ  देर  बाद  देव  योग  से  बड़ा  जोर  का  तूफ़ान  आया   और  नाव  लड़खड़ाने  लगी  l  नाव  सँभालते  हुए  नाविक  ने  गणितज्ञ  से  पूछा -- " बाबूजी  !  आपको  तैरना  तो  आता  होगा   "  गणितज्ञ  घबराकर  बोला --- " नहीं  मैंने  तो  कभी  तैरना  नहीं   सीखा  l  "  अब  नाविक  बोला --- "  गणित  और  भूगोल  न  जानने  के  कारण  भले  ही  मेरी  आठ  आना  जिन्दगी  बेकार  चली  गई  ,  परन्तु  तैरना  नहीं  जानने  के  कारण  तो  आपकी  पूरी  जिन्दगी  ही  जा  रही  है  l  नाव  का  पार   लगना   मुश्किल  है  l  आप  तैरना  जानते  तो  बच  जाते  l "  अब  गणितज्ञ   ने  महसूस  किया  कि कि  जो  समय  पर  काम  आ  जाए  , वही  सच्चा  ज्ञान  है  l   ज्ञान  की  उपयोगिता  प्रत्येक  व्यक्ति  के  लिए  परिस्थिति  व  समय  के  अनुसार  ही   तय   होती  है  l 

WISDOM -----

   विधाता  ने  स्रष्टि  की  रचना  की   l  समस्त  प्राणियों  में  केवल  मनुष्य   के  पास  ही  वह  शक्ति  है   कि  वह  स्वयं  का  परिष्कार  कर  के  चेतना  के  उच्च  शिखरों  तक  पहुँच  सकता  है   लेकिन  लोभ , लालच , ईर्ष्या , द्वेष , कामना , वासना , स्वार्थ , महत्वाकांक्षा  की  जंजीरों  में  बंधा  मनुष्य    बहुत  विवश  है  !  रावण  महा ज्ञानी , विद्वान् , तपस्वी , परम  शिव  भक्त  था  , उसके  पास  तो  सोने  की  लंका  थी  लेकिन  सीता जी  को  पाने  के  लिए  ' बेचारा  ' हाथ  में  कटोरा  लेकर  भिखारी  बन  गया   और  वह  भी  वेश  बदलकर , छुपते -छुपाते   कोई  देख  न  ले  l  दुर्योधन  हस्तिनापुर  का  युवराज  था  , कोई  कमी  नहीं  थी   लेकिन  ईर्ष्यालु  था , पांडवों  का  सुख  नहीं  देख  सकता  था   लेकिन  महत्वाकांक्षा  इतनी  कि   जब  सब  कौरव   युद्ध  में  मारे  जा  चुके , वह  अकेला  बचा    तब  वस्त्रहीन  होकर  अपनी  माँ  के  सामने  जा  रहा  था   ताकि  माता  गांधारी  के  तप  का  एक  अंश  उसे  मिल  जाए  और  उसका  शरीर  वज्र  का  हो  जाये   l  इतिहास  में  ऐसे  अनेकों  उदाहरण  हैं   l     संसार    ने  अनेकों  युद्ध , प्राकृतिक  आपदाएं  , उतार -चढाव  सब  देखा  ,  लेकिन  शांति  से  जीना  नहीं  सीखा   l  ईश्वर  ने  मनुष्य  को  चयन  की  स्वतंत्रता  दी  है  , मनुष्य  को  स्वयं  निर्णय  लेना  है   कि   उसे  असुर  बनना  है  या  चेतना  का  परिष्कार  कर  देव मानव  बनने  की  ओर  अग्रसर  होना  है  l  

