पंडितरामानुज वैराग्य विषय पर प्रवचन दे रहे थे | प्रवचन सुन रहे एक गृहस्थ के मन में एक प्रश्न उभरा और उसने पूछा--"प्रभु ! क्या कोई ऐसा मार्ग नहीं, जिसमे संसार भी न छोड़ना पड़े और में भगवान को भी पा लूँ |"
रामानुज बोले--" वैराग्य बाहर के संसार से भागने का नाम नहीं है, भीतर के संसार को त्यागने का नाम है | संसार में रहते हुए सदभावनाओं के साथ सत्कर्म करो और अर्जित पुण्य, परमात्मा का समझकर उन्ही के अंशों में वितरित कर दो | अनासक्त कर्म ही प्रभु प्राप्ति का साधन बनता है |"
रामानुज बोले--" वैराग्य बाहर के संसार से भागने का नाम नहीं है, भीतर के संसार को त्यागने का नाम है | संसार में रहते हुए सदभावनाओं के साथ सत्कर्म करो और अर्जित पुण्य, परमात्मा का समझकर उन्ही के अंशों में वितरित कर दो | अनासक्त कर्म ही प्रभु प्राप्ति का साधन बनता है |"