28 April 2018

WISDOM ------ शरीर के स्वास्थ्य की अपेक्षा मनुष्य का मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य अधिक महत्वपूर्ण है

  चीन  के  संघर्ष शील  तपस्वी  साहित्यकार   लू - शुन  की  मृत्यु  के  बाद  उन्हें  श्रद्धांजलि  देते  हुए  माओत्से  तुंग  ने  कहा  था ---- वे  सांस्कृतिक  क्रान्ति  के  महान  सेनापति  और  वीर  सेनानी  थे  l  वे  केवल  लेखक  ही  नहीं   एक  महान  विचारक  और  क्रान्तिकारी  भी  थे  l 
  लू - शुन  का  जन्म  1881  में  चीन  में  हुआ  था   l  उस  समय की चीन  की  दशा  और  चीनी नागरिकों  के  दुःख  और  वेदना  के  कारण  उनकी   आँखें  नम  हो  जाती   वे  सोचते  कि  चीनी  जनता  की  यह  उदासीनता  न  जाने  कब  दूर  होगी   l    आठ  वर्ष  तक  जापान  में  चिकित्सा शास्त्र  का  अध्ययन  कर  वे  जब  चीन  लौटे   तो  उनकी  वेदना  और  अधिक  बढ़  गई  ,  उन्होंने  संकल्प   लिया   कि  वे  लोगों  की  शारीरिक  चिकित्सा  के  स्थान  पर   मस्तिष्कीय,  भावनात्मक   और  चेतना  की  चिकित्सा  के  लिए  प्रयत्न  करेंगे   और  इस  उद्देश्य  की  प्राप्ति  के  लिए   साहित्य  सर्वाधिक  उपयुक्त  माध्यम  हो  सकता  है  l  अत:  वे  डाक्टर  बानने  की  अपेक्षा  स्कूल  में  अध्यापक  हो  गए  l 
 अब  वे  ' नवयुवक ' पत्र  का  सम्पादन  करने  लगे   l  अब  वे  कहानियां  भी  लिखने  लगे  l   उनकी  कहानियां  तत्कालीन  सामाजिक  और   राजनैतिक  परिस्थितियों  को  ध्यान  में  रखकर  लिखी  जाती  थीं  l   जिसमे  एक  पक्ष  में  शोषण  में  पिस  रहे   लोगों  की   करुण   स्थिति  का  चित्रण  होता  ,  तो   दूसरे   पक्ष  में    इसके  विकल्प  का  प्रतिपादन  होता  कि  वर्तमान  व्यवस्था  को   तोड़ा  जाये  तो  इसके  स्थान  पर  क्या  किया  जाये  l     अपने  साहित्य  लेखन  से  उन्होंने  समाजवादी   क्रांति  की   संभावनाओं  को  मजबूत  बनाया  l    यह  सत्य  है  कि  कोई  भी  परिवर्तन  छोटा  हो  या   बढ़ा  विचारों  के  रूप  में  ही  जन्म  लेता  है  l  मनुष्य  और  समाज  की  विचारणा  तथा  धारणा  में  जब  तक  परिवर्तन  नहीं  आता   तब  तक  सामाजिक  परिवर्तन   भी  असंभव  ही  है  l   और  यह  कार्य  साहित्य से  ही  संभव  है   l