6 February 2023

लघु -कथा -----

   प्रचेता  एक  ऋषि  के  पुत्र  थे   और  स्वयं  भी  बड़े  तपस्वी  थे  l  लेकिन  वे  बहुत  क्रोधी  थे , अपने  क्रोध  पर  उनका  नियंत्रण  न  था  , अपनी  इस  दुर्बलता   के  आगे  विवश  थे  l    एक  बार  वे   एक  बहुत  संकरे  रास्ते  से  गुजर  रहे  थे  , उसी  समय  दूसरी  ओर  से  कल्याणपाद   नाम  का  एक  व्यक्ति  आ  गया  l  दोनों  एक  दूसरे  के  सामने  थे  l   पथ  संकरा  होने  के  कारण   एक  के  राह  छोड़े  बिना  , दूसरा  जा  नहीं  सकता  था  ,  लेकिन  कोई  भी  राह  छोड़ने  को  तैयार  नहीं  था  l   दोनों  ने  इसे  अपनी  प्रतिष्ठा  का  प्रश्न  बना  लिया  , कोई  भी  झुकने  को  तैयार  न  था  l  प्रचेता  ऋषि  को  क्रोध  आ  गया  ,  वे  तपस्वी  तो  थे  ही , लेकिन  क्रोध  के  कारण  बिना  परिणाम  सोचे  उन्होंने  कल्याणपाद   को  श्राप  दे  दिया  कि  वह  राक्षस  हो  जाये   l  तप  के  प्रभाव  से   कल्याणपाद  राक्षस  बन  गया   और  प्रचेता  को  ही  खा  गया  l  

WISDOM -----

  आज  संसार  में  जितनी  भी  समस्याएं  हैं  , उनके  मुख्य  दो  ही  कारण  हैं ---- पर्यावरण   प्रदूषण  और  मानसिक    प्रदूषण    l   पर्यावरण   प्रदूषण    के  परिणाम  तो    प्राकृतिक  आपदाओं    के  रूप  में  संसार  के  सामने  हैं    लेकिन  फिर  भी  मनुष्य  सुधरता  नहीं  है  l  इसका  कारण  यही  है  कि  लोगों  की  मानसिकता  प्रदूषित   हो  गई  है   l   तृष्णा  , कामना , लोभ , लालच   आदि  बुराइयाँ  अपने  चरम  रूप  में  मनुष्य  पर  हावी  हैं   l  वैज्ञानिक  को  तो  ईश्वर  ने   विशेष  बुद्धि  दी  है  कि  वह  तरह -तरह  के  अविष्कार  कर  सके   लेकिन  इन  आविष्कारों  को  लोगों  तक  पहुँचाने  के  लिए  धन  की  आवश्यकता  होती  है   l  अब  कलियुग  की  मार  ही  ऐसी  है  कि  जो  धन  उपलब्ध   कराता  है   ,  उस  पर  स्वार्थ  हावी  है  , वह  उस  ज्ञान  का  उपयोग   इस  ढंग  से  करता  है  कि  उसकी  संपदा   कई  गुना  बढ़  जाए   l  धन  और  धनवान   जिस  क्षेत्र   में  प्रवेश  कर  लें ,  चाहे  वह  राजनीति  हो , शिक्षा  हो , चिकित्सा  हो  या  धर्म  हो  --वह  क्षेत्र    व्यापार    बन  जाता  है  l  वहां  गुणा -भाग   शुरू  हो  जाता  है   और  जनता   पिसती  रहती  है  l   व्यापार  में  किसी  को  लाभ  किसी  को  हानि  होती  है   जैसे  युद्ध  होता  है   तब  निर्दोष   बच्चे  आदि  प्रजा  मरती  है , जान -माल  का  नुकसान  होता  है , लेकिन  जो  युद्ध  की  सामग्री  बनाते  हैं  वे  मालामाल  हो  जाते  हैं   l   इसी  तरह  पर्यावरण  प्रदूषण  , कृषि  आदि  खाद्य  पदार्थों  में   रासायनिक  तत्वों  के  होने  से   लोग  बीमार  पड़ते  हैं , जब  महामारी  की  घोषणा  होती  है  और  महामारी  फैलती  है   तब  लाखों  मरते  हैं   लेकिन  जो  दवाइयां , इंजेक्शन  आदि   बनाते  हैं  , उनकी  संपदा  बहुत  बढ़  जाती  है  l   सत्य  यह  है  कि  मनुष्य  स्वयं  अपने   ' मन '  से  मजबूर  है  ,   अपनी  मानसिक  बुराइयों  से  जीत  नहीं  पाता , उसके  आगे   घुटने  टेक  देता  है ,  यदि  कोई  सही  राह  दिखाए  भी   तो  उसे  सहन  नहीं  करता , मिटाने  को  आतुर  हो  जाता  है    इसीलिए  परिवार  हो , समाज  हो , राष्ट्र  हो  या  संसार   सब  जगह  तनाव  और  हाहाकार  है  l   आज  की  सबसे  बड़ी  जरुरत  है  कि  सबके  पास  सद्बुद्धि  हो  ,  लोग  ईश्वर  से   डरें   और  इस  सत्य  को  स्वीकार  करें  कि  उनके  हर  कदम  पर , उनकी   भावना  क्या  है , सब  पर  ईश्वर  की  नजर  है  l  कर्मफल  के  सिद्धांत  को  समझें ,  ईश्वर  के  क्रोध  को  चुनौती  न  दें  l  

