24 January 2024

WISDOM ----

   महाराज  जीमकेतु  धार्मिक  प्रवृत्ति  के  शासक  थे  l  दुर्भाग्यवश  उनके  मन  में    उनकी  अकूत  संपत्ति  का  अहंकार  पैदा  हो  गया  l  ऋषि  दत्तात्रेय  को  उनके  ऊपर  दया  आ  गई   और  उन्होंने  उन्हें  सत्य  का  मार्ग  दिखाने  का  निश्चय  किया  l  वे  एक  पागल  का  वेश  धारण  कर   राजा  के  महल  पहुंचे   और  उनके  सिंहासन  पर  जाकर  बैठ  गए  l  राजा  जीमकेतु  दरबार  में  पहुंचे  तो  एक  पागल  को  सिंहासन  पर   बैठा  देखकर  क्रोधित  हो  उठे   और  बोले  ---- "   तू  कौन  है  ?   हमारे  राजदरबार  में  आने  का  तेरा  साहस  कैसे  हुआ  ? "  दत्तात्रेय  बोले  --- "  बंधु   ! क्रोधित  क्यों  होते   हो  ?  यह  तो  धर्मशाला  है  l  इसमें  तुम  भी  ठहरो   और  मैं  भी  ठहरूंगा  l  "  राजा  बोले  --- " अरे , तू  अँधा  है  क्या  ?  यह  धर्मशाला  नहीं   राजमहल  है  l "  ऋषि  दत्तात्रेय  ने  कहा --- '  क्या  तुम  इसमें  अनंत  काल  से  रहते  चले  आ  रहे  हो  ? "  राजा  ने  कहा ---- " नहीं  ,  मैं  पिछले  तीस  वर्षों  से  यहाँ  का  राजा  हूँ  l "  दत्तात्रेय  ने  पूछा  ---- " तुमसे  पहले  कौन  यहाँ  का  राजा  था  ? "  राजा  बोले ---- " मुझसे  पहले  मेरे  पिता   यहाँ  के  राजा  थे  l "  दत्तात्रेय  ने  पूछा  --- " और  उनसे  पहले  कौन  यहाँ  का  राजा  था  ? "  राजा  बोले  --- " तब  मेरे  दादा -परदादा  यहाँ  राज्य  करते  थे  l "  ऋषि  दत्तात्रेय  बोले  --- "जहाँ  कोई  आकर   थोड़े  समय   ठहरकर  चला  जाता  है  ,  तो  वह  धर्मशाला   ही  कहलाती  है  l  उसे  अपनी  पुश्तैनी  जागीर  समझ  लेना    मूर्खता  के  सिवा   और  कुछ  भी  नहीं  है  l " l   यह  सुनकर  राजा  का  अहंकार   तुरंत  ही   विगलित  हो  गया  l