चिंतन और चरित्र यदि निम्न स्तर का है तो उसका प्रतिफल भी दुखद ,संकटग्रस्त एवं विनाशकारी होगा | उसके दुष्परिणाम को कर्ता स्वयं तो भोगता ही है ,साथ ही अपने संबद्ध परिकर को भी दलदल में घसीट ले जाता है | नाव की तली में छेद हो जाने पर उसमे बैठे सभी यात्री मझधार में डूबते हैं | स्वार्थी ,विलासी और कुकर्मी स्वयं तो आत्म -प्रताड़ना ,लोक भर्त्सना और दैवी दंड विधान की आग में जलता ही है ,साथ ही अपने परिवार ,संबंधी ,मित्रों ,स्वजनों को भी अपने जाल -जंजाल में फंसाकर अपनी ही तरह दुर्गति भुगतने के लिये बाधित करता है | इससे समूचा वातावरण विकृत ,दुर्गन्धित होता है | सुगंध की अपेक्षा दुर्गन्ध का विस्तार अधिक होता है | एक नशेड़ी ,जुआरी ,दुर्व्यसनी ,कुकर्मी अनेकों संगी साथी बना सकने में सहज सफल हो जाता है लेकिन आदर्शों का ,श्रेष्ठता का अनुकरण करने की क्षमता कम होती है | पानी नीचे की ओर तेजी से बहता है लेकिन ऊपर चढ़ाने के लिये प्रयास करना पड़ता है | गीता पढ़कर इतने आत्म ज्ञानी नहीं बने जितने कि दूषित साहित्य ,अश्लील द्रश्य अभिनय से प्रभावित होकर कामुक अनाचार अपनाने में प्रवृत हुए | कुकुरमुतों की फसल और मक्खी मच्छरों का परिकर भी तेजी से बढ़ता है पर हाथी की वंश वृद्धी अत्यंत धीमी गति से होती है | समाज में छाये हुए अनाचार ,दुष्प्रवृतियों का मात्र एक ही कारण है कि जन साधारण की आत्म चेतना मूर्छित हो गई है | चिन्तन में आदर्शों का समावेश ,द्रष्टिकोण में उत्कृष्टता और व्यवहार में सज्जनता तथा स्वार्थ के स्थान पर पुण्य परमार्थ की प्रवृति को जगाकर ही आत्मिक विकास संभव है | यही सच्ची प्रगतिशीलता है
3 March 2013
अहंकार सारी अच्छाइयों का द्वार बंद कर देता है |
रावण परम शिव भक्त था .वेद और शास्त्र का ज्ञाता ,प्रकाण्ड पंडित ,महाशक्तिशाली था लेकिन वह अहंकारी था | रावण मायावी था ,रुप बदल लेता था | एक भिक्षुक का वेश धारण कर उसने सीता हरण तो कर लिया पर निरंतर लंका में अशोक वन में सीताजी से प्रार्थना ही करता रहा कि तुम मेरी पटरानी बन जाओ ,मंदोदरी तुम्हारी सेवा करेगी | सलाहकारों ने कहा -"आपके पास तो ढेरों विद्द्या हैं ,एक दिन राम बनकर चले जाओ और कहो कि मैं तुम्हें छुड़ाने आया हूं | "रावण ने कहा -"ऐसा नहीं है कि मैंने कोशिश नहीं की | मैं राम बना ,पर उसके बाद परनारी का विचार तक नहीं आया | यह काम तो रावण बनकर ही संभव है | "
बुरे काम करना है ,आसुरी कर्म करना है तो रावण ही बनना होगा | यदि राम बनने का अभ्यास किया जाये तो ऐसी दयनीय स्थिति नहीं होगी |
रावण परम शिव भक्त था .वेद और शास्त्र का ज्ञाता ,प्रकाण्ड पंडित ,महाशक्तिशाली था लेकिन वह अहंकारी था | रावण मायावी था ,रुप बदल लेता था | एक भिक्षुक का वेश धारण कर उसने सीता हरण तो कर लिया पर निरंतर लंका में अशोक वन में सीताजी से प्रार्थना ही करता रहा कि तुम मेरी पटरानी बन जाओ ,मंदोदरी तुम्हारी सेवा करेगी | सलाहकारों ने कहा -"आपके पास तो ढेरों विद्द्या हैं ,एक दिन राम बनकर चले जाओ और कहो कि मैं तुम्हें छुड़ाने आया हूं | "रावण ने कहा -"ऐसा नहीं है कि मैंने कोशिश नहीं की | मैं राम बना ,पर उसके बाद परनारी का विचार तक नहीं आया | यह काम तो रावण बनकर ही संभव है | "
बुरे काम करना है ,आसुरी कर्म करना है तो रावण ही बनना होगा | यदि राम बनने का अभ्यास किया जाये तो ऐसी दयनीय स्थिति नहीं होगी |
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