5 February 2023

WISDOM -----

   जीवन -यापन  के  लिए  धन  बहुत  जरुरी  है  l  सभी  लोग  किसी न  किसी  तरह  धन  कमाते  हैं  ताकि  उनका  और  उनके  परिवार  का  गुजारा  हो  सके  l  लेकिन  जो  लोग  धनवान  बनने   और  इस  क्षेत्र  में  दूसरों  से  आगे  रहने  की  दौड़  में  सम्मिलित  हो  जाते  हैं   ,  वे  अपने  लिए  तो  तनाव  को  आमंत्रित  करते  ही  हैं   , साथ  ही  सम्पूर्ण  समाज  के  लिए  कष्ट  का  कारण  बनते  हैं  l  क्योंकि  अति  का  धन  कभी  भी  ईमानदारी  और  सच्चाई  से  नहीं  आता   उसके  लिए  अनेकों  प्रकार  की  चालाकियां  और  चालबाजियाँ  करनी  पड़ती  हैं  l    इन   सबका  परिणाम  क्या  होता  है  ,  यह  ईश्वरीय  विधान   के  अनुसार  काल  निश्चित  करता  है  l  आज  संसार  में  इतनी  अशांति  इसीलिए  है  क्योंकि  हर  व्यक्ति  दौड़  रहा  है  , दूसरे  को  धक्का  देकर  आगे  निकलना  चाहता  है  l  अब  लोगों  में  धैर्य  नहीं  है  l  यह  दौड़   परिवार , समाज , राष्ट्र  और  पूरे  संसार  में  है  ,  प्रत्येक  क्षेत्र  में  है  l   अहंकार  बढ़  जाने  और  मानवीयता  न  होने  से   केवल  धक्का  ही  नहीं  है , कुचलकर  आगे  बढ़ने  वाली  स्थिति  है  l  यदि  इसे  रोकने  का  कोई  प्रयास  न  हो  तो   छोटी  सी  चिंगारी  दावानल  बन  जाती  है , विश्वयुद्ध  का  रूप  ले  लेती  है  l  इससे  नुकसान  सभी  को  है  l   सबके  जीवन  में  कष्ट  और  मृत्यु  के  कारण  भिन्न -भिन्न  होते  हैं    

WISDOM ----

  एक  दिन  कबीर   गंगा  घाट  पर  गए  हुए  थे  l  उन्होंने  एक  ब्राह्मण  को   किनारे  पर   हाथ  से  अपने  शरीर  पर  पानी  डालकर  स्नान  करते  हुए  देखा   तो  अपना  पीतल  का  लोटा   देते  हुए  कहा --- " लीजिए , इस  लोटे  से  आपको  स्नान  करने  में  सुविधा  होगी  l "  लेकिन  ब्राह्मण  ने  कबीर  को  गुस्से  में  घूरते  हुए  कहा  -- " रहने  दे  l  ब्राह्मण  जुलाहे  के  लोटे  से  स्नान  करने  से  भ्रष्ट  हो  जायेगा  l  " इस  पर  संत  कबीर  हँसते  हुए  बोले  --- " लोटा  तो  पीतल  का  है , जुलाहे  का  नहीं  l  रही  भ्रष्ट , अपवित्र  होने  की  बात  ,  तो  मिटटी  से  साफ  कर   गंगा  के  पानी  से  इसे  कई  बार  धोया  है   और  यदि  यह  अभी  भी  अपवित्र  है    तो  मेरे  भाई , दुर्भावनाओं ,  विकारों   से  भरा  मनुष्य   क्या  गंगा  में  नहाने  से  पवित्र  हो  जायेगा   ? "  कबीर  के  इस  जवाब  ने  ब्राह्मण  को  निरुत्तर  कर  दिया  l  

4 February 2023

WISDOM ----

     अति  की  महत्वाकांक्षा  व्यक्ति  को  स्वार्थी  बना  देती  है  l  उन्हें  किसी  की  हानि -लाभ  से  मतलब  नहीं  होता  l   उसकी  समूची  शक्तियों  की  खपत  इसी  में  होती  है  कि  महत्त्व  को  कैसे  पाया  जाये  l  महत्वकांक्षी  व्यक्ति  की  रूचि   सही  रास्ते  से  सच्चाई  के  साथ  आगे  बढ़ने  में  नहीं  होती  , वह  अपने  महत्त्व  को  जैसे -तैसे  पाना  चाहता  है   ताकि  समाज  में  उसका  सम्मान  हो , सब  उसे  सलाम  करें   l  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---महत्त्व  की  पाने  की  ललक   ऐसा  विष  है   जो  जिस  क्षेत्र  में  घुलेगा  , उसे  विषैला  बनाएगा   l  l   मनुष्य  जब  तक  अपनी  सही , सच्ची  स्थिति  में  बना  रहता  है  , तब  तक  वह  अनेक  प्रकार  की  मुसीबतों  से  बचा  रहता  है  , किन्तु  जैसे  ही  मिथ्या आडम्बर  और  स्वयं  को  बढ़ा -चढ़ाकर  प्रदर्शित  करने  की  प्रवृति  उसमे  विकसित  होती  है  , वह  स्वयं  उसके  लिए  भी  घातक  होती  है  l  

WISDOM----

   हातिम  को  अपने  वैभव  और  दान  का  बड़ा  अहंकार  था  l  एक  दिन  उसने  किसी  तत्वज्ञानी   संत  को   अपने  यहाँ  बुलाया   और  उनके  मुख  से   अपनी  प्रशंसा  सुनने  की  उम्मीद  रखी   l   संत  ने  महल   पर  तो  एक  बार  ही  उड़ती  नजर  डाली  .  पर  आकाश  और  धरती  को  कई  बार   बड़ी  बारीकी  से  देखा   l  हातिम  ने  आश्चर्य पूर्वक  इसका  कारण  पूछा   l  संत  ने  कहा  -- " मैं  ऊपर  इसलिए  देख  रहा  था   कि  इस  विशाल  आकाश  के  नीचे   तेरे  जैसे  कितने  मनुष्य  हो  सकते  हैं  l  तेरा  क्षेत्र  तो  छोटा  सा  है  l  और  जमीन   को  इसलिए  देख  रहा  था   कि  इसमें  तेरे  जैसे  करोड़ों  की   कब्र  बन  चुकी  है   और  आगे  भी  न  जाने   कितनों  की  बनेगी   l "  संत  के  वचन  सुनकर  हातिम  का  गर्व  गल  गया  , वह  समझ  गया  कि   अहंकार  किसी  का  भी  नहीं  रहा  l  

3 February 2023

WISDOM ----

  1.   बसरा  का  एक  व्यापारी  रेगिस्तान  में  भटक  गया  l  कई  दिनों  तक  मरुस्थल  में  मारा -मारा  फिरा  l  भूख  के  मारे  उसका  बुरा  हाल  हो  गया  l  लगता  था  भगवान  ने  उसकी  पुकार  सुन  ली  l  उस  दिन  शाम  होते -होते  नखलिस्तान  दिखाई  दे  गया  l  व्यापारी  वहां  पहुंचा   तो  प्रसन्नता  से  बांछें  खिल  गईं  l  वहां  एक  पोटली  पड़ी  थी  l  व्यापारी  ने  उसे  उठा  लिया  l  सोचा --- इतने  सारे  चनों  से  तो  दो  दिन  का  काम  चल  जायेगा   l  किन्तु   अगले  क्षण  कितनी  निराशा  के  थे  ,  जब  उसने  पोटली  खोली  l  उसमें  चने  नहीं  , मोती  बंधे  पड़े  थे  l  जीवन  के  आखिरी  क्षण  व्यापारी   जान  पाया  कि   धन  जीवन  की  मूल  आवश्यकता  नहीं  है  ,  वह  तो  कंकड़ -पत्थर  है ,  यदि  उसका  कुछ  सदुपयोग  न  हो  l  

2 .    बुद्ध  एक  गाँव  में  ठहरे  l  एक  व्यक्ति  आकर  बोला  --- " भंते  !  आप  ने  अब  तक   अनेक  लोगों  को   सत्य ,  शांति  और  मोक्ष  की  बात  कही  l  क्या  आप  बताएँगे  कि  कितनों  को  मोक्ष  प्राप्त  हुआ  है  ? " बुद्ध  ने  कहा --- " तुम  एक  काम  करो  l  सारे  गाँव  का  चक्कर  लगाकर  आओ  कि  कौन  शांति  चाहता  है , कौन  मोक्ष  व  कौन  सत्य  ? '  वह  व्यक्ति  बोला --- " कोई  अभागा  ही  होगा  , जो  यह  नहीं  चाहता  होगा  l  फिर  भी  घूम  आता  हूँ  l "  उस  व्यक्ति  ने  गाँव  का  एक -एक  घर  टटोल  डाला  ,  एक  भी  आदमी  ऐसा  नहीं  मिला  जो  यह  चाहता  था  l  किसी  ने  कहा  मुझे  धन  चाहिए  ,  किसी  ने  यश , किसी  ने  संतान  , किसी  ने  पद  l  बुद्ध  के  पास  लौटकर  वह  व्यक्ति  बोला ---" बड़ा  अजीब  गाँव  है   प्रभु  !  सबकी  आकांक्षाएं  लौकिक  हैं  l "  बुद्ध  बोले --- " इसमें  विचित्र  क्या  है  वत्स  !  सभी  सुख  चाहते  हैं  ,  शांति  नहीं  l  और  सुख  के  लिए  तरह -तरह  के   तरीके  खोजते  हैं  l  सुख  से  शांति   का  मार्ग  कैसे  मिलेगा   ? "  

2 February 2023

WISDOM ----

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --' मनुष्य  जीवन  की  एक  ख़ास  विशेषता  है  --उसके  द्वारा  किए  जाने  वाले  कर्म   l  अपने  शुभ  कर्मों  के  माध्यम  से   मनुष्य  न  केवल   इस  संसार  में  सुखी  , संतुष्ट , शांतिपूर्ण  जीवन  जीता  है  , बल्कि  अपना  आंतरिक  विकास  कर  के   चेतना  के  उच्च  शिखरों  का  भी  स्पर्श  करता  है  l    यदि  मनुष्य  का  मन  शुभ  कर्मों  की  ओर  नहीं  है  , बुराई  का  साथ  देता  है   तो  अशुभ  कर्मों  का  परिणाम  है --- जीवन  का  अंधकार  से  घिर  जाना  , जिसमें  कुछ  भी  समझ  नहीं  आता , कुछ  भी  दिखाई  नहीं  पड़ता  , एक  अजब  सी  बेचैनी , घबराहट  मन  में  बनी  रहती  है  जो  उसे  सतत   परेशान  करती  है  l  l  चयन  मनुष्य  को  ही  करना  पड़ता  है   कि  वह  किस  राह  पर  चले , शुभ  कर्मों  की  राह  पर  या  अशुभ  कर्मों  की  राह  पर  l '  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---कर्म  करने  के  लिए  व्यक्ति  स्वतंत्र  है , वह  जो  चाहे  कर  सकता  है , लेकिन  उसके  परिणाम  से  वह  बच  नहीं  सकता  l  '   वे  आगे  लिखते  हैं ---- 'पतन  एक  सहज   गतिक्रम  है , उठाना  पराक्रम  है   l  अचेतन  की  पाशविक  प्रवृतियां   बार -बार  मनुष्य  को  घसीटकर   विषयी  बनने  की  ओर  प्रवृत्त  करती  हैं  l  यह  मनुष्य  पर  निर्भर  है  कि   वह  इन  पर  किस  प्रकार  अंकुश  लगा  पाता  है   व  प्राप्त  सामर्थ्य  का  सदुपयोग  कर  पाता  है   l -------- रामकृष्ण  परमहंस   कहा  करते  थे --- दो  प्रकार  की  मक्खियाँ  होती  हैं  l  एक  तो  शहद  की  मक्खियाँ  जो  शहद  के  अतिरिक्त  और  कुछ  भी  नहीं  खातीं   और  दूसरी  साधारण  मक्खियाँ  ,  जो  शहद  पर  भी  बैठती  हैं   और  यदि  सड़ता  हुआ  घाव  दिखाई  दे  , तो  तुरंत  शहद  को  छोड़कर   उस  पर  भी  जा  बैठती  हैं  l  इसी  प्रकार  दो  तरह  के  स्वभाव  के  लोग  होते  हैं  l  एक  जो  ईश्वर  में  अनुराग  रखते  हैं  , वे  ईश्वर  चर्चा  के   सिवाय  कोई  दूसरी  बात  करते  ही  नहीं   l  और  दूसरे , जो  संसार  में  आसक्त  हैं  ,  वे  ईश्वर  की  बात  सुनते -सुनते   यदि  किसी  स्थान  पर  विषय  की  बातें  होती  हों  तो  , वे  तुरंत  भगवान  की  चर्चा  छोड़कर  उसी  में  संलग्न  हो  जाते  हैं  l  

1 February 2023

WISDOM ----

  लघु -कथा ---- लोभ  और  अहंकार  ने  एक  बार  मिलजुलकर  ठाना  कि  कुछ  ही  समय  में  सारे  संसार  की  विचारशीलता  को   अपने  कब्जे  में  कर  लेंगे   और  एकछत्र  राज्य  करेंगे  l  चक्रवर्ती  बन्ने  का  जुनून  था  लेकिन  जल्दी  सफलता  नहीं  मिल  रही  थी  अत: उन्होंने   एक  शक्तिशाली   देवता  को  सिद्ध  करने  के  लिए  साधना  शुरू  की  l  उनकी  इच्छा  थी  कि  देवता  उन्हें  ऐसी  बुद्धि  दें  जिससे  उनका  मनोरथ  पूर्ण  हो  जाए  l  उनकी  कठिन  साधना  से  प्रभावित  होकर  देवता  जाग  गए   और  उन  दोनों  साधकों  से  उनका  मनोरथ  पूछा  l  उन्होंने  बड़ी  नम्रता  से   अपनी  इच्छा  बताई   तो  देवता  हँसने  लगे   और  कहा ---- तुमसे  पहचानने  में  भूल  हो  गई  l  मेरा  नाम  विवेक  है  ,  मैं  विवेक  दे  सकता  हूँ   लेकिन  मेरे  जग  पड़ने  पर   लोभ  और  अहंकार - तुम  दोनों  का  अस्तित्व  ही  समाप्त  हो  जायेगा  l  अब  दोनों  बहुत  घबराए   और  कहने  लगे   -- देवता ,  आप  फिर  से  गहरी  नींद  सो  जाइये  , हमें  यह  वरदान  नहीं  चाहिए  l   हम  अपने  ही  बलबूते  पर   देर -सवेर  अपना  मनोरथ  पूर्ण  कर  लेंगे    l  ` देवता  ने  उन्हें  बहुत  समझाया  कि   लोभी , अहंकारी  को  दैवी  विधान  के  नियमानुसार   फल  मिलता  है ,   लेकिन   वे  नहीं  माने  l  देवता  अपने  नियम  से  बंधे  थे  l  जैसे  धनुष  पर  बाण  चढ़ा  लिया  जाता  है  तो  उसका  संधान  करना  ही  पड़ता  है  ,  इसलिए  देवता  ने  अपनी  दिव्य  द्रष्टि  से  देखकर   संसार  में  जो  सत्पात्र  थे   उन्हें  विवेक  दिया   ताकि  वे   लोगों  को   सन्मार्ग  दिखा  सकें , जागरूक  कर  सकें  l